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बरसाने की गोरी के घर, नंद के छोरे की टोली, खेली लट्ठमार होली
बरसाना: होली का त्योहार रंगों की मस्ती के साथ हंसी-ठिठोली लेकर आता है। देश-विदेश के हर कोने के लोग त्योहार के कुछ दिन पहले से ही जश्न मनाने लगते हैं। होली का रंग तो हर जगह एक जैसा ही होता है फिर भी बरसाने की होली की बात ही अलग है। यहां की लड्डू, लट्ठमार होली तो जगजाहिर है। यहां होली खेलने देश ही नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं।
राधा के प्यार में रंगने आते थे कृष्ण
होली के समय बरसाने का माहौल ही अलग और अद्भुत होता है। यहां कुछ दिनों पहले लट्ठमार होली खेली जाती है। कहा जाता है कि कृष्ण और उनके दोस्त राधा और उनकी सहेलियों को तंग करते थे जिसपर उन्हें मार पड़ती थी।
राधा-कृष्ण का नि:स्वार्थ प्रेम जगजाहिर है। उसी प्रेम की अनुभूति के लिए इस दौरान ढोल की थापों के बीच महिलाएं पुरुषों को लाठियों से पीटती हैं। हजारों की संख्या में लोग उनपर रंग फेंकते हैं। लट्ठमार होली के आनंद का अनुभव यहां आकर ही किया जा सकता है।
नवमी को मनाई जाती है लट्ठमार होली
बरसाने की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन नंदगांव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गांव जाते हैं और इस गांव के लोग नंदगांव में जाते हैं। इन पुरुषों को हुरियारे कहते हैं।
माना जाता है कि कृष्ण अपने सखाओं के साथ राधारानी और उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे और उनके साथ ठिठोली करते थे। इस पर राधारानी और उनकी सखियां ग्वाल बालों पर डंडे बरसाया करती थीं। ऐसे में लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ग्वाल वृंद भी ढ़ालों का प्रयोग किया करते थे जो धीरे-धीरे होली की परंपरा बन गई।
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मथुरा-वृंदावन, नंदगांव और बरसाने में आज भी इस परंपरा को निभाया जाता है और लट्ठमार होली मनायी जाती है।जब नाचते झूमते लोग गांव में पहुंचते हैं तो औरतें हाथ में ली हुई लाठियों से उन्हें पीटना शुरू कर देती हैं और पुरुष खुद को बचाते भागते हैं। लेकिन खास बात यह है कि यह सब मारना पीटना हंसी खुशी के वातावरण में होता है।
नीचे स्लाइड्स में देखिए बरसाने की होली की मस्ती भरी फोटोज
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