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विश्व भर में मनाया जाता है दीपों का पर्व, इंद्रधनुषी हैं परंपराओं के रंग

दुबई में भी इंडियन्स इस त्योहार को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस साल मैं दुबई में ही हूं। हमने पूरे घर की सफाई की है। माता लक्ष्मी के स्वागत के लिये हम पूरे घर को डेकोरेट करेंगे। घर में दीपक जलाएंगे। पूजा पाठ करेंगे। ट्रेडिशनल कपड़े पहनेंगे। एक दूसरे के साथ मिठाई बांटेंगे। यहां फ़रारी वर्ल्ड में दिवाली के अवसर पर ढोल की धुन पर लोग झूमते हैं।

zafar
Published on: 30 Oct 2016 5:53 AM GMT
विश्व भर में मनाया जाता है दीपों का पर्व, इंद्रधनुषी हैं परंपराओं के रंग
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विश्व भर में मनाया जाता है दीपों का पर्व, इंद्रधनुषी रंगों में बिखरी है परंपराओं की रोशनी

दुनिया का कोई कोना हो, रोशनी हर जगह एक सी ही दिखती है। न तो इस पर मौसम का असर होता है, न भाषा, संस्कृति या परिधान का। वह हर रंग, हर रूप को खुद में समा लेती है। इसलिए, दीपावली की चटख रंगीन और शीतल रोशनी भी पूरे विश्व में एक जैसी ही आकर्षक और लुभावनी होती है। तौर-तरीके भले अलग हों, लेकिन श्रद्धा और उत्साह पर देश की सीमाओं का कोई बंधन नहीं होता। लंदन से मधु चौरसिया ने NEWSTRACK के लिए समेटे हैं- दुनिया भर में मनाए जाने वाले दीपों के इस त्योहार के कुछ रंग।

लंदन: दीपावली का त्योहार अब ग्लोबल होता जा रहा है। पूरी दुनिया में बसे भारतीय इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं। दुनियाभर के शहरों में लाइट फ़ेस्टिवल्स का चलन बढ़ता जा रहा है। हम भारतीय दुनिया के किसी भी कोने में हों, इस दिन गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करते हैं। अमेरिका, केनेडा, इंग्लैड, यूरोप, रूस, मंगोलिया, दुबई, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, सिंगापुर, नेपाल, मलेशिया और कई देशों में भारतीय पारंपरिक तौर से यह त्योहार मनाते हैं। अब तो विदेशी भी इस त्योहार में शिरकत करने आते हैं। उन्हें भी भारत के त्योहार काफी आकर्षित करते हैं। विदेशों में तो बॉलिवुड का जलवा भी देखने को मिलता है।

नियम हैं अलग

हालांकि विदेशों में लोगों को कुछ परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। विदेशों में घर ज्यादातर लकड़ियों के बने होते हैं। ऐसे में वहां आग जलाने की सुविधा नहीं होती। न ही वहां भारत की तरह आप पूरे घर को दीप या इलेक्ट्रिक लाइट्स से सजा सकते हैं। घर के बाहर भी दीपक जलाना मुश्किल होता है। काफी निगरानी के साथ जलाना पड़ता है और जब तक लौ बुझ न जाए, सामने रहना पड़ता है। मिट्टी के दीपक जलाए भी जाएं तो हर दरवाज़े पर रखना मुश्किल होता है। क्योंकि तुरंत फ़ायर अलार्म बजना शुरू हो जाता है। रंगोली बनाना भी आसान नहीं होता क्योंकि घरों में कार्पेट बिछा होता है। पटाख़े जलाने के लिये भी कई देशों में अनुमति लेनी पड़ती है।

अलग हैं तौर तरीके

त्योहार वाले दिन कोई सरकारी छुट्टी नहीं होती। ठंड की वजह से पारंपरिक परिधान पहनना थोड़ा मुश्किल होता है। धनतेरस पर बाजारों में वैसी रौनक देखने को नहीं मिलती, जितनी अपने देश में देखने को मिलती है। जो लोग परंपराओं को मानते हैं वे ही धनतेरस पर सोने चांदी की चीज़ें या बर्तन ख़रीदते हैं। घर की साफ़ सफ़ाई दिवाली से पहले ही हो ऐसा जरूरी नहीं होता। अपने देश में तो दिवाली से पहले युद्ध स्तर पर घर की सफ़ाई और रंगाई पुताई का काम होता है। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं होता। कुछ लोग तो दोस्तों के साथ मिलकर यह त्योहार मनाते हैं लेकिन कुछ लोग परंपरा को मानते हैं और वो इस दिन शाम की पूजा के बाद घर से बाहर नहीं निकलते। माना जाता है कि ऐसे में लक्ष्मी रूठ जाती हैं।

सब होते हैं शामिल

इंग्लैंड में भी यह त्योहार धूमधान से मनाया जाता है। इस त्योहार के महत्व के बारे में अब तो ब्रिटिश नागरिकों को भी जानकारी है। इस साल लंदन के मेयर ने ट्रफैल्गर स्क्वायर में एक कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें पूरी दुनिया के लोग शामिल हुए। इस कार्यक्रम में भारत की रंगबिरंगी छवि देखने को मिली। रंगारंग कार्यक्रमों का विदेशी नागरिकों ने भी जमकर लुत्फ उठाया। हिन्दी, पंजाबी, गुजराती, तमिल, केरल के गीत की धुन पर श्रोता झूम झूम कर नाचे। रंग-बिरंगी लाइट्स और लज़ीज पकवानों ने सबका मन मोह लिया। इंग्लैंड में हर साल ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। पर ये आयोजन दीपावली के दिन नहीं होता अमूमन ऐसे आयोजन जगह जगह किये जाते हैं और ख़ासतौर पर इन्हें वीकएंड में रखा जाता है।

लंदन में बसी मोनिका मित्तल बताती है कि हम लगातार चार सालों से दिवाली समारोह का आयोजन कर रहे हैं जिसमें हर धर्म वर्ग के लोगों का स्वागत होता है। इस आयोजन में काफी लोग शामिल होते हैं। अपने वतन से दूर लोग त्योहारों में परिवारजनों को याद करते हैं। ऐसे में हम लोगों को एक छत के नीचे लाते हैं। जहां वो अपने सारे गम भूलकर सबके साथ मिलकर इन्जॉय करते हैं। हम हॉल को पारंपरिक तरीके से सजाते हैं। पूरी फैमिली के लिये ये एक एंटरटेनमेंट पैकेज होता है। जिसमें बच्चे कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। जैसे रामायण का मंचन बच्चों द्वारा किया जाता है। कुछ टैलेंट शो का आयोजन होता है, बच्चों का फैशन शो जिसमें बच्चे सभी राज्यों के पहनावों का प्रदर्शन करते हैं। बॉलिवुड डांस, सॉन्ग, क्लासिकल डांस, कल्चरल डांस होता है।

डिप्टी मेयर सभा को संबोधित करते हैं। सभी स्टेट्स की डिश के स्टॉल्स यहां होते हैं। जिनमें चाट, पकौड़े, जलेबी, पानीपूरी, समोसे, गुजराती ढोकला, इडली, फालूदा, चिकेन रोल, वड़ा-पॉव, हैदराबादी बिरयानी, कबाब और भी कई तरह के पकवान शामिल होते हैं। आर्टिफीशियल ज्यूलरी, कपड़े, मेंहदी, फेस पेंटिंग की भी व्यवस्था होती है। लोगों को उपहार स्वरूप इंडियन कैलेंडर देते हैं। कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले बच्चों को भी गिफ्ट दिया जाता है। आयोजन की तैयारी में महीनों लग जाते हैं। यहां चूंकि ज्यादातर बच्चे इंग्लिश समझते हैं इसलिये पहले हम रामायण की स्टोरी इंग्लिश में सुनाते हैं। फिर उन्हें हिन्दी में स्टोरी समझाई जाती है। पटाखों और फायरवर्क के लिये हमें पहले ही काउन्सिल से और सेफ्टी डिपार्टमेंट से अनुमति लेनी पड़ती है।

शिकागो से प्रीती अपने अनुभव शेयर करती हैं। वह कहती हैं- मैं शिकागो शहर से दूर रहती हूं। और इस साल पहली बार दिवाली पर अपने देश से दूर हूं। ऐसे में यहां ज्यादा दोस्त नहीं बने हैं। इस दिन सुबह से उपवास रखती हूं। घर में पूजा पाठ करती हूं। मंदिर जाती हूं। शाम को हम अपने कुछ ख़ास दोस्तों को घर पर बुलाते हैं। सब साथ बैठकर मस्ती करते हैं। तंबोला गेम खेलते हैं। सभी दोस्त ट्रेडिशनल ड्रेस में आते हैं। लेकिन अगले दिन सोमवार है तो सब थोड़ा जल्दी चले जाएंगे। मिठाइयां बनाती हूं। अच्छे अच्छे पकवान बनाती हूं। सब साथ मिलकर खाना खाते हैं।

अमेरिका में काफी भारतीय हैं। इसलिये यहां त्योहार से संबंधित सामग्री आसानी से मिल जाती है। आम के पत्ते, पान के पत्ते , फूल, तोरन, दीपक, मिटट् के खिलौने, रंगोली का सामान और आर्टिफीशियल रंगोली मिल जाती है। घर में दीपक जलाना थोड़ा मुश्किल होता है। पिछले साल एक दोस्त ने घर में 16 दीपक जलाए थे और अचानक एक पेपर ने आग पकड़ ली। फायर अलार्म बजने लगा। जल्दी ही उन लोगों ने आग पर काबू पा लिया। हम घर में कम ही दीपक जलाते हैं और अपनी आंखों के सामने ही उसके बुझने का इंतजार करते हैं।

कनाडा में काफी पंजाबी रहते हैं। वहां की दूसरी भाषा के तौर पर पंजाबी को शामिल किया गया है। ऐसे में वहां भी लोग बड़े उल्लास से यह त्योहार मनाते हैं। पूजा पाठ की सामग्री भी आसानी से मिल जाती है। लेकिन वहां इन दिनों ठंड काफी होती है। ऐसे में, लोग घर से बाहर कम ही निकल पाते हैं। हालांकि रूरल एरिया में त्योहार पर ज्यादा रौनक देखने को नहीं मिलती।

नीदरलैंड में बसी शिखा के अपने अनुभव हैं। कुछ कसक है अपनी मिट्टी से दूर त्योहार मनाने की। वह कहती हैं- यूरोप में भी दीवाली धूमधाम से मनाई जाती है। यहां ज्यादातर घरों में दीपक जलाना संभव नहीं होता। न ही पटाख़े फोड़ना। इसलिये हम कुछ दोस्तों को घर पर बुलाते हैं। मनपसंद भोजन बनाते हैं। पूजा पाठ करते हैं और पटाखे जलाने के लिये किसी पार्क या खुली जगह जाते हैं। त्योहार के अवसर पर मैं इंडिया को बहुत मिस करती हूं। वहां के स्वादिष्ट पकवानों को मिस करती हूं। यहां हम त्योहार तो मनाते हैं पर इंडिया में त्योहार से पहले जैसी रौनक होती है वैसी विदेशों में नहीं होती।

इंडिया में महीनों पहले से ही रात को पटाखों की रौशनी देखने लायक होती है। यहां ऐसा कुछ नहीं होता। वहां लोग अपने घरों को पूरी तरह रौशनी से सराबोर करते हैं। पूरा शहर रौशनी से नहाया प्रतीत होता है। यहां मुश्किल से हम दीप भी जला पाते हैं, वहां महीनों पहले से लोगों में जो उत्साह होता है, उसे मिस करती हूं। वैसे, जर्मनी की राजधानी बर्लिन में भी अक्टूबर में रोशनी का ये त्योहार मनाया जाता है। उस समय पूरा शहर रोशनी से नहाया प्रतीत होता है।

प्रियंका मिश्रा, दुबई में बसी हुई हैं। वह बताती हैं- मैं दुबई में पिछले 5 साल से रह रही हूं। जब भी कोई त्योहार आता है, देश की बहुत याद आती है। लेकिन दुबई में भी इंडियन्स इस त्योहार को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हर साल मैं दिवाली सेलिब्रेशन के लिये इंडिया चली जाती थी। लेकिन इस साल मैं दुबई में ही हूं। हमने पूरे घर की सफाई की है। माता लक्ष्मी के स्वागत के लिये हम पूरे घर को डेकोरेट करेंगे। घर में दीपक जलाएंगे। पूजा पाठ करेंगे। ट्रेडिशनल कपड़े पहनेंगे। एक दूसरे के साथ मिठाई बांटेंगे। यहां फ़रारी वर्ल्ड में दिवाली के अवसर पर ढोल की धुन पर लोग झूमते हैं। बॉलिवुड डांस प्रस्सुत किये जाते हैं। लेज़र शो का आयोजन होता है। यहां कई रेस्तरां में इस ख़ास अवसर पर भारतीय व्यंजनों पर कई ऑफ़र्स होते हैं।

प्रेम, वियतनाम में रहते हैं। वह कहते हैं- वियतनाम में रहनेवाले भारतीय भी ये त्योहार हर साल मनाते हैं। यहां बॉलिवुड संगीतकारों को बुलाया जाता है। भारतीय एक जगह एकत्र होते हैं। जहां सब मिलकर एक साथ त्योहार मनाते हैं। खाना-पीना होता है नाच-गान होता है और गिफ़्ट और मिठाइयां एक्सचेंज होती हैं। इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स हर साल दिवाली पर आयोजन करता है। जहां हर भारतीय का स्वागत होता है। इसके लिये कुछ इंट्री फी रखी जाती है। मैं वहां हर साल जाता हूं। इंडियन्स से मिलता हूं। वहां इंडियन फूड की व्यवस्था होती है।

बॉलीवुड बेस्ड प्रोग्राम होता है। जिसका हम सब मिलकर लुत्फ उठाते हैं। हालांकि अपनी फैमिली को बहुत मिस करता हूं। लेकिन इंडियंस के साथ ये गेट-टुगेदर भी काफी मजेदार होता है। इंडिया में मैं खूब पटाखे जलाता था लेकिन यहां पटाखों पर पाबंदी होती है। धनतेरस पर भी लोगों में खरीदारी का वो क्रेज देखने को नहीं मिलता जो भारत में है।

ऑस्ट्रेलिया में रह रही श्वेता यहां भी दिवाली का पारंपरिक ढंग से भरपूर आनंद लेती हैं। वह कहती हैं- मेलबर्न में हम हर साल इस दिन मंदिर जाते हैं। घर पर भी पूजा करते हैं। मेरे पति को घर पर यह त्योहार सेलिब्रेट करना पसंद है। हालांकि मेलबर्न में हर साल फ़ोडरेशन स्क्वायर पर दिवाली समारोह का आयोजन किया जाता है जिसमें बॉलीवुड का जलवा देखने को मिलता है। यहां फ़ूड स्टॉल्स भी लगाए जाते हैं। इस आयोजन में भारतीय ही नहीं मूल ऑस्ट्रेलियन सहित बाक़ी देश के लोग भी शामिल होते हैं और जमकर आयोजन का लुत्फ़ उठाते हैं। वहां की सबसे ऊंची इमारत से आतिशबाज़ी की जाती है। यहां भी दिवाली से पहले वाले वीकएंड ही इस कार्यक्रम का आयोजित होता है।

रूस में भी भारतीय इस त्योहार को मनाते हैं। घरों में ही वो पूजा पाठ करते हैं। घर में दीप प्रज्वलित करते हैं। लेकिन घर से बाहर दीप जलाने की अनुमति वहां भी नहीं होती। घर के आसपास पटाखे जलाते हैं। परंतु वहां के नियम कानून के दायरे में रहकर ही। मॉस्को में भारत के काफी छात्र रहते हैं। यहां भरतीय समुदाय के लोग दीवाली का आयोजन करते हैं। जिसमें भारतीय फ़ैमिली के साथ साथ विदेशी छात्र भी शामिल होते हैं।

आगे स्लाइड्स में देखिए विदेशों में दीपों के उत्सव के कुछ और रंग

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