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नगर वधुओं ने पूरी रात सजाई महफिल,जलती चिताओं के बीच किया डांस
वाराणसीः प्राचीन नगरी काशी का अंदाज और मिजाज दुनिया से निराला है। यहां मौत पर भी उत्सव मनाया जाता है। बुधवार को श्मशान घाट पर नगर वधुएं जलती चिताओं के बीच गीत-संगीत के रंग में सराबोर हो पूरी रात डांस करती रहीं। ये रात हर साल चैत्र नवरात्र के आठवें दिन के बाद आती है। जिस श्मशान घाट का नाम सुनकर लोग सिहर जाते हैं उसी श्मशान घाट पर नगर वधुओं ने पूरी रात महफिल सजाई।
चिता पर लेटने वाले को सीधे मिलता है मोक्ष
16वीं शताब्दी से काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर शुरू ये परंपरा लगातार चली आ रही है। जलती चिताओं के बीच नगर वधुएं मुक्ति के लिए संगीत की आराधना करती हैं। महोत्सव की आखिरी रात में जलती चिताओं के सामने नटराज को साक्षी मानकर नगर वधुएं पूरी रात साधना करती हैं। मान्यता है कि यहां चिता पर लेटने वाले को सीधे मोक्ष मिलता है।
मंदिर की स्थापना पर शुरू हुई थी परंपरा
कार्यक्रम व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि यह परंपरा अकबर काल में राजा मान सिंह ने शुरू की थी। 16वीं शताब्दी में जब राजा मान सिंह ने श्मशान नाथ मंदिर का निर्माण करवाया, तो उस समय भी यह परंपरा थी। मंदिर निर्माण के बाद वहां भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता था। महाश्मशान होने की वजह से कोई भी कलाकर यहां आने को तैयार नहीं हुआ। इसके बाद मान सिंह ने नगरवधुओं को निमंत्रण भेजा। वे इसे स्वीकार करके पूरी रात बाबा के दरबार में नृत्य करती रहीं। काशी के जिस मणिकर्णिका घाट पर मौत के बाद मोक्ष की तलाश में मुर्दों को लाया जाता है।
नहीं बुझती श्मशान की आग
यह श्मशान दुनिया का इकलौता श्मशान है, जहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती। जहां लाशों का आना और चिता का जलना कभी नहीं थमता। धर्म नगरी काशी में मणिकर्णिका घाट इसलिए मशहूर है कि यहां दाह संस्कार होने पर सीधे मोक्ष मिलता है। चैत्र नवरात्रि अष्टमी को इस घाट पर मस्ती में सराबोर एक चौंका देने वाली महफिल सजती है।
नगर वधुएं थिरकती हैं पूरी रात
साल में एक बार यह अनोखी रात आती है। चैत्र नवरात्र के आठवें दिन की रात जब श्मशान पर एक साथ चिताएं भी जलती हैं और घुंघरुओं और तेज संगीत के बीच कदम भी थिरकते हैं। इनके लिए जीते जी मोक्ष पाने की मोहलत बस यही एक रात देती है। इस दिन श्मशान के बगल में मौजूद शिव मंदिर में शहर की तमाम नगरवधुएं इकट्ठा होती हैं और फिर भगवान के सामने जी भरके नाचती हैं। यहां आने वाली तमाम नगर वधुएं अपने आपको बेहद खुशनसीब मानती हैं। चिताओं के करीब नाच रहीं लड़कियां शहर की बदनाम गलियों की नगर वधु होती हैं। पर इन्हें ना तो यहां जबरन लाया जाता है ना ही इन्हें इन्हें पैसों के दम पर बुलाया जाता है।
मना कर दिया था तब के कलाकारों ने
जानकारों की माने तो इसके पीछे एक बेहद पुरानी परंपरा है। व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि श्मशान के सन्नाटे के बीच नगरवधुओं के डांस की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। मान्यताओं के मुताबिक आज से सैकड़ों साल पहले राजा मान सिंह द्वारा बनाए गए बाबा मशान नाथ के दरबार में कार्यक्रम पेश करने के लिए उस समय के जाने-माने नर्तकियों और कलाकारों को बुलाया गया था, लेकिन ये मंदिर श्मशान घाट के बीचों बीच मौजूद था, लिहाजा तब के चोटी के तमाम कलाकारों ने यहां आकर अपने कला का जौहर दिखाने से इंकार कर दिया था।
नगर वधुओं ने किया था न्योता स्वीकार
राजा ने डांस के इस कार्यक्रम का ऐलान पूरे शहर में करवा दिया था, लिहाजा वो अपनी बात से पीछे नहीं हट सकते थे। लेकिन बात यहीं रुकी पड़ी थी कि श्मशान के बीच डांस करने आखिर आए तो आए कौन? इसी सोंच में वक्त तेजी से गुजर रहा था। लेकिन किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जब किसी को कोई उपाय नहीं सूझा, तो फैसला ये लिया गया कि शहर की बदनाम गलियों में रहने वाली नगर वधुओं को इस मंदिर में डांस करने के लिए बुलाया जाए। उपाय काम कर गया और नगरवधुओं ने यहां आकर इस महाश्मशान के बीच डांस करने का न्योता स्वीकार कर लिया। ये परंपरा बस तभी से चली आ रही है।