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ये है वर्दी वाला 'जलगुरु', क्राइम कंट्रोल के साथ पानी बचाने में जुटा है शिद्दत से

aman
By aman
Published on: 15 March 2017 2:28 PM GMT
ये है वर्दी वाला जलगुरु, क्राइम कंट्रोल के साथ पानी बचाने में जुटा है शिद्दत से
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Anurag Shukla

लखनऊ: आज हम आपको ऐसे पुलिस वाले से मिलाते हैं जो पानी बचाने के काम में उतनी ही शिद्दत से लगा है, जितना क्राइम रोकने में। ये हैं उत्तर प्रदेश के एडीजी (एसआईटी) महेंद्र मोदी। यह वर्दीधारी अफसर तो हैं ही लेकिन इनकी एक पहचान इनके वजूद से बड़ी है। वो पहचान है 'जल गुरु' की।

दरअसल, महेंद्र मोदी पिछले 9 साल से पानी बचाने और वर्षा जल संचयन की तकनीक पर काम कर रहे हैं। यह अपनी ड्यूटी में बिना किसी कोताही अपने निजी संसाधन और निजी समय देकर पानी बचाने की कवायद में जुटे हैं। 9 साल में 152 कुएं, तालाब और दूसरे जल निकायों को जिंदा कर चुके महेंद्र मोदी मानते हैं कि उनके तरीके से 10 फीसदी लागत से जहां पानी का स्तर बढाया जा सकता है वहीं देश की हर साल 3 खरब किलोवाट बिजली भी बचाई जा सकती है।

कौन हैं महेंद्र मोदी, कैसे बने जल पुरुष?

महेंद्र मोदी 1986 बैच के आईपीएस अफसर हैं। साल 2008 में जब वह झांसी में डीआईजी पद पर तैनात थे। उन्हें हर थाने में जनता दरबार में एक ही बात सुनाई देती थी, कि बाकी सब ठीक है साहब, बस पानी नहीं है। इसके बाद महेंद्र मोदी ने क्राइम कंट्रोल के साथ ही 'ड्राट कंट्रोल' पर भी लगाम लगाने की सोची। वह कहते हैं ऐसा करके मैं किसी पर एहसान नहीं कर रहा। सभी प्रशासनिक अफसरों, जिसमें आईपीएस शामिल हैं, कि सर्विस रूल के नियम 17 (क) के तहत यह जिम्मेदारी है। बस प्रशासनिक अफसर वर्कलोड के चलते इस पर ध्यान नहीं दे पाते।

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11 प्रांतों में किया जल संचयन का काम

महेंद्र मोदी खुद के बारे में बताते हैं कि धीरे-धीरे यह मेरा जुनून बन गया। ड्यूटी के बाद अपना सारा समय और दो साल तक घर का खर्च निकालने के बाद पूरी तनख्वाह इसी काम में लगा दी। अब तक 11 प्रांतों में जाकर वर्षा जल संचयन और जलस्तर को सुधारने के लिए काम कर चुके हैं। अब तक 152 कुएं, जल, तालाब और जल निकायों को रिचार्ज कर चुके हैं। मोदी ने उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखंड जैसे राज्यों के अलावा आईआईटी, जैसे संस्थानों समेत 22 राज्यों में जल संचयन के गुर सिखा चुके हैं।

झांसी के कुएं की सफलता ने पटरी पर ला दी गाड़ी

झांसी के कंचनपुर इलाके में सबसे पहले महेंद्र मोदी ने अपना प्रयोग किया। उन्होंने 18 फीट चौड़े कूडेदान बन चुके एक कुएं को लोगों के श्रमदान से साफ कराया। इसके बाद अपनी तकनीक का इस्तेमाल कर इसमें 40 फीट तक पानी ला दिया। यानी जिस जगह पर एक-एक बूंद पानी को लोग तरस रहे थे, वहां पर अब कुआं बन चुका है। इससे उत्साहित होकर उन्होंने हर जगह यह प्रयोग शुरू किया।

बारिश के पानी से ही सारे काम संभव

महेंद्र मोदी मानते हैं कि इस समय देश में जल संचयन साक्षरता की जरूरत है। उन्हें लगता है स्कूल से लेकर कॉलेजों तक में वर्षा जल के प्रति नजरिया बदलने को लेकर शिक्षा के प्रसार की जरूरत है। महेंद्र मोदी बेबाकी से कहते हैं कि हमारे देश में जल संरक्षण और भूगर्भ जल दोनों विभाग हर प्रदेश और केंद्रीय स्तर पर हैं लेकिन वर्षा जल संरक्षण का कोई विभाग नहीं है। जबकि बारिश के पानी का सही इस्तेमाल हो तो धरती की सेहत और देश की जरूरत दोनों पूरी की जा सकती है।

जलस्तर बढ़ाने की भी हो पढ़ाई

मोदी कहते हैं कि इंजीनियरों की पढाई ही सही नहीं होती है। इंजीनियरों को जल दोहन के लिए पढाई कराई जाती है जबकि पढाई तो जलस्तर बढ़ाने की होनी चाहिए।

क्या है महेंद्र मोदी की तकनीक?

दरअसल, महेंद्र मोदी महाइंद्रकूप जैसे प्रयोग कर कुओं को जिंदा करते हैं। वहीं, घरों पर वर्षा के जल संचयन के लिए विशेष प्रकार की टंकी बनाते हैं। इसमें चार चैंबर होते हैं। इसमें वह अम्लीय वर्षा तक को फिल्टर कर पीने लायक पानी तक बना देते हैं। साथ ही घऱ के इस्तेमाल के लिए भी शुद्ध और साफ पानी मिलता है। मोदी का दावा है कि इस तकनीक में बहुत कम पैसे लगते हैं और बिजली और आरओ का खर्च भी बचता है। उनके मुताबिक अगर सभी घर ऐसा करें, तो देश में 3 खरब किलोवाट तक बिजली बचाई जा सकती है।

'मैं अपने पेशे और जुनून को हर दिन बढाता हूं'

महेंद्र मोदी इस समय उत्तर प्रदेश में एडीजी (एसआईटी) के पद पर हैं। वह कई बेहद संवेदनशील जांचों के प्रमुख हैं। ऐसे में वह कहते हैं कि 'मैं अपने पेशे और जुनून को हर दिन बढाता हूं और मेरे आने के बाद एसआईटी की गति दस गुना बढ गई है।'

आगे की स्लाइड में देखिए महेंद्र मोदी के जल संचयन का तरीका ...

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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