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आयरन लेडी इंदिरा की ऐसी थी लव स्टोरी, धर्म बदलकर खान से फिरोज बने थे गांधी
लखनऊ: देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आयरन लेडी के नाम से मशहूर हुईं। 19 नवंबर को पूरा देश उनकी बर्थ एनिवर्सिरी मनाता है। इंदिरा गांधी जितना अपने पॉलिटिकल करियर को लेकर जानी जाती थी उतनी ही दिलचस्प उनकी लव स्टोरी भी थी। इंदिरा और फिरोज की शादी में कई पेंच आए थे, लेकिन प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि मंजिल तक पहुंच ही गया। फिरोज और इंदिरा की शादी 1942 में हिंदू रीति-रिवाजों से हुई।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और कमला नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी के बचपन का नाम इंदिरा प्रियदर्शनी था। 19 नवंबर 1917 को यूपी के इलाहाबाद में उनका जन्म हुआ था। उनके घर का नाम 'इंदू' था और वे अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं। इंदिरा का नाम उनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरू ने रखा था। वहीं, फिरोज गांधी का बचपन का नाम फिरोज जहांगीर शाह था। वह पारसी मुसलमान थे। मुंबई में 12 सितंबर 1912 को जन्में फिरोज गांधी मूल रूप से गुजराती थे। उनके पिता का नाम जहांगीर और मां का नाम रतिबाई था।
इलाहाबाद में हुई फिरोज की पढ़ाई
फिरोज गांधी के दादा गुजरात के भरूच में रहते थे। वह किराने का सामान और शराब बेचने का काम करते थे। पिता की मौत के बाद फिरोज की मां बच्चों के साथ अपनी मां के घर इलाहाबाद आ गईं। फिरोज ने कॉलेज की पढ़ाई इलाहाबाद में की और आगे की पढ़ाई के लिए वे लंदन चले गए, लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा और वे वापस लौट आए। साल 1930 में फिरोज ने राजनीति में उतरे गए।
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ऐसे हुई थी इंदिरा-फिरोज की पहली मुलाकात
फिरोज पहली बार इंदिरा से उन्हीं के घर पर मिले थे। पहली मुलाकात में उन्हें नहीं पता था कि आने वाला कल उनके लिए प्यार का मौसम बनकर आने वाला है। हुआ कुछ यूं था कि साल 1930 में आजादी की लड़ाई के दौरान इंदिरा की मां कमला नेहरू एक कॉलेज के सामने धरना देने के दौरान बेहोश हो गईं। तब फिरोज ने भी उन्हें घर तक पहुंचाया। इसके बाद अक्सर वो उनका हालचाल जानने के लिए घर आया-जाया करते थे। धीरे-धीरे वो न सिर्फ नेहरू परिवार के करीब आने लगे, बल्कि इंदिरा के दिल में भी खास जगह बना ली। वो अक्सर आनंद भवन जाने लगे।
जब आया था जवाहरलाल नेहरू को गुस्सा
जवाहरलाल नेहरू को जब इंदिरा और फिरोज की प्रेम कहानी के बारे में पता चला तो वह गुस्से से तिलमिला उठे। इसकी वजह थी कि वह दोनों अलग-अलग धर्मों से थे। साथ ही उन्हें चिंता सता रही थी कि अगर यह बात जगजाहिर हुई तो राजनीति में खलबली मच जाएगी। जब उन्हें कुछ समझ नहीं आया तो वह इस बारे में सलाह मांगने महात्मा गांधी के पास गए और पूरी बात बताई। तब गांधी जी ने बीच का रास्ता निकालते हुए फिरोज को गांधी सरनेम दे दिया। इस तरह फिरोज खान से गांधी बन गए और इंदिरा नेहरू को नया नाम इंदिरा गांधी मिल गया। 1942 में दोनों के प्यार को उनकी मंजिल मिली और हिंदू-रीति-रिवाजों से धूमधाम से शादी हुई।
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जल्द टूट गया सात फेरों का बंधन
इंदिरा और फिरोज की जिद से शादी हो तो गई, लेकिन इनका रिश्ता लंबा नहीं चल सका। दोनों के बीच रोज झगड़े होने लग गए। 1949 में इंदिरा दोनों बच्चों राजीव और संजय के साथ अपने पिता के घर आ गईं। यहीं से फिरोज गांधी और नेहरू परिवार के बीच एक खाई से बन गई। इतना ही नहीं, फिरोज ने नेहरू सरकार के खिलाफ आंदोलन भी छेड़ा और कई बड़े घोटालों को जनता के सामने लेकर आए। इसके पांच साल बाद ही खराब सेहत के चलते 8 सितंबर, 1960 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया और इसके साथ ही एक राजनीतिक घराने की कभी न भूलने वाली लव स्टोरी खत्म हो गई।
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