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EARTH DAY: वाराणसी की पहचान कायम रखनी है तो करें इन नदियों का कायाकल्प
वाराणसी: ये बात सभी जानते हैं कि वाराणसी शहर का नाम दो नदियों वरुणा और असि के नाम पर पड़ा है, लेकिन दोनों ही नदियां लगभग नाले में तब्दील हो चुकी हैं। इनमें से असि नदी अब असि नाला के नाम से पुकारी जाती है। इन दोनों नदियों की बदहाली को देखते हुए शहर की कई संस्थाओं ने अपनी आवाज बुलंद की है, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई हैं। इन नदियों को फिर से जीवन देने के लिए शहर के एक्टिविस्ट ने सुझाव दिए हैं। वे इस बारे में वाराणसी के सांसद और पीएम नरेन्द्र मोदी को पत्र भी लिखने वाले हैं।
ऐसे हुआ वाराणसी का नामकरण
वरुण और असि नदियों के अस्तित्व को बचाने की मुहिम में लगे वाराणसी के रहने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट, वल्लभाचार्य पांडेय का कहना हैं कि वाराणसी का नामकरण 'वरुणा' और 'असि' दो नदियों के नाम से हुआ। वाराणसी के कन्दवा गांव स्थित कुंड से निकल कर कर्दमेश्वर महादेव के मंदिर के चरण को छूती हुई 'असि' गंगा में से मिलने के लिए आगे बढ़ती है।
उन्होंने पद्यपुराण के श्लोक का हवाला देते हुए बताया कि 'वाराणसीति विख्यातां तन्मान निगदामि व: दक्षिणोत्तरयोर्नघोर्वरणासिश्च पूर्वत, जाह्नवी पश्चिमेऽत्रापि पाशपाणिर्गणेश्वर:।।' इसका अर्थ है दक्षिण-उत्तर में वरुणा और अस्सी नदी है, पूर्व में जाह्नवी (गंगा) और पश्चिम में पाशपाणिगणेश।
रिकार्ड्स में भी असि बनी नदी से नाला
वल्लभाचार्य कहते हैं कि ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि आज 'असि' अपने वजूद को खो चुकी है और एक दुर्गंधयुक्त नाले में बदल गई है। पौराणिक ग्रंथों की एक जीवंत नदी, सरकारी दस्तावेजों में नाले के रूप में दर्ज है। शहर के एडमिनिस्ट्रेशन ने भी अतिक्रमण करने वालों, प्रदूषण फैलाने वालों और भू-माफियाओं के दबाव में अपनी आंखे मूंद ली हैं।
क्या साजिश हुई हुआ है असि नदी के साथ
असि नदी का गंगा में संगम उस स्थान पर होता था जहां आज नया अस्सी घाट बना हुआ है। यहीं पास में असिसंगमेश्वर महादेव का मंदिर आज भी मौजूद है। विकास के दौर में सरकारी और सुविधा सम्पन्न लोगों के प्रभाव में असि की धारा को मोड़ दिया।
उसे नाले के रूप में गंगा में दूसरी जगह से मिलाया गया। कन्दवा गांव स्थित कर्मदेश्वर महादेव विभिन्न गावों और कालोनियों जैसे कंचनपुर ताल, काशीपुर, चित्ईपूर, सुन्दरपुर, इंदरानगर, आदित्य नगर, कौशलेश नगर, साकेत नगर, रविन्द्रपुरी होते हुए अस्सी घाट पहुंचते-पहुंचते असि गायब हो चुकी।
असि नदी पर स्थित कई छोटे पुलों के किनारे कूड़ा मिटटी पाट कर अवैध कब्जे किए जा चुके हैं। इन पर नियंत्रण करने वाले विभाग वाराणसी नगर निगम, विकास प्राधिकरण, जल निगम, सिंचाई विभाग और जिला प्रशासन इस मामले पर चुप्पी साढ़े हैं। इसके चलते यह नदी अपने अंतिम साँस गिन रही है। उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ इंग्लैण्ड के जेम्स प्रिन्सेप ने तत्कालीन बनारस के कई मैप बनाये थे। इनमे उन्होंने वरुणा और असि को नदी ही बताया था, लेकिन असि को कागजों में कब नाला बना दिया गया यह बताने वाला आज कोई नहीं है।
वरुणा नदी कैसे हो रही है गायब
वरुणा रामेश्वर के बाद जैसे जैसे शहर की ओर बढती हैं उसमे कूड़ा कचरा डालने का सिलसिला बढ़ता ही जाता है।कैन्टोमेंट क्षेत्र के होटलों और गाड़ियों के कारखानों, सर्विस सेंटर आदि से सीधे प्रदूषित जल आज भी वरुणा में प्रवहित किया जा रहा है। कचहरी के निकट कुरैशी बस्ती में स्लाटर हाउस से निकला जानवरों के रक्त, मांस, चमड़ा युक्त कचरा सीधे खुले गटर के माध्यम से स्टेट बैक के पीछे से वरुणा में डाला जा रहा है।
पूजा पाठ और अन्य धार्मिक कर्मकाण्डो के अवशेष भी प्लास्टिक की पन्नियों में वरुणा में लगातार डाले जा रहे हैं। वरुणा के किनारे रहने वाले परिवारों में शादी व्याह होने पर थर्मोकोल के दोना-पत्तल आदि भी नदी में डाल दिए जा रहे हैं। इन सब कारणों से वरुणा का जलीय जीवन लगभग समाप्त हो चुका है।
ये हैं सुझाव
वाराणसी की पहचान इन दोनों नदियों का कायाकल्प होना जरूरी है, इन्हें फिर से वजूद में लाने के लिए इन दोनों नदियों को संरक्षित किया जाए। वरुणा और असि में किसी भी प्रकार का प्रदूषण रोका जाए। इन दोनों नदियों को पूरी तरह अतिक्रमण मुक्त किया जाए। प्रवाह क्षेत्र में स्थित सारे अवरोध समाप्त किये जाएं।
असि नदी जहां से निकलती है वहां तक लिफ्ट पम्प से गंगा का पानी पहुंचा कर इसे पुनर्जीवित किया जाय। इन दोनों नदियों पर पड़ने वाले पुलों पर जाली लगा कर कूड़ा फेकने से रोका जाए। 'असि' और 'वरुणा' नदियों के गंगा में संगम स्थल को सुसज्जित और आकर्षक किया जाए।
इन दोनों नदियों के किनारे ग्रीन बेल्ट बनाकर 'पाथवे' और पार्क बनाएं जाएं। स्लाटर हॉउस से निकलने वाले कचरे तथा मांस के व्यापारियों के यहां से निकलने वाले वेस्ट मटेरियल को खाद बनाने के लिए छोटी छोटी यूनिट्स में भेजा जाए। वाराणसी शहर में प्राइवेट और सरकारी इमारतों में वाटर रिचार्जिंग की यूनिट्स को लगाए जाने का नियम बनाया जाए, जिससे भू-EARTगर्भजल का स्तर और नीचे न जाने पाए।