TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

नवरात्रि में रहता है गरबा का क्रेज, नहीं देखता धर्म, नहीं रहता कोई भेद

suman
Published on: 21 Sept 2017 9:50 AM IST
नवरात्रि में रहता है गरबा का क्रेज, नहीं देखता धर्म, नहीं रहता कोई भेद
X

जयपुर : त्योहार आते ही उल्लास और रोमांच का जीवन में संचार हो जाता है। चाहें कोई धर्म, सम्प्रदाय या जाति से हों लेकिन सभी के बीच एक समानता , कॉमन चीज़ खुशी है लेकिन इसके अलावा भी एक ऐसी खासियत है जो सभी के बीच कॉमन है। यह है इन त्योहारों को छोटे-छोटे रीति-रिवाजों से जोड़ देना। हर एक त्योहार अपने इतिहास के आधार से मनाया जाता है, इसके इतिहास से ही पर्व का असली महत्व उत्पन्न होता है लेकिन क्षेत्रों के हिसाब से लोग त्योहारों को कुछ ऐसे रिवाजों से जोड़ देते हैं जो एक बार आरंभ होते हैं तो सदियों तक चलते हैं। नवरात्रि भी ऐसा ही पर्व है शक्ति का पर्व है, मां के नौ रूपों की पूजा एवं अर्चना का पर्व है लेकिन इस पर्व के साथ भी खुशी ज़ाहिर करने का एक ट्रेंड चालू हो गया है जिसे गरबा कहा जाता है।

यह भी पढ़ें...इस शक्तिपीठ में मां के इस रूप का है निवास , दर्शनमात्र से होता है सबका कल्याण

गरबा का नवरात्रि से कुछ ऐतिहासिक संबंध भी है। नवरात्रि का पर्व आने से पहले ही पूरे भारत में ही गरबा शुरू हो जाते हैं। जगह-जगह नवरात्रि मेले लगते हैं जहां धूमधाम से गरबा नृत्य होता है। आज के ट्रेंड के हिसाब से गरबा में गीत गाने के लिए खासतौर से प्रसिद्ध गीतकारों को ढेरों रुपया देकर आमंत्रित किया जाता है। पूरी रात लोगों का मनोरंजन करते हैं और इनके गीतों पर लोग गरबा करने से थकते नहीं हैं। पूरे नौ दिन ऐसा ही दृश्य बना रहता है।

गरबा का क्रेज़ आजकल इतना बढ़ गया है कि जो लोग नवरात्रि का अर्थ भी नहीं जानते वे भी गरबा नृत्य में लाभ लेने से नहीं चूकते। यूं तो आजकल हर गली और चौराहे पर नवरात्रि के दौरान गरबा की धमक रहती हैं, लेकिन जब कभी कोई गरबा का नाम लेता है तो मन में सर्वप्रथम भारतीय राज्य गुजरात याद आ जाता है। गरबा नृत्य गुजरातियों के बीच बेहद मशहूर है।

कढ़ाई वाली चोली, सुंदर दुपट्टे लिए महिलाएं और लंबी कुर्ती और धोती में पुरुष, यह गरबा का पारम्परिक पहनावा है। गुजरात में यह पहनावा आमतौर देखने को मिलता है। वैसे गुजरात के अलावा राजस्थान में भी गरबा का काफी महत्व है।

यह भी पढ़ें...21 सितंबर: किन लोगों पर बरसेगी देवी शैलपुत्री की पूजा, पढ़ें गुरूवार राशिफल

मान्यता के अनुसार, नवरात्रि की नौ रातों में मां को प्रसन्न करने के लिए नृत्य का सहारा लिया जाता है। यूं तो वर्षों से ही हिन्दू मान्यताओं में नृत्य को भक्ति एवं साधना को एक मार्ग माना गया है। इसलिए यह मान्यता प्रचलित है कि गरबा के जरिए भक्त मां को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। लेकिन यहां हम गरबा एवं नवरात्रि का महत्व कुछ गहराई से जानने की कोशिश करेंगे। गरबा का संस्कृत नाम गर्भ-द्वीप है। गरबा के आरंभ में देवी के निकट सछिद्र कच्चे घट को फूलों से सजा कर उसमें दीपक रखा जाता है। इस दीप को ही दीपगर्भ या गर्भ दीप कहा जाता है। लेकिन जैसे-जैसे गर्भ द्वीप भारत के विभिन्न क्षेत्रों तक पहुंचा, इसके नाम में कई बदलाव आए। और अंत में यह शब्द ‘गरबा’ बन गया, तभी से सब लोग इस नृत्य को गरबा के नाम से ही जानते हैं।

नवरात्रि की पहली रात गरबा की स्थापना कर उसमें ज्योति प्रज्वलित की जाती है। इसके बाद महिलाएं इसके चारों ओर ताली बजाते हुए फेरे लगाती हैं। घेरे में महिलाओं का इस तरह से घूमना अनिवार्य माना गया है। यह पहला शुभ नृत्य होता है। गरबा नृत्य में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा या डांडिया और मंजीरा आदि का इस्तेमाल ताल देने के लिए किया जाता है। महिलाएं समूह में मिलकर नृत्य करती हैं। इस दौरान देवी के गीत गाए जाते हैं। लेकिन वह समय क्या था जब पहली बार या फिर धीरे-धीरे गरबा का भारत में चलन हुआ।

यह भी पढ़ें...नवरात्र पर विशेष : करें शक्ति संचय की साधना

आज के दौर में गरबा को भारत के विश्व विख्यात नृत्यों में से एक माना जाता है। अब यह कोई आम नृत्य नहीं रहा, विश्व भर में इस नृत्य का प्रचार किया जाता है। ना केवल त्यौहारों के दौरान, वरन् समय-समय पर यह नृत्य भारतीय साहित्य को दर्शाता रहता है।



\
suman

suman

Next Story