×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

'फादर्स डे' पर विशेष: पिता! एक अनमोल रिश्ता, नारियल की तरह ऊपर सख्त, अंदर से पानी

By
Published on: 18 Jun 2017 3:47 PM IST
फादर्स डे पर विशेष: पिता! एक अनमोल रिश्ता, नारियल की तरह ऊपर सख्त, अंदर से पानी
X

पूनम नेगी

पिता, यह शब्द एक ऐसे अनमोल रिश्ते का अहसास कराता है, जिसके बिना जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती। एक ऐसा पवित्र रिश्ता जिसका मुकाबला किसी और रिश्ते के साथ नहीं किया जा सकता। वह पिता ही होता है, जो अपने बच्चों की हर ख्वाहिश को पूरा करने कोशिश में अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है। बचपन में छोटी से छोटी चीज से लेकर जवान होने तक हमारी हर मांग को पूरा करता है पिता। पिता साथ होता है तो बच्चे को कोई असुविधा या असुरक्षा महसूस ही नहीं होती। पिता की छत्रछाया में बड़ी से बड़ी परेशानी छोटी और सहज लगने लगती है।

मां प्यार और भावनाओं का खजाना होती है तो पिता पुरुषार्थ, अनुशासन, संयम की सीख देने वाला सच्चा मार्गदर्शक। बचपन में गलतियों पर टोकने, बाल बढ़ाने, दोस्तों के साथ घूमने और टीवी देखने के लिए डांटने वाले पिता की छवि हमारे बालमन में भले ही हिटलर की रही हो लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हम समझने लगते हैं कि पिता के उस कठोर व्यवहार के पीछे हमारा हित ही था। कहते हैं मां के चरणों में स्वर्ग होता है, लेकिन पिता जीवन का आधार है। जीवन के संघर्षों से मोर्चा लेना, थपेड़ों से निपटना पिता ही सिखाता है। घर की देहरी से बाहर निकल कर जिंदगी की पाठशाला में यथार्थ के धरातल पर जब बच्चा चलना शुरू करता है तो उसके कदमों की निगरानी पिता की निगाहें ही करती हैं। कहां चलें, कहां रुकें लड़खड़ाने पर कैसे संभलें, हमारे जीवन मूल्य क्या हों, यह सब समझाने का काम पिता ही करता है। "फादर्स डे" के मौके पर आइए रू-ब-रू होते हैं "पिता" की शख्सियत पर कुछ अनमोल विचारों से - "फादर्स डे" के मौके पर आइए रू-ब-रू होते हैं "पिता" की शख्सियत पर कुछ अनमोल विचारों से -

आगे की स्लाइड में पढ़िए ऐसे ही विचार

"उनका" बेटा होना गर्व की बात : सुनील शास्त्री

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जिक्र आते ही हर भारतवासी का सिर श्रद्धा से झुक जाता है। सरकारें भले ही उस शख्सियत को भूल गई हों, लेकिन लोग उन्हें नहीं भूले। बहुत कम नेताओं को ऐसी शोहरत, प्यार और सम्मान मिल पाता है। उनका बेटा होना मेरे लिए गर्व की बात है। यह कहना है शास्त्री जी के बेटे सुनील शास्त्री का। वे कहते हैं, बाबू जी के "जय जवान-जय किसान" की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। बाबूजी जब तक जिंदा रहे, देश को आत्मनिर्भर बनाने की उन्होंने हर संभव कोशिश की।

देश में खाद्य अकाल को देखते हुए उन्होंने जब एक वक्त का खाना छोड़ने का आह्वान किया तो सबसे पहले हमारे परिवार को इस व्रत से जोड़ा। कई दिन तक हमारे परिवार ने एक समय का खाना ही खाया। वे देश के प्रधानमंत्री थे लेकिन कक्ष से बाहर निकलते समय हमेशा अपने कमरे की लाइट खुद बंद करते थे ताकि ऊर्जा का जरा भी अपव्यय न हो। जब वह प्रधानमंत्री थे, तो युद्ध के दौरान दिल्ली आर्मी अस्पताल में घायल सैनिकों को देखने जाते थे। एक दिन मुझे भी अपने साथ ले गए। मैंने देखा कि बाबूजी एक जख्मी सैनिक के माथे पर हाथ रखकर उससे बातें कर रहे थे। बाबूजी ने उनसे कहा, तुम तो देश के बहादुर सैनिक हो, तुम्हारी आंखों में ये आंसू क्यों? उसका उत्तर था कि मैं इसलिए नहीं रो रहा कि जिंदा रहूंगा या नहीं, बल्कि रो इसलिए रहा हूं कि प्रधानमंत्री मेरे सामने हैं और मैं उठकर सैल्यूट भी नहीं दे पा रहा हूं।

बाबूजी की आंखों में मैंने उस दिन पहली बार आंसू देखे।... बहुत संयमित था उनका जीवन। वे पांच बजे सुबह उठ जाते थे। कुछ देर टहलते थे। सुबह उठकर खुद दो कप चाय बनाते और पहली चाय मां के साथ पीते थे। वे बहुत सादा खाना खाते। लौकी, दाल, सब्जी और कोई मौसमी फल। बाबूजी से हमने दो बातें खासतौर पर सीखीं। पहली हमेशा सच बोलना और दूसरा अपने देश को बहुत प्यार करना।

आगे की स्लाइड में पढ़िए घनश्याम दास का बेटे के लिए लिखा गया पत्र

भारत रत्न घनश्यामदास बिरला का पुत्र बसंत कुमार बिड़ला को लिखा प्रेरणादायक पत्र

""चि. बसंत! मैं अपने अनुभव की कुछ बातें लिख रहा हूं, उसे भविष्य में बड़े और बूढ़े होकर भी बार-बार पढ़ना। संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है, जो मनुष्य जन्म पाकर भी अपने शरीर का दुरुपयोग करता है, वह पशु से भी बदतर है। ध्यान रखना कि हमारे पास जो भी धन है, तन्दुरुस्ती है, साधन हैं, उनका उपयोग सेवा के लिए ही हो, तब तो वे साधन सफल है अन्यथा वे शैतान के औजार बन जाएंगे। धन किसी के पास सदा के लिए नही रहता, इसलिए धन का उपयोग मौज मस्ती और शौक के लिए कभी न करना बल्कि उसका उपयोग सेवा के लिए ज्यादा से ज्यादा करना। जितना धन हमारे पास में है उसे अपने ऊपर कम से कम खर्च करना बाकी जनकल्याण और दुखियों का दुख दूर करने हेतु व्यय करना।

अपनी संतान को भी यही उपदेश देना कि धन शक्ति है, इस शक्ति के नशे में किसी पर अन्याय हो जाना संभव होता है। हमे ध्यान रखना है की अपने धन के उपयोग से किसी पर अन्याय ना हो। यदि हमारे बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम करने वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे। ऐसे नालायकों बच्चों को धन विरासत में कभी न देना।... धर्म और संस्कारों को कभी न भूलना, वे ही हमे अच्छी बुद्धि देते है। अपनी पांचों इन्द्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हें डुबो देगी। अपनी दिनचर्या पर विशेष ध्यान रखना। जिस व्यक्ति का न उठने का समय है, न सोने का समय है उससे हम किसी बड़ी सफलता की उम्मीद नही रख सकते। नित्य नियम से योग-व्यायाम अवश्य करना। स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं। स्वास्थ्य रूपी सम्पदा की रक्षा हर हाल में करना। भोजन को दवा समझकर खाना। स्वाद के वश होकर खाते मत रह जाना। जीने के लिए खाना, न कि खाने के लिए जीना।

- तुम्हारा पिता

घनश्यामदास बिड़ला"

आगे की स्लाइड में जानिए फादर्स डे पर अनिल अंबानी के विचार

रिलायंस इंडस्ट्री पिता की धरोहर : अनिल अंबानी

"बड़ा सोचो और सोचो और दूसरों से आगे की सोचो। विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं है।" यह फिलॉसफी है अपने जीवन काल में लीजेंड बन जाने वाले रिलायंस समूह के संस्थापक धीरूभाई अंबानी की उन्होंने एक पिता के रूप में अपने दोनों पुत्रों मुकेश व अनिल अंबानी को रिलायंस समूह की बागडोर सौंपी। अपने पिता को अपना गुरु व पथप्रदर्शक मानने वाले अनिल अंबानी का कहना है कि उनके पिता धीरूभाई की कहानी फर्श से अर्श तक पहुंचने वाले उस शख्स की प्रेरक दास्तान है जो मजबूत इरादों, दमदार शख्सियत और दूरदृष्टि के चलते बिजनेस जगत के शिखर पर जा पहुंचे। रिलायंस साम्राज्य खड़ा करने वाले धीरूभाई अंबानी को आर्थिक तंगी की वजह से पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन अपने व्यापारिक कौशल के दम पर उन्होंने भारत के व्यवसाय जगत की कहानी का हमेशा के लिए बदल दिया।

2002 में जब उनका निधन हुआ तो वह भारत के सबसे रईस शख्सियतों में शुमार थे एवं उनकी कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में। उनका कहना था कि यदि आप गरीबी में पैदा होते हैं तो इसमें आपका कोई दोष नहीं, लेकिन यदि आप गरीबी में ही मरते हैं तो इसके लिए सिर्फ आप ही जिम्मेदार हैं। आज उनका संपूर्ण जीवन और उनके द्वारा कहे गये अनमोल विचार लाखों-करोड़ों युवकों को प्रेरित कर रहे हैं। उनका कहना था कि सपने ही हमारा वर्तमान है और सपने ही हमारा भविष्य निर्धारित करेंगे। हमेशा बड़े सपने देखें और बड़े लक्ष्य को हासिल करें। आगे बढ़ने के लिये और कुछ बड़ा हासिल करने के लिये किसी के आमंत्रण की नहीं, आपके खुद के आत्मविश्वास की जरूरत होती है।

आगे की स्लाइड में जानिए फादर्स डे पर अमिताभ बच्चन के विचार

amitabh-bachchan

मेरी यादों में हमेशा रहेंगे "बाबूजी": अमिताभ बच्चन

बाबूजी भले ही आज हमारे साथ नहीं हैं लेकिन मेरी यादों में वे हमेशा रहेंगे। मेरे पिता जी मेरे दिल में बसे हैं। मुझे जब भी उनकी याद आती है, मैं उनकी तस्वीर से बातें कर लेता हूं। उस वक्त मुझे ऐसा लगता है, जैसे वह मेरी बात सुन रहे हैं। वे मेरे आदर्श हैं। उनकी कही हर बात में कोई ना कोई शिक्षा होती थी। फिर चाहे उनकी कविताएं हों या लेख। बाबू जी, वही लिखते थे जो अपने जीवन में अनुभव करते थे। यह कहना है सदी के महानायक का अपने पिता के बारे में।

वे कहते हैं,"" मुझे बाबूजी की एक बात हमेशा याद आती है। वह बीमार चल रहे थे और मैं अपनी फिल्मों की शूटिंग में बिजी रहता था, उस वक्त बाबूजी मुझसे कहते थे-बेटा दिन में एक बार हमारे पास आ जाया करो, तुम्हें देख लेते हैं तो एक तसल्ली सी मिलती है। मुझे बाबूजी की कई सारी कविताएं आज भी याद हैं।-जीवन की आपाधापी में... और जो बीत गई सो बात गई... जैसी उनकी कविताओं ने मेरा हमेशा मार्गदर्शन किया है।



\

Next Story