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बिना खनके नहीं आती हाथों में सावन की फुहार,चूड़ियां हैं साजन का प्यार

Newstrack
Published on: 26 July 2016 1:49 PM IST
बिना खनके नहीं आती हाथों में सावन की फुहार,चूड़ियां हैं साजन का प्यार
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लखनऊ: हाथों में भरी हरी-हरी चूड़ियां, और उसकी खनक भला किसका मन ना मोह लें। सौभाग्य की प्रतीक चूड़ियों का दौर कभी भी कम नहीं होता है। महिलाओं के सोलह श्रृंगार में से एक है हाथों में पहनने वाली चूड़ियां।

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चूड़ी मोहे सब मन

वैसे तो चूड़ी शादीशुदा को पहनना अनिवार्य होता है ,लेकिन बदलते फैशन ने चूड़ियों के महत्व और अधिक बढ़ा दिया है। अब तो कुंवारी लड़कियां भी चुड़ियां पहनना पंसद करती है। प्राचीन समय की इस परंपरा को आज की मार्डन नारी भी अमल करती है।

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तीज-त्योहारों पर भी चूड़ी की खनक बरकरार

किसी भी तीज त्योहार या फिर सावन में इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। जहां नव-विवाहितों के हाथ हरी-हरी चूड़ियों से भर जाते है। वहीं कॉलेज गोइंग गर्ल भी फैशनेबल दिखने के लिए एक दो-चूड़िया डाल ही लेती है। चूड़ी पहनना केवल हमारी परंपरा नहीं, बल्कि इसके पीछे कई सारे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी है। हर धर्म में चूड़ियां पहनने का क्या रिवाज़ है और इसके पीछे कारण भी बताए गए।

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हर धर्म में जरूरी है चूड़ी

हिंदू धर्म में शादीशुदा महिलाओं को चूड़ियां पहनना जरुरी होता है और ज्यादतर महिलाएं सोने से बने कंगनों के साथ कांच की चूड़ियां पहनती है। वहीं मुस्लिम महिलाओं के लिए शादी के बाद और पहले दोनों समय चूड़ी पहनना जरूरी होता है कहा जाता है कि खाली हाथ किसी को पानी देना गलत होता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार महिला के चूड़ी पहनने का संबंध उसके पति और बच्चे से होता है। कहते है कि इससे इनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है। कुछ धर्मों में तो चूड़ियों के संबंध में इतनी गहरी आस्था है कि महिलाएं चूड़ी बदलने में भी सावधानी बरतती है।कम से कम एक चूड़ी अवश्य ही हो।

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सृष्टि के आरंभ से चूड़ी का चलन

अगर अपने देश में कहा जे कि कब से चूड़ियां पहनने का चलन शुरू हुआ तो इसका जवाब देना थोड़ा मुश्किल होगा, लिकन अंदाजतन सृष्टि के प्रारंभ से ही चूड़ियों का चलन है। ऐसा इसलिए कह सकते है कि देवी-देवताओं की फोटोज में उनको चूड़ी पहने देखा जा सकता है।

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कहीं चूड़ा तो कहीं शाखा-पौला

हमारे देश में चाहे जिस क्षेत्र के लोग हो, चूड़ियां पहनने का उनका रिवाज है। पंजाब में शादी के समय दुल्हन लाल रंग का चूड़ा पहनती है,वहां चूड़ी को ही चूड़ा कहा जाता है। ये चूड़ा पंजाब में सुहाग की निशानी होती है। वहां शादी में खास रूप से एक रस्म के दौरान ये चूड़ा पहनाया जाता है और एक बार पहनने के बाद इसे अगले 40 दिनों तक उतारा नहीं जाता।

वहीं पश्चिम बंगाल में चूड़ियों के रुप में शाखा और पौला पहना जाता हैं। शाखा का रंग सफेद होता है और पौला का लाल। ये दोनों शीप और लाख से बनी चूड़ियां होती हैं, जिन्हें यहां किसी सोने के कंगन से भी अधिक महत्व दिया जाता है। इसके अलावा पूर्वोत्तर में कांच की चूड़ियों को पहनने पर जोर दिया जाता है।

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बस प्लास्टिक की चूड़ी पहनने पर मनाही है। धर्म शास्त्रों में इसे अशुभ माना जाता है। साइंस में कहा जाता है, इससे नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। कांच से बनी हुई चूड़ियां पहनने और उससे आने वाली आवाज से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है। इतना ही नहीं, हिंदू धर्म में कांच की चूड़ियों को पवित्र और शुभ भी माना जाता है।

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रंगों का महत्व भी

चूड़ी चाहे जिस रंग की हो कलाई की शोभा बढ़ाती है, लेकिन फिर भी इसमें कुछ खास रंगों का महत्व है। नववधु को हरी-लाल चूड़ी पहनना चाहिए। कहते हैं हरे रंग की चूड़ी खुशहाली और सौभाग्य के साथ नई शुरुआत करती है। लाल रंग को नारी शक्ति से जोड़ा जाता है। चूड़ियों के लाल रंग में भी कई रंग होते हैं जैसे कि गहरा लाल, हल्का लाल, खूनी लाल, आदि। इन सभी रंगों का अपना महत्व है।

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चूड़ियों से हो भरी-भरी कलाई

वैसे तो आजकल फैशन में लोग 2-3 चूड़ी पहनते है, लेकिन चूड़ियों की जितनी संख्या होगी, उतनी ही अच्छी होती है। आमतौर पर 2-3 चूड़ियां एक कुंवारी लड़की पहने तो वो मानसिक और शारीरिक रूप से ताकतवर बनती हैं।

लेकिन जब ये चूड़ियां संख्या में हों तो इसका महत्व कई बढ़ जाता है। साइंस का भी मानना है कि अगर महिलाएं दोनों हाथों में बहुत सारी चूड़ियां पहने तो ये खास प्रकार की ऊर्जा देती हैं और नारी को बुरी नजर से बचाती है।

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चूड़ी का टूटना होता है अशुभ

चूड़ियों से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इन्हें पहनने का कितना फायदा है ये तो आपने जाना, लेकिन यही चूड़ियां समय आने पर गलत परिणाम भी देती हैं। इसलिए इन्हें संभलकर पहनना चाहिए। ये बहुत कम लोग जानते हैं। ऐसा तब होता है जब चूड़ियां टूटती हैं या फिर उनमें दरार आ जाती है। ऐसी मान्यता है कि चूड़ियों का टूटना उस महिला या उससे जुड़े लोगों के लिए एक अशुभ संकेत लेकर आता है।

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लेकिन साइंस का मानना है कि ये उस महिला के आसपास मौजूद साधारण से काफी अधिक मात्रा की नकारात्मक ऊर्जा का परिणाम होता है। जिसके चलते ये ऊर्जा आभूषणों में से सबसे पहले उसकी चूड़ियों पर प्रहार करती है। चूड़ियों के टूटने के साथ उनमें दरार आ जाना ही अशुभ माना जाता है।

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ऐसा होने पर स्त्री को चूड़ियां उतार देनी चाहिए। साइंस के अनुसार चूड़ियों में दरार आने का मतलब नकारात्मक ऊर्जा से है। ये ऊर्जा उसकी चूड़ियों के भीतर जगह बनाती है और उन्हें धीरे-धीरे नष्ट करती है। यदि दरार आने पर भी ये चूड़ियां उतारी ना जाएं तो ये औरत के हेल्थ पर असर डालती हैं।



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