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Yamunotri Dham: आस्था और प्राकृतिक छटा दोनों का आनंद
Yamunotri Dham: यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थल है। यमुना नदी कालिंदी पर्वत से निकली है । यह तीर्थ सबसे कठिन माना जाता है।
Yamunotri Dham: उत्तराखंड में यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ चार धाम माने जाते हैं। इस साल यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए 'अक्षय तृतीया' के पावन अवसर पर अप्रैल में खोले जाएंगे। यह निर्णय मंदिर के समिति द्वारा लिया जाता है।
यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थल है। यमुना नदी कालिंदी पर्वत से निकली है । यह तीर्थ सबसे कठिन माना जाता है। अक्सर श्रद्धालु इसे कठिन चढ़ाई होने के कारण नहीं करते हैं। यह स्थल 4421 मी. ऊंचाई पर स्थित है। यमुनोत्री में पानी के मुख्य स्त्रोत में एक सूर्यकुण्ड है।
यमुना को सूर्य देवता की बेटी और यमराज की जुड़वा बहन कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है की एक बार यमराज ने भैया दूज पर यमुना को वरदान दिया था कि जो भी मनुष्य यमुनोत्री आकर डुबकी लगाएगा उसे यमलोक नहीं आना पड़ेगा , उस इंसान को यहां आने से मोक्ष प्राप्त हो जायेगा। शायद इतना दुर्गम और कठिन तीर्थ करने के बाद यमदंड और क्या मिलेगा। मंदिर के कपाट बंद होने के बाद छह महीने के लिए देवी यमुना की मूर्ति यानी प्रतीक चिन्ह को उत्तरकाशी के खरसाली गांव में लाकर अगले छह महीने तक के लिए शनि देव के मंदिर में रखा जाता है ।
सुबह 6 बजे से रात्रि 8 बजे तक आप इस मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। यमुनोत्री के आसपास आप अन्य स्थल जैसे दिव्य शिला, सूर्य कुंड, सप्तऋषि कुंड भी घूम सकते हैं।
कैसे पहुंचे
हरिद्वार या ऋषिकेश से आप यमुनोत्री सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं । इसके लिए सबसे पहले उत्तरकाशी जिले के जानकी चट्टी पहुंचना पड़ेगा। फिर यहां से आप यमुनोत्री धाम तक पहुंचने के लिए 5-6 किमी का ट्रेक करके या घोड़े टट्टुओं की मदद लेकर यमुनोत्री तक पहुंच सकते हैं।
गंगोत्री धाम
यमुनोत्री के बाद गंगोत्री भी एक धाम है । यहां गाड़ी से मंदिर तक का सफर आसानी से तय किया जा सकता है। यहां भी मंदिर का कपाट अक्षय तृतीया को खुलता है ।दिवाली को बंद हो जाता है। यहां के मंदिर में गंगा माता की पूजा अर्चना की जाती है। सुबह 6:15 से दोपहर 2:00 बजे और दोपहर 3:00 से 9:30 बजे मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।
यह गंगोत्री मंदिर भागीरथी नदी के तट पर स्थित है। भारत की सबसे पवित्र और सबसे लंबे नदियों में गंगा नदी का नाम प्रमुख है।
ऐसा माना जाता है कि महर्षि भागीरथ के 1000 वर्षों की तपस्या के बाद गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी गंगा धरती पर आने के लिए तैयार थीं । लेकिन इनकी तीव्रता से पूरी पृथ्वी के डूबने की आशंका थी। इसलिए धरती को डूबने से बचाने के लिए भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया और गंगा नदी को धारा के रूप में पृथ्वी पर छोड़ा । इस तरह गंगा भागीरथी नदी के नाम से जानी गयी।
देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी नदी के संगम को गंगा नदी का नाम दिया गया।
गंगोत्री के आसपास अन्य धार्मिक स्थल जैसे भागीरथ शिला, भैरव घाटी, गोमुख, जलमग्न शिवलिंग देख सकते हैं।
दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा के अवसर पर गंगोत्री धाम के कपाट बंद कर दिये जाते है। अगले छह महीने तक के लिए माँ गंगा की प्रतीक चिन्हों को गंगोत्री से हरसिल शहर के मुखबा गांव में लाकर पूजा जाता है।
कैसे पहुंचें?
हरिद्वार या ऋषिकेश से सड़क मार्ग द्वारा आप गंगोत्री पहुंच सकते हैं। उत्तरकाशी पहुंच कर आप बस या टैक्सी लेकर गंगोत्री तक का सफर सड़क मार्ग से मंदिर तक तय कर सकते हैं। वहां रात ठहरने के लिए कई होटल और धर्मशाला उपलब्ध है।
गोमुख
यह स्थान गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूरी और 3,892 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गोमुख भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है। यह गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना भी है। इस जगह गंगोत्री से पैदल या घोड़े टट्टुओं की सवारी कर पहुंचा जा सकता है। यहां की चढ़ाई आसान है । बस पतली संकरी नदी की तेज धार वाले रास्तों से गुजरना पड़ता है। गंगोत्री से 19किमी का ट्रैक करके इस जगह पहुंचा जा सकता है।
अक्सर हिंदू पौराणिक कथाओं में ऐसा कहा गया है कि चार धाम यात्रा करने से मनुष्य सब पाप कर्मों से छुटकारा पा लेता है और जीवन के अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। शायद इसीलिए लाखों की तादाद में हर साल दुनिया भर से आस्था और प्राकृतिक छटा का आनंद लेने लोग इन जगहों पर आते हैं।
( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)