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फ्रेंडशिप डे स्पेशल: दोस्ती ऐसी कि कंधे पर बैठा कर ले जाती है स्कूल, दोस्त के लिए छोड़ दिया घर

Aditya Mishra
Published on: 5 Aug 2018 6:41 AM GMT
फ्रेंडशिप डे स्पेशल: दोस्ती ऐसी कि कंधे पर बैठा कर ले जाती है स्कूल, दोस्त के लिए छोड़ दिया घर
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रांची: आज फ्रेंडशिप डे है। इस खास मौके पर आज हम आपको रीना हेंब्रम और मीना मिंज की दोस्ती के बारे में बताने जा रहे है। जो अब रांची के लोगों के लिए मिसाल बन गई है। शहर से 30 Km दूर कांके के उरूगुटु गांव की रहने वाली दोनों लड़कियां एक दूसरे के साथ रहती हैं। दरअसल मीना जन्म से विकलांग है। उसकी मदद के लिए रीना हमेशा उसके साथ साथ रहती है।

कंधे पर जाती है स्कूल

रीना रांची के ओरमांझी की रहने वाली है, लेकिन दोस्ती निभाने की जिद में अपना घर को छोड़कर मीना के साथ रहने आ गई। दोनों 12 साल से दोस्त हैं। लेकिन कभी एक-दूसरे का साथ नहीं छोडा़। दोनों ने रामगढ़ से नर्सरी से मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की। रांची में इंटर की पढ़ाई की और ग्रेजुएशन एसएस मेमोरियल कॉलेज से कर रही हैं। मीना के हर काम में रीना उसका पूरा देती है। उसे रोज पीठ पर लादकर स्कूल ले जाती हैं। और फिर साथ ही घर लौटती है। इतना ही नहीं रीना ने मीना के लिए अपना घर भी छोड़ दिया।

दोनों सहेलियां मिलकर जगा रही है शिक्षा की अलख

मीना मिंज (21) के कमर से नीचे का हिस्सा जन्म से बेकार है। दांया हाथ भी कलम थामते हुए भी कांपता है। दो कदम चलने के लिए भी किसी सहारे की जरूरत होती है, लेकिन उसने शिक्षा की अलख जगाने की ऐसी धुन पाल रखी है कि ये मजबूरियां भी आड़े नहीं आती हैं। इसमें उसका पूरा साथ देती है उसकी बचपन की सहेली रीना हेंब्रम। रीना मीना को रोज पीठ पर लादकर स्कूल ले जाती हैं और खुद भी वहां पढ़ाती हैं। मीना रांची से करीब 30 किमी की दूरी पर कांके प्रखंड के उरुगुटु गांव के गुड़गुड़चुमा जंगलों के बीच डिवाइन ओंकार मिशन स्कूल की प्रिंसिपल हैं। जंगलों और पहाड़ों के बीच यह स्कूल आस-पास के गांव के बच्चों के लिए उम्मीद की किरण है। दोनों सहेलियां स्कूल से करीब आधा किमी दूर रहती हैं। स्कूल खोलना और बंद करना इन्हीं की जिम्मेदारी है।

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पीठ पर मीना न हो तो चलने में मजा नहीं आता है

रीना (20) कहती हैं कि अगर मीना पीठ पर न हों तो अकेले चलने में मजा नहीं आता है। 2003 में पहली बार रामगढ़ के डिवाइन ओंकार मिशन में पढ़ने के दौरान मीना सीढ़ी चढ़ने का असफल प्रयास कर रहीं थीं। उस समय मीना को मैंने अपनी पीठ पर बैठाया तो आज वे मेरी ही पीठ पर बैठती हैं। स्कूल में हम एक ही प्लेट में खाते थे और साथ ही रहते थे। आज हम 12 साल से एक दूसरे के साथ रह रहे हैं। साथ स्कूलिंग की, रांची में इंटर की पढ़ाई की और ग्रेजुएशन भी कर रहे हैं।

शादी कर लूंगी तो मीना को कौन देखेगा?

रीना उम्र भर शादी नहीं करना चाहती हैं। कारण पूछने पर कहती हैं कि अगर मैं शादी कर लूंगी तो मीना का क्या होगा। उसका तो सहारा ही छिन जाएगा। हम एक दूसरे की सिर्फ सहेलियां ही नहीं बल्कि एक दूसरे की जरूरत भी हैं। मैंने अपना घर-बार मीना की दोस्ती के लिए कुर्बान कर दिया है।

जिस स्कूल में पढ़ीं उसी ने पढ़ाने का भी मौका दिया

मीना और रीना ने रामगढ़ के डिवाइन ओंकार मिशन से स्कूलिंग की है। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मीना अपने गांव उरुगुटु आ गईं। रीना अपने गांव चंद्रा मधुकामा, ओरमांझी न जाकर अपनी दोस्त के साथ ही उरुगुटु में रहने लगीं। यहीं गांव में ही दोनों ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। इसकी सूचना उनके रामगढ़ मिशन स्कूल को मिली। स्कूल के फाउंडर तारसेम लाल नागी इस बात से काफी प्रभावित हुए और उरुगुटु में ही मीना की पुश्तैनी जमीन पर स्कूल बनवा दिया। 10वीं तक के इस स्कूल में 150 बच्चे पढ़ते हैं।

हावड़ा ब्रिज देखना चाहती हैं मीना और रीना

मीना और रीना की सबसे बड़ी ख्वाहिश पूछी गई तो दोनों सहेलियों ने कहा कि उन्होंने ट्रेन देखा तो है लेकिन उसमें कभी सफर नहीं किया है। अगर उन्हें मौका मिलेगा तो वे ट्रेन से हावड़ा ब्रिज देखना चाहती हैं। दोनों ने दिल्ली धूमने की इच्छा भी जताई।

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ट्राई साइकिल नहीं चला सकती, तिपहिया स्कूटी दे सरकार

दाएं हाथ में आंशिक विकलांगता के कारण मीना ट्राई साइकिल नहीं चला सकती हैं। उन्होंने कहा कि हाथ में दम नहीं लगता है। झारखंड सरकार तिपहिया स्कूटी देगी तो मेरी मुश्किल आसान हो सकती है। मीना ने सरकार से अपने स्कूल को आर्थिक सहयोग देने की भी मांग की ताकि बच्चों के लिए और संसाधन खरीदे जा सकें। दोनों सहेलियों ने अपने स्कूल में भी मध्याह्न भोजन (मिड डे मील) की व्यवस्था कराने की मांग की ताकि गरीब बच्चों को भूखे पेट न पढ़ना पड़े।

Aditya Mishra

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