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कुली अब कहलाएंगे सहायक, जानिए नाम बदलने के पीछे की पूरी कहानी
नई दिल्ली: रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रेल बजट पेश में कई अहम घोषणाएं कीं। लेकिन सबसे अधिक चर्चित है कुलियों का नाम पर पहचान बदलना। रेल मंत्री ने कुलियों को अब सहायक या हेल्पर नाम दिया है।
कैसे पड़ा यह नाम
दिल्ली से बीजेपी सांसद महेश गिरी ने दावा किया है कि उन्होंने रेल मंत्री सुरेश प्रभु से कुलियों का नाम बदलने की अपील की थी। इसके लिए उन्होंने 21 फरवरी को रेलमंत्री से मुलाकात की थी और उन्हें एक ज्ञापन सौंपा था।
क्या दिया तर्क
-अपने फेसबुक वॉल पर सांसद ने लिखा है-कुली एक औपनिवेशकवादी मानसिकता से निकला हुआ नाम है।
-19वीं शताब्दी में ब्रिटिश ने इस शब्द का इस्तेमाल शुरू किया था। लेकिन आज तक इन्हें उसी नाम से पुकारा जाता है।
-यह शब्द उनके लिए ठीक नहीं। इससे वो खुद को हीन महसूस करते हैं।
-इसलिए उनका नाम कुली से बदलकर यात्रा मित्र कर दिया जाए।
रेल मंत्री को धन्यवाद
-सांसद ने कहा-रेलमंत्री ने मेरे निवेदन को स्वीकारा और 4 दिन के भीतर उस पर निर्णय भी आ गया।
-मुझे यह जानकर बहुत खुशी हो रही है कि हमारे कुली भाई अब से "सहायक" के तौर पर जाने जाएंगे।
-मैं सुरेश प्रभु जी का अपनी और सभी 'सहायक' भाइयों की ओर से धन्यवाद करता हूं।
ड्रेस भी बदलेगी
-नाम के साथ अब कुलियों की पहचान भी बदलने की घोषणा की गई है। कुलियों की वर्दी अब लाल नहीं नीली होगी।
-रेल मंत्री ने कहा है कि सहायकों का पूरा ड्रेस कोड जल्द ही जारी कर दिया जाएगा।
'कुली' का इतिहास
-कुलियों की पहचान भारत में करीब 150 सौ साल पुरानी है।
-1727 में कुली शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया गया था।
-तब इस शब्द का इस्तेमाल बंदरगाहों पर सामान उठाने वालों के लिए किया गया।
-ब्रिटिश लोग कुलियों को दूसरी कॉलोनी (उपनिवेशों) में काम करने के लिए भेजते थे।