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खुद चलकर गरीब बच्चों को पढ़ाता है DOOR STEP SCHOOL,ये हैं इसकी खूबियां

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Published on: 28 May 2016 11:25 AM GMT
खुद चलकर गरीब बच्चों को पढ़ाता है DOOR STEP SCHOOL,ये हैं इसकी खूबियां
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मुंबई: वैसे तो आपने कई तरह के स्कूलों का नाम सुना, पढ़ या देखा होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे स्कूल बारे में बताएंगे जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होगा। सरकार भी बच्चों को पढ़ाने के लिए हर कदम उठा रही है, लेकिन इस अनोखे स्कूल ने जो कदम उठाया है, वह सचमुच काबिलेतारीफ है।

जी हां, क्या आपने कभी सुना था कि कोई स्कूल बच्चों को पढ़ाने के लिए डोर-टू-डोर, बाजार या फिर फुटपाथ जाता है? नहीं न, लेकिन मुंबई में एक स्कूल ऐसा भी है, जो इस तरह से गरीब, फुटपाथ, स्लम और कामगार मजदूरों के बच्चों को पढ़ाने का काम करता है।

आगे की स्लाइड्स में पढें इस स्कूल की और खूबियां ...

[/nextpage][nextpage title="next" ]साल 1989 में रंजनी परांजपे (रंजनी ताई) और बीना लश्करी ने मुंबई के एक छोटे से स्लम कफ परेड से 'डोर स्टेप स्कूल' की शुरूआत की। इस स्कूल में बच्चों को जोड़ने के लिए वे घर-घर जाते हैं और बच्चों के माता-पिता से उनको पढ़ाने के लिए बोलते हैं।

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[nextpage title="next" ]तो इसलिए पड़ा इस स्कूल का नाम डोर स्टेप स्कूल

इस स्कूल का नाम डोर स्टेप स्कूल रखने का मुख्य कारण यह है कि यह बच्चों को उनके घर से उठाकर स्कूल ले जाता है और उन्हें पढ़ाता है। इस स्कूल की खास बात यह है कि यह बाजारों, फुटपाथों, कंस्ट्रक्शन साइट और रेलवे स्टेशनों से बच्चों के माता-पिता की इजाज़त से बच्चों को बस में बैठाकर स्कूल ले जाता है साथ ही बच्चों को सुबह 9.30 बजे से शाम 5 बजे तक पढ़ाता है।

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next[nextpage title="next" ]हर साल पढ़ते है लगभग 70,000 बच्चे

-डोर स्टेप स्कूल हर साल पुणे और मुंबई के इलाकों के लगभग 70,000 बच्चों को पढ़ाने का काम करता है।

-इसके पास करीब 1000 टीचर्स और कर्मचारी हैं, जो इन बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं।

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[nextpage title="next" ]क्या कहते हैं स्कूल के फाउंडर

-स्कूल फाउंडर परांजपे के अनुसार, वे इलाके का चयन ज़रूरत और लॉजिस्टिक के आधार पर करते हैं।

-वे सबसे पहले स्कूल के संचालन के लिए फंडिंग सपोर्ट की तलाश करते हैं।

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[nextpage title="next" ]यह स्कूल किसी संस्था से जुड़ा नहीं है।उसके बाद वे नए इलाकों के चयन के लिए परिवारों का सर्वे करते हैं। स्कूल जाने वाले और न जाने वाले बच्चों को दो भागों में बांटकर जरूरतमंद बच्चों को चिन्हित करते हैं. तब जाकर वे उन बच्चों को इस शिक्षण कार्यक्रम में शामिल करते हैं।

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