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आप भी चबाते है च्युइंग गम, जानिए क्या होने वाला है आपके साथ
जयपुर:च्युइंग गम से लेकर ब्रेड तक में डाले जाने वाले संरक्षक पदार्थो से छोटी आंत की कोशिकाओं के पोषक पदार्थो के शोषित करने की क्षमता और रोगाणुओं को रोकने की क्षमता में कमी आ सकती है। शोध के मुताबिक, टाइटेनियम डाईऑक्साइड यौगिक का अंतर्ग्रहण करीब टाला नहीं जा सकता। यह हमारे पाचन तंत्र में टूथपेस्ट के जरिए पहुंच सकता है, जिसमें टाइटेनियम डाईऑक्साइड सफाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ऑक्साइड का इस्तेमाल कुछ चॉकलेट्स में चिकनाहट लाने के लिए भी किया जाता है।
कई लोगों को च्युइंग गम खाने की आदत बुरी लगती है लेकिन अब इसके फायदे भी सामने आए हैं। शरीर को कुछ विटामिन देने में च्युइंग गम प्रभावी साबित हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने कहा कि ह आदत दुनियाभर में विटामिन की कमी की गंभीर समस्या को कम करने में मददगार साबित हो सकती है। पहली बार शोधकर्ताओं ने च्युइंग गम के जरिए शरीर तक विटामिन पहुंचाने का अध्ययन किया है। अमेरिका में पेन्सिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर जोशुआ लैम्बर्ट ने कहा, मैं थोड़ा हैरान हूं कि बाजार में च्युइंग गम के इतने उत्पाद होने के बावजूद किसी ने भी इससे पहले ऐसा अध्ययन नहीं किया।
उन्होंने कहा, चूंकि पौष्टिक च्युइंग गम पूरक आहार की श्रेणी में आते हैं, तो उनके प्रभाव की जांच करने की जरुरत नहीं है। शरीर तक विटामिन पहुंचाने में च्युइंग गम की भूमिका के बारे में पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने 15 लोगों को च्युइंग गम दिए और उनकी लार में आठ विटामिनों के स्तर को मापा।
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न्यूयॉर्क के बिंघमटन यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर ग्रेतचेन महलेर ने कहा, 'टाइटेनियम ऑक्साइड एक आम खाद्य संरक्षक है और लोग इसे एक लंबे समय से अधिक मात्रा में खाते आ रहे हैं। चिंता मत कीजिए यह आपको मारेगा नहीं, लेकिन हम इसके दूसरे सूक्ष्म प्रभावों में रुचि रखते हैं और समझते हैं कि लोगों को इस बारे में जानना चाहिए।'
शोधकर्ताओं ने कोशिका कल्चर मॉडल के जरिए छोटी आंत का अध्ययन किया। चुइंग गम की थोड़ी मात्रा ज्यादा प्रभाव नहीं डालती, लेकिन दीर्घकालिक प्रयोग आंत की कोशिकाओं के अवशोषण के उभारों को कम कर सकती है। इन अवशोषण करने वाले उभारों को माइक्रोविलाई कहते हैं।
माइक्रोविलाई के कम होने से आंत की रोकने की क्षमता कमजोर होगी, उपापचय धीमा होगा। कुछ पोषक पदार्थ, जैसे- आयरन, जिंक और वसा अम्ल का अवशोषण काफी मुश्किल होगा। इस शोध का प्रकाशन पत्रिका 'नैनोइम्पैक्ट' में किया गया है।