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गुजरात की इस महिला ने बनवाया है ये मंदिर, लेकिन खुद नहीं कर सकती पूजा

suman
Published on: 6 Aug 2016 4:16 PM IST
गुजरात की इस महिला ने बनवाया है ये मंदिर, लेकिन खुद नहीं कर सकती पूजा
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अहमदाबाद: कुछ दिनों पहले गुजरात में एक घटना घटी, जिसमें दलितों की पिटाई का मामला सामने आया था। इस पिटाई की वजह सिर्फ ये थी कि वे लोग मरी हुई गाय की खाल निकाल रहे थे। अभी ये मामला पूरी तरह भी शांत नहीं हुआ कि एक और खबर सामने आई है। ये मामला गुजरात के एक गांव रहमलपुर का है। यहां पिंटूबेन नाम की एक महिला है जिसने खुद के 10 लाख रुपए खर्च करके गांव में एक शिव मंदिर बनवाया है, लेकिन वे खुद इस मंदिर के अंदर जाकर पूजा नहीं कर सकती है क्योंकि वो दलित है।

सरपंच का जब है ये हाल तो बाकी.....

पिंटूबेन दलित है और रहमलपुर गांव की प्रधान सरपंच है। इसके बावजूद वो मंदिर के अंदर नहीं जा सकती है। समाज में दलितों के साथ भेदभाव की घटनाएं चर्चा में आए दिन रहती है। लेकिन जिन हरिजनों के लिए गांधीजी ने संघर्ष किया। उन्हें संविधान में हक दिला दिया। पर आज भी उन्हें अपने लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

आरक्षण की वजह से पिंटूबेन गांव की सरपंच है। पर समाज की नजरों में आज भी वे दलित है। आपको बता दें उन्होंने संरपंची के पैसों से नहीं, बल्कि खुद के पैसे से गांव में मंदिर निर्माण करवाया। पर समाज ने उनके द्वारा बनवाया मंदिर भले ही स्वीकार कर लिया, लेकिन उनका मंदिर में प्रवेश नहीं पचा पा रहा है इसलिए उन्हें जाने से मना कर रखा है। जब मीडिया ने उनसे पूछा कि क्या वो मंदिर में पूजा नहीं करना चाहती है तो उन्होंने कहा कि वे मंदिर जाना चाहती है, लेकिन लोगों को उनका मंदिर में जाना पसंद नही है।

pintooben

आज भी दलितों को नहीं मिले है अधिकार

आर्थिक रूप से समृद्ध पिंटूबेन समाज का प्रतिनिधित्व करती है। पर खुद के अधिकार के लिए लड़ना पड़ रहा है। जब उनका ये हाल है तो अन्य पिछड़े तबका का क्या हाल होगा। एक मैग्जीन में छपी खबर के अनुसार गुजरात में ये केवल एक पिंटूबेन की कहानी नहीं, बल्कि उनके जैसे पूरा दलित समाज उपेक्षित है अपने अधिकारों से। यहां के कोठा गांव और उनावा गांव में आज भी दलित समाज अन्य लोगों के साथ उठ-बैठ नहीं सकते हैं और ना ही मंदिरों में प्रवेश कर सकते हैं। ना ही उनको भगवान का प्रसाद मिल सकता है।

सच कहा जाए तो हम पिंटूबेन की धार्मिक भावना और आस्था की कद्र करते हैं। फिर भी ये जरूर कहेंगे कि वे अगर बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों पर चलते हुए मंदिर की जगह विद्या का मंदिर बनवाती तो समाज का उत्थान होता और दलितों को अपने हक के लिए लड़ना नहीं पड़ता । बाबा साहेब ने कहा था कि दलितों को जागरूक, शिक्षित और संगठित होना चाहिए ताकि वे अपने सही विकास की ओर बढ़ सके। वैसे भी इतिहास गवाह है कि धर्म के नाम पर उन्हें समाज से उपेक्षा ही मिली है और इन घटनाओं ने साबित कर दिया कि उन्हें शायद आगे भी ये उपेक्षा झेलना पड़े।



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