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घास के गलीचों में देखी बहती चांदी, सनसेट के टाइम पर एवरेस्ट पर यूं छिड़की गुलाबी किरणें

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Published on: 8 Jan 2017 4:37 PM IST
घास के गलीचों में देखी बहती चांदी, सनसेट के टाइम पर एवरेस्ट पर यूं छिड़की गुलाबी किरणें
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गोविंद पंत

govind pant raju Govind Pant Raju

लखनऊ: जैसे-जैसे हम एवरेस्ट से वापस आ रहे थे रास्ते का रोमांच, उतना ही था, जितना जाते टाइम हमारे चेहरों पर थकावट की कोई शिकन नहीं थी। पिछली यात्रा तो आप पढ़ ही चुके हैं, आइए आपको आगे की यात्रा की ओर ले चलते हैं।

(राइटर दुनिया के पहले जर्नलिस्ट हैं, जो अंटार्कटिका मिशन में शामिल हुए थे और उन्होंने वहां से रिपोर्टिंग की थी। )

फैरिचे की बेहद चौड़ी और अत्यंत खूबसूरत घाटी में जब हम पहुंचे, तो इस गहरी घाटी के पश्चिमी छोर पर लोबूचे के आसपास की पहाड़ियों में सूर्य डूब रहा था। इस घाटी की बनावट ऐसी है कि इसके चारों ओर पहाड़ियों का घेरा सा बना हुआ है। यह घाटी किसी ग्लेशियर झील का अवशेष लगती है और संभवतः हिमालय के निर्माण के लंबे दौर में होने वाले परिवर्तनों और भू-भौतिक बदलावों के कारण झील के समाप्त होने के बाद इस बेहद चौड़ी घाटी का जन्म हुआ होगा। उन दिनों यह जगह कैसी रही होगी, इसका कोई प्रमाणिक विवरण नहीं मिलता। लेकिन एवरेस्ट क्षेत्र के जन्म के बारे में लिखे गए कुछ शोध पत्रों और किताबों में इस इलाके की हजारों वर्ष पूर्व की स्थितियों का अवलोकन जरूर मिलता है।

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एवरेस्ट में नेपाल यानी दक्षिण दिशा से आरोहण अभियानों के आरंभ होने से फैरिचे के महत्व में कुछ बदलाव हुआ, हालांकि तिब्बत से व्यापार के दिनों में फैरिचे पशुचारकों और व्यापारियों के पशुओं के लिए एक बेहतरीन पड़ाव होता था। दिंगबोचे मंडी के करीब होने के कारण भी इसकी खासी अहमियत थी। पूर्वी नेपाल में तिब्बत व्यापार के प्रमुख मार्ग के करीब होने के कारण फैरिचे की फैली हुई घाटी पशुचारकों के अलावा आलू और जौ के उत्पादन के लिए भी पहचानी जाती थी। भेड़ों और याकों के कारण पूरी घाटी में उपजाऊ खाद की कमी नहीं रहती थी और अच्छी धूप तथा पर्याप्त पानी की उपलब्धता की वजह से उत्पादन भी अच्छा होता था।

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लेकिन अब हालात कुछ और हैं। ऊपरी फैरिचे में तो कुछ पशु बाड़े और खेत दिखाई देते हैं, लेकिन निचले फैरिचे में तो अब सिर्फ बड़ी-बड़ी इमारतें ही दिखती हैं। इन भवनों में अनेक टी हाउस और छोटे गेस्ट हाउस हैं। मगर फैरिचे की पहचान अब मुख्य रूप से फैरिचे अस्पताल के कारण ही है। जब हम थुकला से फैरिचे की ओर नीचे उतर रहे थे। तब हमें जो इमारत सबसे पहले दिखाई दी थी, वह फैरिचे अस्पताल ही था। ऊपरी फैरिचे के एक पशुबाड़े के करीब पहुंच कर मैंने अपना रकसैक उतारा और कैमरा लेकर पूरी घाटी को अपने करीब रखने के लिए दनादन तस्वीरें खींचने में जुट गया। डूबते सूरज की गुलाबी सी रोशनी में पूरी घाटी उस समय आलौकिक लग रही थी।

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कहीं-कहीं बह रही छोटी-छोटी जलधाराएं चांदी की तरह चमक रही थीं। तो कहीं वे गुलाबी रंगत में नजर आ रही थीं। ताशी ने हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए मुझसे अपनी कुछ तस्वीरें खींचने का आग्रह किया और मैने लेंस उसकी ओर घुमा दिया। नवांग तो पहले ही लोअर फैरिचे तक पहुंच कर रात को ठहरने के इंतजाम में जुट गया था। चूंकि मौसम की गड़बड़ी के कारण हमारी वापसी की योजना थोड़ी बदल गई थी। इसलिए अब हमें मजबूरी में फैरिचे में रूकना पड़ रहा था। हमारे तयशुदा कार्यक्रम में फैरिचे हमारा पड़ाव नहीं था लेकिन हमें वहां पर आसानी से जगह मिलने की संभावना थी क्योंकि फैरिचे में ठहरने वाले ज्यादातर अभियान दल के सदस्य इन दिनों ऊपर शिखरों की ओर जा चुके थे और एवरेस्ट क्षेत्र से पर्वतारोहियों की वापसी का सीजन अभी दस पंद्रह दिन दूर था।

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नवांग से थोड़े से ही पीछे अरूण और राजेन्द्र भी फैरिचे पहुंच गए। राजेंद्र पाइल्स के कारण काफी परेशान था और इसीलिए वो चाहता था कि समय पर पहुंच कर फैरिचे अस्पताल के डाक्टरों की सलाह लेकर अपनी मुसीबत से छुटकारा पा सके। अरूण भी फैरिचे अस्पताल को देखने की जल्दी में था। फैरिचे अस्पताल एवरेस्ट के दक्षिणी मार्ग में सोल खुम्भु क्षेत्र का एकमात्र ऐसा अस्पताल है, जहां आपात स्थितियों में घायल पर्वतारोहियों या बीमारों को उपचार मिल सकता है। 1975 में जापान के सहयोग से यह अस्पताल बना था। अब इसका संचालन हिमालय रेस्क्यू ऐसोसिएषन, एच आर ए के द्वारा किया जाता है।

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एच आर ए का मुख्यालय काठमाण्डू में है। यह अस्पताल मूल रूप से पर्वतारोहण सीजनों में ही खुलता है, यानी पहले मार्च से मई और फिर अक्टूबर से दिसंबर के बीच। सीजन के आरंभ से ही इस अस्पताल में काम करने लिए नेपाली नागरिकों के साथ अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों से फिजीशियन व अन्य डॉक्टर आते रहते थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों को छोड़कर शेष डाॅक्टर प्रायः समाज सेवा सेवक के रूप में काम करते हैं। यह अस्पताल आपात स्थितियों में पर्वतारोही दलों के लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ है।

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अप्रैल 2015 में एवरेस्ट बेस कैंप में भूकंप के कारण हुई तबाही के दौरान इस अस्पताल को भी बहुत नुकसान पहुंचा था, जिसमें कुछ कर्मचारी भी घायल हुए थे। लेकिन अब यह फिर से निर्मित हो चुका है और इंटरनेट के जरिए इसे दुनिया के कई अन्य माउंटेन रेस्क्यू अस्पतालों से जोड़ने के लिए विषेष प्रकार के एंटीना व सौर ऊर्जा के उपयोग से इसे आधुनिक बनाने के नए इंतजाम भी किए गए हैं। लेकिन आम स्थानीय नागरिकों के लिहाज से यह रेस्क्यू अस्पताल बहुत मंहगा अस्पताल है और सामान्य रोगों तथा तकलीफों का निदान करने के लिए यहां ज्यादा सुविधांए भी नहीं हैं।

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फैरिचे का एक अन्य महत्व इसकी स्थिति के कारण भी है। लोबूचे या त्सोला नदी के किनारे 4,371 मीटर की ऊंचाई पर स्थित फैरिचे, एवरेस्ट और अन्य शिखरों का आरोहण करने वाले पर्वतारोहियों के लिए एक आदर्श अनुकूलन पड़ाव भी है। इसी वजह से यहां पर्याप्त संख्या में टी हाउस व होटल आदि बन गए हैं। यहां पर हेलीकॉप्टरों के उतरने के लिए बहुत अच्छी परिस्थितियां हैं। घाटी की चौड़ाई के कारण हेलीकाप्टरों को उड़ान भरने में बहुत आसानी रहती है। हालांकि अनेक बार यहां पर हवाएं तेज भी हो जाती हैं। मगर सुबह जल्दी धूप आ जाने के कारण बहुत सुबह से यहां हेलीकॉप्टरों के पंखों की गड़गड़ाहट सुनाई देने लगती है।

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बीमार और घायलों को निचले इलाकों में ले जाने के लिए भी फैरिचे के हैलीपैड का बहुत इस्तेमाल होता है। कुछ वर्ष पूर्व तक वित्तीय समस्याओं के कारण भी फैरिचे अस्पताल की स्थिति बहुत ठीक नहीं थी, मगर अब एवरेस्ट मेमोरियल ट्रस्ट तथा नेपाल की अनेक शेरपा वैलफेयर संस्थाओं के सहयोग से इस अस्पताल को बेहतर तथा आम स्थानीय लोगों के उपयोग के लिए बनाए जाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। नई योजना में इस बात का भी खास ध्यान रखा जाएगा कि इस अस्पताल में स्थानीय लोगों को भी जरूरत के मुताबिक उपचार मिल सके।

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इसके लिए आरोहियों और घुमक्कड़ों के लिए इलाज की फीस 50 डालर रखी गई जबकि नेपाली नागरिकों के लिए महज 40 नेपाली रूपए। नई व्यवस्था में खुम्भु क्षेत्र में मौजूद सभी लोगों को इलाज की सुविधा देने, लोगों को जागरूक करने के लिए कार्यशालाएं लगाने ओर ऊंचाई जनित रोगों पर शोध के लिए भी प्रयास किए जाएंगे।

फैरिचे अस्पताल को निहारते हुए हमें यह पता ही नहीं लगा कि हम लोअर फैरिचे पहुंच भी गए हैं। छोटी-छोटी जल धाराओं से उपजी नमी में सिर उठा रही घास के गलीचों पर हमारे कदम बहुत सुकून पा रहे थे और फैरिचे की ठंडी हवा हमारे स्वागत में मुस्करा रही थी।

गोविंद पंत राजू



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