TRENDING TAGS :
HERITAGE DAY: काशी के इस ऐतिहासिक इलाके का क्या है मोदी कनेक्शन
वाराणसी: मोक्ष की नगरी काशी का जिक्र हो और पीएम नरेद्र मोदी की बात ना हो भला कैसे संभव है। वैसे भी जब काशी की बात आती है तो मोदी को उससे जोड़कर ही देखा जाता है। इस बार उनका कनेक्शन बनारस के सांसद के नाते नहीं, बल्कि काशी के चौखंबा इलाके से उनका कनेक्शन उनके गृह राज्य गुजरात के मूल निवासियों के बसे होने के कारण है। इस इलाके को काशी का मिनी गुजरात भी कहते है। यहां के लोगों ने 2014 लोकसभा चुनावों में पीएम मोदी को सांसद बनाने में अपनी अहम् भूमिका अदा की थी।
400 साल पुरानी है चौखंबा की कहानी
बनारस के चौखंबा इलाके में लगभग 400 साल पहले गुजरात के कई लोग काम-धंधे की तलाश में आकर बस गए थे। इस मोहल्ले का नाम चौखम्बा पड़ने के पीछे की कहानी है कि उस समय देश में मुगलों का शासन था और उन्होंने शाही नालों और चार खंभों का निर्माण कर उसपर इस इलाके को बसाया था। ये इलाका काशी का सबसे घनी आबादी वाला इलाका है और अपने आप में एक सांस्कृतिक धरोहर समेटे है। इस इलाके में आज के समय 50 हजार से अधिक गुजराती समुदायों के लोग रहते हैं। इस इलाके में गुजरात कि शायद ही कोई प्रमुख जाति हो जिसके लोग न रहते हों।
ठाकुर जी के भव्य मंदिर में दर्शन करने आते हैं गुजराती
गुजरातियों के पूर्वज जामनगर, भावनगर, अहमदाबाद, राजकोट और खेड़ा जैसे इलाकों से आए थे। 16 जातियों के लोग चौखंबा में रहते हैं। नागर, खेड़ावाल, अवधीच, वैश्य, दिशावाल, गुजराती ब्राह्मण, शाह समेत कई प्रमुख बिरादरियों के करीब 50 हजार से ज्यादा गुजराती लोग निवास करते हैं। बाद में इस इलाके को यहां के आर्किटेक्चर की वजह से चौखम्बा कहा जाने लगा।
यहां के मशहूर फोटोग्राफर विनय त्रिपाठी बताते हैं कि जब गुजराती लोग रोजगार की तलाश में बनारस आए तो वे ज्यादातर पक्केमहाल, मैदागिन के पास कालभैरव, चौखंबा, सोरकुआ, और सुड़िया में बस गए। इस इलाके में आकर बसे एक सेठ गिरधर लाल जी महाराज काशी वाले ने ठाकुर जी का भव्य मंदिर बनवाया। यहां गुजरात से आने वाले टूरिस्ट और दर्शनार्थी दर्शन करने के लिए आते हैं। यहां से निरंतर धार्मिक, साहित्यिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और सामाजिक अनुष्ठान परिचालित होते रहते हैं।
यहां अंग्रेजों ने बनाया शाही सुरंग को नाला
मुगलों द्वारा चौखंबा इलाके में बनवाया गया शाही नाला अपने आप में एक रहस्य है। शहर के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि इस नाले के चौड़ाई इतनी है कि जरुरत पड़ने पर यहां से दो-दो हाथी एक साथ गुजर जाते थे। मुगल काल में इसे शाही सुरंग के नाम से जाना जाता था। अंग्रेजों ने इस सुरंग का इस्तेमाल बनारस की सीवीर समस्या को सुलझाने में किया। 1827 में जेम्स प्रिंसेप के नक़्शे के आधार पर इस सुरंग को सीवर में तब्दील करने का काम पूरा हुआ था।
इस नाले को लाखौरी ईंट और बरी मसाला से बनवाया गया था। इस रहस्यमयी नाले के बारे में आज तक किसी को पूरी जानकारी नहीं है। बनारस के अलग-अलग इलाकों के लोग बताते हैं कि ये नाला अस्सी, भेलूपुर, कमच्छा, गुरुबाग, गोदौलिया गिरिजाघर, बेनियाबाग, चौक, पक्का महाल, मछोदरी होते हुए कोनिया तक 24 किलोमीटर की लम्बाई में है।