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ऊंची चोटियों को देख नहीं डगमगाए कदम, लुकला में किए दूधकोसी के दर्शन
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अपने दोस्तों के साथ गोविंद पंत राजू
लखनऊ: जैसे-जैसे हम लोग एवरेस्ट की ओर बढ़ रहे थे, वैसे वैसे हमारे दिलों की धड़कनें बढ़ती जा रही थी अपने पिछली कहानी में हमारे आधे एडवेंचर का लुत्फ उठाया था। आगे की कहानी हम आपको इस दूसरे पार्ट में बताएंगे।
( राइटर दुनिया के पहले जर्नलिस्ट हैं, जो अंटार्कटिका मिशन में शामिल हुए थे और उन्होंने वहां से रिपोर्टिंग की थी।)
आगे की स्लाइड में जानिए कैसे होता है विमान सेवाओं का इंतजाम
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होटल चलाने वाला परिवार करता है विमान सेवाओं के इंतजाम
लुकला सोलखुम्भू घाटी और समूचे एवरेस्ट क्षेत्र के लिए सम्पर्क केन्द्र है। हवाई अड्डे के अलावा यहां पर एक छोटा हैलीपैड भी है। जिसमें एवरेस्ट सीजन के दौरान किसी भी आपात स्थिति के लिए दो तीन हेलीकॉप्टर हमेशा तैनात रहते हैं। विमान यहां रात को नहीं रूकते मगर सुबह के कुछ घंटे यहां पर हर दस मिनट में एक न एक विमान उतरता या उड़ान भरता है।
हालांकि विदेशी नागरिकों की आवाजाही अधिक होने से यहां त्रिस्तरीय सुरक्षा इंतजाम हैं। लेकिन यह भी सच्चाई है कि इस एयरपोर्ट के आवागमन द्वार से 10 फीट से भी कम दूरी पर एक होटल का प्रवेश द्वार है और होटल चलाने वाला परिवार ही एक तरह से सारी विमान सेवाओं के लिए जरूरी इंतजाम करता है।
आगे की स्लाइड में जानिए जोकों से जुड़ी ख़ास बातें
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कमर दर्द के इलाज के लिए चुसवाया गया था जोकों से
हम करीब 9 बजे अपनी मंजिल फाकडिंग के लिए रवाना हुए। हमने अपने रकसैक में पानी की दो-दो बोतलें, रेन जैकेट और रेट पेंट सबसे ऊपर रखी थीं क्योंकि लुकला से आगे के इलाके में घने जंगल होने के कारण इस क्षेत्र में अक्सर तेज वर्षा होती है। इस ऊंचाई पर बारिश में भीगना खतरनाक हो सकता है क्योंकि इससे तेज बुखार और शरीर में अकड़न हो जाती है। चूंकि हम अप्रैल के मध्य में एवरेस्ट क्षेत्र में थे। इसलिए हम यहां की खून चूस लेने वाली जोकों से सुरक्षित थे।
जून मध्य के बाद बारिश तेज होने के बाद जंगल वाले इलाके में जोकें पैदा हो जाती हैं और पर्वतारोहियों के लिए समस्या बन जाती हैं। हालांकि एक दौर में इन जोंकों का तरह-तरह के इलाज के लिए उपयोग होता था और इस बात के प्रामाणिक प्रमाण मिलते हैं कि एवरेस्ट क्षेत्र में सर्वेक्षण का काम करने भारत के सर्वेयर जनरल जार्ज एवरेस्ट के कमर दर्द के इलाज के लिए जोंकों चुसवाया गया था।
आगे की स्लाइड में जानिए दूधकोसी की खासियत
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दूधकोसी है सदानीरा नदी
लुकला से थोड़ा नीचे उतरते ही हमें पहली बार दूध कोसी नदी के दर्शन होते हैं। दूधकोसी मुख्यतः एवरेस्ट इलाके से तमाम ग्लेशियरों से पानी लेकर आती है। यह सदानीरा नदी है। एवरेस्ट पहुंचने के लिए बड़े प्रबल वेग से बहती नदी को इस अनेक बार पार करना पड़ता है। इन दिनों इसका पानी इसके नाम के अनुरूप सचमुच दूधिया दिख रहा था क्योंकि गर्मी की शुरूआत में ग्लेशियरों के पिघलने की दर कम होती है। जैसे-जैसे ऊपर गर्मी बढ़ेगी तो ग्लेशियरों के पानी के साथ बह कर आने वाली मिट्टी इसका रंग बदल देती है।
दूधकोसी नेपाल के ऊंचे पर्वतों से आने वाली कोसी या सप्तकोसी नदी की सहायक है। पहले इसका संगम सुनकोसी से होता है जो गोसांई थान के इलाके से निकलती है। सुन कोसी में भोट कोसी, ताम्बा कोसी और इन्द्रावती कोसी का भी संगम होता है। सप्त कोसी में कंचनजंगा के इलाके से आने वाली तुमुर कोसी, तिब्बत से आने वाली अरूण का भी संगम होता है। बाद में यह बिहार के कटिहार जिले में गंगा में मिल जाती है।
आगे की स्लाइड में जानिए कहां मनाते हैं पर्वतारोही जश्न
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डांस बार में मनाते हैं पर्वतारोही हार-जीत का जश्न
लुकला आवागमन और व्यापार का केन्द्र तो है ही यहां कई बार, स्नूकर कैफे और एक आध डांस बार भी हैं। एवरेस्ट की सफलता का जश्न मनाने या असफलता का गम मनाने के लिए अपनी यात्रा की आखिरी शाम पर्वतारोही यहीं बिताना पसन्द करते हैं। इस पूरे इलाके में जमीन अच्छी है, लोग बहुत मेहनती हैं इसलिए कहीं-कहीं खेतों में शानदार सब्जियां उगती दिख जाती हैं। हमें कुछ खेतों में फूली हुई सरसों भी दिखाई दी साथ में आलू और गेहूं भी।
लुकला से लगभग सवा किलोमीटर नीचे उतर कर हम चैड़ या चौरीखरक नामक स्थान पर पहुंचे। बहुत चौड़े मैदान होने के कारण सम्भवतः इस जगह का यह नाम पड़ा होगा। एवरेस्ट विजय के बाद जो अपार यश एडमंड हिलेरी के हिस्से आया था उसका प्रतिकार करने में हिलेरी ने जरा भी कंजूसी नहीं की। 1965 से ही वे साल का कुछ वक्त सोलखुम्भू क्षेत्र में बिताते रहे।
आगे की स्लाइड में जानिए लुकला के एक स्कूल के बारे में
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भूकंप में ढह गया था ये स्कूल
उनके ‘एवरेस्ट ट्रस्ट’ ने इस घाटी का पहला अंग्रेजी माध्यम का स्कूल चौरीखरक में 1964 में ही खोल दिया था। श्री महेन्द्र ज्योति हायर सेकेण्ड्री स्कूल के नाम से चर्चित यह स्कूल अब तक सैकड़ों शेरपा बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उनके लिए दुनिया के दरवाजे खोल चुका है। इस स्कूल के पढ़े हुए बहुत से बच्चे आज विदेशों में नाम कमा रहे हैं। 2015 के विनाशकारी भूकंप ने इस स्कूल की इमारत को ध्वस्त कर दिया था, मगर एडमंड हिलेरी द्वारा स्थापित हिमालयन ट्रस्ट के सहयोग से चौरीखरक के स्कूल के पुर्ननिर्माण के सारे इंतजाम किए गए और यहां अभी भी पुर्ननिर्माण जारी है।
आगे की स्लाइड में जानिए कौन है एवरेस्ट की जान
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टी हाउस हैं एवरेस्ट की जान
यहां एक ट्रेवल एजेंसी की बहुत बड़ी टेंट कालोनी है। आस पास कई टी हाऊस भी हैं। टी हाउस इस इलाके की एक बहुत बड़ी खासियत हैं। इन टी हाऊसों में हर वक्त चाय, नाश्ता, खाना तैयार मिलता है। ये टी हाउस एवरेस्ट की जान हैं और शान भी। इसलिए राजेन्द्र ने दूध कोसी के किनारे कुछ किलोमीटर चल कर जब एक सुन्दर से टी हाउस में चाय पीने का प्रस्ताव रखा तो हम सब तत्काल टी हाउस के आंगन में जा पहुंचे। अरुण की समस्या यह थी कि उसको चाय काफी से भारी परहेज था इसलिए उसने अपने लिए गर्म पानी मंगवाया और फिर वो यह प्रयास करने लग गया कि किस तरह नेपाल के एनसेल के सिम में जान फूंक सके और मोबाइल पर घर बात कर सके।
गोविंद पंत राजू
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