×

VIDEO:टीले से निकला इतिहास, खुदाई में मिली हजारों साल पुरानी मूर्तियां

Admin
Published on: 10 April 2016 3:30 PM GMT
VIDEO:टीले से निकला इतिहास, खुदाई में मिली हजारों साल पुरानी मूर्तियां
X

गोरखपुर: इंटेक लोकल चैप्टर की सूचना पर यूपी आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट की टीम ने शनिवार को बांसगांव तहसील के तालडीह का सर्वे किया। टीम को यहां भगवान नीलकंठ मंदिर के पास के टीले की ऊपरी सतह से कुषाण, गुप्त, बुद्ध और राजपूतकालीन अवशेषों के साथ ही कई अन्य कालों के अवशेष मिले हैं।

नीचे देखिए वीडियो...

600 ईसा पूर्व के मिले अवशेष

ऐतिहासिक सभ्यता के महत्व की दृष्टि से इस स्थान पर ईसा पूर्व से कुषाण काल तथा मध्य काल तक तीन काल खंडों का इतिहास छिपा है। यहां पर तालडीह के टीले की सामान्य सतह से मिल रहे पुरावशेष तथा पात्रावशेष लगभग 600 ईसा पूर्व से मध्यकाल के 1206 ई. तक के हैं।

5 एकड़ क्षेत्रफल में फैला है

करीब 5 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस टीले की ऊंचाई 7 मीटर है। जबकि 10 से 12 मीटर की ऊंचाई का क्षरण हो चुका है। उस टीले के नीचे तीन काल खंडों का सांस्कृतिक महत्त्व छुपा है। ऐसे में यह टीला पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लेकिन दुर्भाग्यवश इस विरासत का संरक्षण नहीं हो पा रहा है।

gorakhapur-2

क्या मिला अवशेषों में ?

-यहां टीले से सिक्के, बुद्ध की मूर्ति, कुएं से मूर्ति सहित कई प्राचीन अवशेष ऊपरी सतह से मिले हैं।

-ये अवशेष 2000 से 3000 साल पुराने हैं।

-यहां से 1401 साल पुराना एक सिक्का भी मिला है।

-एक ऐसी ईंट भी मिली है जिस पर धान की भूसी और पुआल से की गई जुड़ाई के प्रमाण मिले हैं।

-यहां से मि‍ले अवशेष कुषाण काल, गुप्त काल, बुद्ध काल और राजपूत काल के हैं।

6000 साल पहले खेती के मिले प्रमाण

-संतकबीरनगर जिले के लहुरादेवर गांव में 6000 वर्ष पहले खेती किए जाने के प्रमाण मिले हैं।

-नवपाषाण काल तक के अवशेष धुरियापार, नरहन और खैराडीह गांव से मि‍ले थे।

-2300 वर्ष पूर्व का चंद्रगुप्त मौर्य के समय का तामपत्र कौड़ीराम के पास सोहगौरा से मि‍ला था।

gorakhpur-4

क्या लिखा है अभिलेख में?

-इस अभिलेख में श्रावस्ती के अमात्य को चंद्रगुप्त मौर्य ने वंशग्राम (बांसगांव) के अधिकारी को आदेश दिया है कि सोहगौरा में दो मंजिला भवन बनाया जाए।

-वहां अनाज रखा जाए ताकि अकाल के समय उसे जनता में वितरित किया जा सके।

-बुद्धकाल के अवशेष रामग्राम (वर्तमान में रामगढ़ताल), महराजगंज में देवदह और सिद्धार्थनगर के कपिलवस्तु में मि‍ले हैं।

इतिहास के आईने में :

इंटेक लोकल चैप्टर गोरखपुर के इतिहासकार पीके लाहिड़ी ने बताया, कि तालडीह क्षेत्र कौशल राजा का अंतिम सीमा रहा है। राजमहल को छोड़कर वैराग्य जीवन की यात्रा पर निकले गौतम बुद्ध रथ पर सवार होकर इस जगह तक आए थे। उन्होंने आमी नदी के तट पर राजश्री वस्त्र एवं आभूषण का त्याग कर दिया। अपने बाल मुंडवा कर आमी नदी में स्नान किया और वैरागी चोला धारण कर लिया। इसके बाद वर्तमान में बिजुलिया बाबा स्थान पर एक पखवारे तक डेरा जमाया। जिसके बाद कोल वासियों के क्षेत्र में कसीहार चले गए।

क्या कहना है इतिहासकार पीके लाहिड़ी का ?

इसलिए आज से इस स्थान को एक ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक सभ्यता के महत्व के धरोहर के रूप में संरक्षित करने की जरूरत है। प्रशासन उन्हें संरक्षित नहीं कर पा रहा है। यदि‍ इन ऐतिहासिक धरोहरों पर सरकार और प्रशासन रुचि ले तो हम केवल भगवान बुद्ध को लेकर इसे बड़े पर्यटक स्थल के रूप में विकसित कर सकते हैं।

Admin

Admin

Next Story