×

Sparrow Day: बड़ा याद आवे है ऊ दिनवा, चुगते थे दाना जब हम तोरे अंगनवा

Admin
Published on: 19 March 2016 9:38 AM GMT
Sparrow Day: बड़ा याद आवे है ऊ दिनवा, चुगते थे दाना जब हम तोरे अंगनवा
X

लखनऊ: मैं और मेरी सारी सहेलियां अक्‍सर ही खुद से ये सवाल करती हैं कि हमारा पुराना जमाना कितना प्‍यारा था। जिधर भी देखते थे, चारों ओर हरे भरे पेड़ दिखाई देते थे। कितना प्‍यार था, उन दादी-नानियों के दिलों में हमारे लिए, जो अपने घरों की छतों पर हमारे चुगने के लिए दाने बिखेरती थी। जब भी चिलचिलाती धूप से हम हांफते हुए आते थे, तो बड़े- बुजुर्ग पहले ही हमारे लिए मटकों में पानी भरकर रखते थे। जब भी खेतों में किसान आल्‍हा गाते हुए बैलों से खेतों की जुताई करते थे, तो बगुला भाइयों के साथ हमारी भी जमकर दावत होती थी।

spairwwo

अभी और भी है कहानी, सुनो जुबानी

कितने प्‍यारे लगते थे हमारे वो घरौंदे, जो हम मिटटी के कच्‍चे घरों में बनाते थे। हमें लगता ही नहीं था कि हम पक्षी हैं, जब नन्‍हें नन्‍हें शिशु पैरों के बल चलकर हमें पकड़ने की कोशिश करते थे। आज वो बच्‍चे हमारे साथ खेलने के बजाय आधुनिक खिलौनों से खेलते हैं। लोगों ने हमसे हमारे घरौंदे छीनकर, वहां अपने घर बसाने शुरू कर दिए। हमारे जंगलों को काटा जाने लगा। आशियानों को उजाड़ दिया गया। पर हमने किसी से शिकायत नहीं की।

nest

उजाड़ दिया आशियाना

कुछ समय पहले जब मैं एक दिन थक हारकर उसी जगह पहुंची, जहां मेरे पीने के लिए मटके में पानी रखा जाता था। मेरा दिल टूट सा गया। वहां न तो मटका था और न ही पानी। इसके बाद सोंचा हो सकता है कि दादी के पोते-पोतियों ने शायद दाने बिखेरे हो, उन्‍हीं को खाकर खुश हो जाऊंगी। पर जब वहां पहुंची तो देखा कि कोई टीवी देख रहा था, तो कोई मोबाइल में गेम खेल रहा था। किसी को मेरे दाने का ख्‍याल नहीं था। आराम करने के लिए जैसे ही मैं अपने घोंसले पर पहुंची तो मेरी आंखेां से आंसुओं की धारा बहने लगी।

guo

हमें भी जीने दो,तुम्हें जीवन मिलेगा

मैंने देखा मेरा घोंसला हटाकर उस रोशनदान पर एसी लगवा दिया गया है। मुझे अहसास हुआ कि आज का मनुष्‍य हमें भूल गया है। मुझे आज भी याद है कि लोग की नींद हमारी चहचहाट से खुलती थी। लोकगीतों में हमारा जिक्र होता था। हमें संस्‍कृति का अंग माना जाता था। इंसानों ने हमें हर तरह से सताया पर हमने कोई शिकायत नहीं की।

sparo

मैं इंसानों से विनती करती हूं कि मुझे तुम्‍हारे जैसे महलों में रहने का शौक नहीं है। तुम हमारे आशियाने के लिए अपने घरों के बाहर पेड़ लगा दो। पानी पीने के लिए एक छोटा सा मटका रखवा दो। अपने बगीचे में कुछ दाने बिखेर कर हमारी खेती हुई चहचहाट को वापस लाने की एक छोटी सी कोशिश करो।

sprow

कहीं खो गया चहकना

एक जमाना हो गया है हमें अपनी खुद की ही चहचहाट सुने हुए। पर काफी दिनों बाद आज मैं बहुत खुश हूं। मन कर रहा है कि जोर-जोर से फुदकूं। फुर्र से उड़ जाऊं और तमाम आंगनों से दाना चुग लाऊं। मस्‍त गगन में गोते लगाते हुए ऊंची-ऊंची उडानें भरूं। मन कर रहा है कि अपनी सारी सखियों को बुलाकर नदियों की कलकल में छपाक छई करूं। आज मेरा मन कर रहा है कि छतों की मुंडेर पर बैठकर खूब चीं-चीं करूं।

gauri

अपने झरोंखों और रोशनदान के घरौंदों को सजाऊं। पर मेरी ये खुशी कब तक रहेगी, ये मैं भी नहीं जानती। गौरेया दिवस के जाते ही फिर सब अपने अपने कामों में व्‍यस्‍त हो जाएंगे। फिर शायद अगले गौरेया दिवस पर ही हमें याद किया जाएगा, लेकिन मैं आपसे प्रार्थना करती हूं कि हमारे खोते हुए वजूद को बचा लीजिए। मुझे भी इस दुनिया में रहना उतना ही पसंद है, जितना आपको, लेकिन अगर हम ही नहीं रहेंगे, तो आप किसकी चहचहाट से जागेंगे? कौन आपके आंगन में चुगने आएगा? हमें बचा लीजिए।

Admin

Admin

Next Story