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इलाहाबाद हाईकोर्ट 150वीं वर्षगांठ: याद बनकर रह गई वो पुरानी परम्पराएं

साल 1970 से 1980 के दशक में हाईकोर्ट में कार्यरत जज के सामने जब किसी वादकारी का केस दाखिल होता था तो उसे उसी समय स्टे अथवा उसके द्वारा मांगी गई राहत मिल जाती थी।

tiwarishalini
Published on: 1 April 2017 6:49 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट 150वीं वर्षगांठ: याद बनकर रह गई वो पुरानी परम्पराएं
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इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट एक साल से अपने स्थापना की 150वीं वर्षगांठ मना रहा है। विगत वर्ष स्थापना समारोह में प्रेसिडेंट प्रणव मुख़र्जी ने शिरकत की थी और 2 अप्रैल को होने जा रहे समापन समारोह में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हो रहे हैं। इस समापन समारोह में 12 से ज्यादा सुप्रीम कोर्ट के जजों के अलावा वेस्ट बंगाल के गवर्नर केशरीनाथ त्रिपाठी, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर चीफ जस्टिस, विभिन्न हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और कई हाईकोर्ट के जज भी इस समारोह में शामिल हो रहे हैं। इस समारोह में हाईकोर्ट से जुड़ी पुरानी यादें ताजा की जाएंगी, परन्तु वो पुरानी परम्पराएं जो गुजर गई अब वो याद बनकर रह गई हैं।

उन परंपराओं की वापसी अब संभव नही। साल 1970 से 1980 के दशक में हाईकोर्ट में कार्यरत जज के सामने जब किसी वादकारी का केस दाखिल होता था तो उसे उसी समय स्टे अथवा उसके द्वारा मांगी गई राहत मिल जाती थी। उस समय के जजों का कहना होता था कि प्रदेश के दूरवर्ती ज़िलों कुमाऊं व गढ़वाल मंडलो के वादकारियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट आने में कई दिन लग जाते थे। ऐसे में परेशान वादकारियो को राहत दे दी जाती थी।

वादकारी को केस का मेरिट देखे बगैर राहत दे दी जाती थी। जजों का कहना होता था कि जब विपक्षी पार्टी स्टे हटवाने के लिए आएगी तो केस का मेरिट देख स्टे पर आदेश होगा, परन्तु वादकारी को तात्कालिक राहत दी जानी चाहिए। यह तब होता था जब उत्तराखंड यूपी का हिस्सा था। बाद में भी कुछ समय तक पुराने जजों ने इस प्रकार की परंपरा को चालू रखा, किन्तु अब ऐसा नहीं होता।

साल 1990 के दशक तक हाईकोर्ट में यह भी परंपरा रही कि जब कोई जूनियर वकील कोर्ट में पहला केस लेकर बहस के लिए खड़ा होता था तो वहां बैठा सीनियर वकील जज से कहता था कि माई लाॅर्ड इस जूनियर वकील का कोर्ट में पहला केस है तो जज बिना केस का मेरिट देखे उस जूनियर वकील के पक्ष में अंतरिम आदेश कर देता था। यही नहीं परंपराओं की कड़ी में यह भी था की कोई भी जूनियर वकील सीनियर के सामने कुर्सी पर कोर्ट रूम में बैठता नहीं था, परन्तु आज इलाहाबाद हाईकोर्ट की पुरानी उक्त परम्पराएं अब यादों तक ही सिमट कर रह गई हैं। 150वीं वर्षगांठ के समापन समारोह में यादें ताज़ा तो होंगी, लेकिन पुरानी परम्पराएं वापस होना नामुमकिन सी दिखती हैं।



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tiwarishalini

tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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