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एवरेस्ट बन रहा है अब गंदगी का अंबार, कभी कहला चुका है विश्व का सबसे ऊंचा जंकयार्ड

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Published on: 29 Dec 2016 1:53 PM IST
एवरेस्ट बन रहा है अब गंदगी का अंबार, कभी कहला चुका है विश्व का सबसे ऊंचा जंकयार्ड
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govind pant raju Govind Pant Raju

लखनऊ: कहते हैं कि कुछ पल इस कदर यादगार बन जाते हैं कि उन्हें भूलना नामुमकिन होता है और शायद मेरा मेरे दोस्तों के साथ एवरेस्ट का यह टूर वाकई दिल में बस चुका था। अभी लौटने का रास्ता तो हमने तय ही नहीं किया था कि यादें मन में हिलोरे खाने लगी थी। एवरेस्ट यात्रा का एक-एक पल रगों में रोमांच भरने वाला था। खैर मस्ती भरी यात्रा पूरी हो चुकी थी अब टाइम था वापस आने का। आइए बताते हैं आपको आगे की यात्रा के बारे में…

(राइटर दुनिया के पहले जर्नलिस्ट हैं, जो अंटार्कटिका मिशन में शामिल हुए थे और उन्होंने वहां से रिपोर्टिंग की थी। )

जब हमने गोरखशेप से विदाई ली, उस वक्त भी मौसम बहुत खराब था। हल्की बर्फबारी जारी थी। हवा बंद थी और बहुत दूर तक देख पाना असंभव सा था। शुरू-शुरू में हमें चलने में परेशानी हो रही थी, मगर थोड़ी ही देर में शरीर गर्म हो गया और चश्मों में जमती धुंध के अलावा बाकी समस्याएं धीरे-धीरे खत्म होती चली गईं। आज हमें प्रायः लगातार नीचे ही उतरना था।

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गोरखशेप से नीचे उतरते हुए हमें एक बहुत बड़े स्क्रीन वाले मोरेन से गुजरना पड़ा, जिसमें चलने में बड़ी परेशानी हो रही थी। हवा में ठंडक थी और हमें फेफड़ों में उस ठंड के पहुंचने का अहसास हो रहा था। अरूण ठंड से जूझने की कोशिश कर रहा था जबकि राजेंद्र का चेहरा ठंड से लाल होता जा रहा था। ताशी और मैं सबसे पीछे चलते हुए मौसम का आनंद ले रहे थे और नवांग हम सबसे आग उतरते जा रहा था।

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एवरेस्ट यात्रा मार्ग में साफ सफाई का बड़ा ध्यान रखा जाता है। प्रायः हर टी हाऊस या होटल में टाॅयलेट का इंतजाम होता है, कहीं सुविधाजनक और कहीं असुविधा भरा। लेकिन नेपाल पर्यटन विभाग की यह अनिवार्य शर्त है कि हर शौचालय के लिए सोकपिट बनाए जाएं। इसलिए पानी की कमी, बैठने की असुविधा और जगह की कमी के बावजूद शौचालय हर जगह मिल ही जाते हैं। एवरेस्ट मार्ग में कूड़ा फेंकने और खाली पैकिंग आदि को भी नियमित रूप से नीचे के इलाकों में लाने का इंतजाम किया जाता है। मार्ग में भी स्थान-स्थान पर टिन, कांच आदि के लिए अलग-अलग डस्ट चैम्बर बनाए गए हैं। स्थानीय लोग भी मार्ग में कूड़ा फेंकने से बचते हैं।

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बेस कैंप और उससे ऊपर के कैंपों से तो सारा कचरा वापस नीचे लाने के लिए अब कड़े नियम बनाए गए हैं। लेकिन फिर भी एवरेस्ट क्षेत्र में बढ़ती पर्वतारोहण गतिविधियों के कारण कूड़े और कचरे की समस्या विकराल होती जा रही है। एवरेस्ट क्षेत्र में कूड़े की समस्या का खुलासा पहली बार 1963 के पहले सफल अमेरिकी एवरेस्ट अभियान के बाद हुआ था। इस अभियान दल के आरोही सदस्य और नेशनल जिओग्राफिक मैगजीन के फोटोग्राफर बैरी बिशप ने कई तस्वीरों के जरिए एवरेस्ट में मौजूद कचरे को दुनिया को दिखाया था और एवरेस्ट को ‘विश्व का सबसे ऊंचा जंकयार्ड’ कहा था। एवरेस्ट के प्रथम आरोही एडमंड हिलेरी ने भी अपने एक लेख में एवरेस्ट क्षेत्र को एक’ इकोलाजिकल स्लम की’ संज्ञा दी थी।

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इसके बाद से एवरेस्ट क्षेत्र में जमा हो रहा कचरा पर्यावरण शस्त्रियों और एवरेस्ट प्रेमियों की चिंता का विषय बनता रहा। अनेक सेमिनार और संगोष्ठियों के जरिए एवरेस्ट की गंदगी के बारे मेें पर लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश की गई। इसके बाद 1994 में पहली बार एवरेस्ट क्षेत्र से 200 किलो कचरा हटाया गया। लेकिन एवरेस्ट की ऊंचाइयों से कचरा साफ करने का वास्तविक अभियान नेपाल माउण्टेनियरिंग एसोसिएशन और इको एवरेस्ट एक्सपिडिशन के प्रयासों से ही शुरू हो सका।

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2008 से 6 वर्ष तक लगातार इको एवरेस्ट अभियान के तहत 40 किलो मानव मल, 13 टन कूड़ा कचरा और 6 शव एवरेस्ट से हटाने में सफलता हासिल की गई। 1924 के बाद के अभियानों का कूड़ा, आक्सीजन सिलेंडर, फटे टेंट, टिन, खाली पैकेट, बेकार सामान और मानव शव सब मिल कर एवरेस्ट की सुंदरता को दागदार करते रहे हैं।

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मानव मल मूत्र एवरेस्ट को गंदगी को ढेर बनाने में बड़ा सहायक होता है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक एवरेस्ट के 2 महीने के सालाना पर्वतारोहण सीजन के दौरान लगभग 700 से ज्यादा पर्वतारोही और शेरपा व गाइड आदि एवरेस्ट में बेस कैंप से ऊपर रहते हैं। इतने लोगों का मल मूत्र एवरेस्ट में गंदगी को बढ़ाने का काम करता है।

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पहले ज्यादातर आरोही एवरेस्ट में बर्फ में गड्ढे बना कर मल त्याग करते थे। फिर उसे ढक दिया जाता था। ग्लोबल वार्मिंग के चलते उपरी सतहों की बर्फ पिघल जाने से यह पुरानी गंदगी भी अब सतह पर आ गई है।

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ग्लेशियरों से फिसल कर नीचे आई बर्फ के कारण बेस कैंप में कई बार बर्फ पिघला कर उसका पानी इस्तेमाल करने वाले कई पर्वतारोही दलों को इस गंदगी का शिकार होना पड़ा है। मगर अब जागरूकता बढ़ने के कारण एवरेस्ट क्षेत्र में मानव मल प्रबंधन के लिए प्रयास किए जाने लगे हैं। कुछ पर्वतारोहियों का सुझाव आया था कि बेस कैंप में ज्यादा पर्वतारोहियों की मौजूदगी के चलते वहां पर स्थाई शौचालय बनाए जाने चाहिए।

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लेकिन इको हिमालय, और एवरेस्ट समिटर्स एसोसिएशन ने इस सुझाव को अव्यवहारिक मान कर खारिज कर दिया था। उनका कहना था कि बेस कैंप क्षेत्र में ग्लेशियर के अस्थिर होने के कारण ऐसे टायलेट्स बहुत जल्द टूट जाएंगे और बेस कैम्प क्षेत्र में नई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा करेंगे।

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इसके बाद से कुछ और उपायों पर विचार किया गया। लेकिन इस समस्या का स्थाई समाधान अब भी नहीं खोजा जा सका है। बेस कैंप में मानव मल जमा न हो और उसके कारण किसी प्रकार की समस्याएं न पैदा हों, इसके लिए नेपाल पर्वतारोहण संघ और नेपाल पर्यटन विभाग के दिशा निर्देष तो हैं लेकिन अभियान दल इसके लिए अपनी अपनी सुविधा के हिसाब से ही इंतजाम करते हैं। हालांकि इन नियमों के कारण यह फायदा तो हुआ है कि एवरेस्ट बेस कैंप क्षेत्र में लगने वाले सभी शिविरों के आसपास अब गंदगी नहीं दिखती। शिविर के समापन के समय भी सफाई का खास ध्यान रखना पड़ता है।

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हालांकि हम जब एवरेस्ट बेस कैंप से वापस लौटे थे, तब हमने एक दो स्थानों पर मानव मल के अंश देखे थे। लेकिन इन्हें अपवाद माना जा सकता है। आधार शिविर के प्रतीक पूजा स्थल पर हमें अवश्य कुछ प्लास्टिक के झंडे और प्रसाद आदि बिखरा दिखा था। चूंकि वहां पर कुछ भी खराब नहीं होता अतः इस प्रकार की वस्तुएं भी वहां पर कचरा ही कही जा सकती हैं। हमने तो वहां पर राजेंद्र के घर से आए मेवों को ही प्रसाद के तौर पर इस्तेमाल किया था और इस बात का ध्यान रखा कि कुछ भी जमीन पर न गिरे।

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एक दो मेवे गिरे भी तो उन्हें अरूण ने झटपट उठा लिया। नवांग ने तो खाली चाकलेट का रैपर भी मेरे हाथ से लेकर रकसेक की जेब में डाल दिया था। हम इस बात से खुद को संतुष्ट मान रहे थे कि हमने वहां पर कुछ भी नहीं छोड़ा, अपनी मौजूदगी की स्मृतियों के सिवा।

गोविंद पंत राजू

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