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हवन-पूजन का नवरात्रि में है विशेष महत्व, विधि-विधान से करें इसका पालन तो मिलेगा इसका फल
जयपुर:नवरात्रि में हवन-पूजन का बहुत महत्व है। हवन पूजन से ही मां भगवती की पूजा सफल होती है। कोई भी पूजा और मंत्र का जप बिना हवन के अपूर्ण है। किसी भी वैदिक पूजा में विधि-विधान से हवन करना आवश्यक है। ग्रहों के बीज मंत्र की निश्चित संख्या होती है। नवरात्र में माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए दुर्गासप्तशती के विभिन्न मंत्रों से माता को प्रसन्न करने के लिए हवन करते हैं। नवरात्रि में नौदुर्गा के सभी स्वरूपों की पूजा होती है। अंत में कन्या पूजन और हवन के साथ नवरात्रि समाप्त हो जाते हैं। इसलिए हवन करने में पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।हवन करने का एक पूरा विधि-विधान है।
हवन पूजन विधि देवी स्थापना या माता की चौकी के पास हवन कुण्ड बनाना चाहिए। नौदिनों माता के व्रती रहने वाले श्रद्धालुओं को पूजन सामग्री के साथ उपासना करनी चाहिए। देवी की मूर्ति रखकर हवन शुरू करवाना चाहिए। आम की लकड़ी आमतौर पर हवन हेतु प्रयोग की जाती है। हवन की सम्पूर्ण सामाग्री होनी चाहिए। जौ का प्रयोग नवरात्र के हवन में अवश्य करना चाहिए। तिल के प्रयोग से आध्यात्मिक उत्कर्ष एवं कष्टों का शमन होता है। गुड़ का प्रयोग मंगल और सूर्य ग्रह को प्रसन्न करने के लिए है। चीनी चंद्रमा और शुक्र के लिए है। गाय के ही घी का प्रयोग करें। घी अग्नि का मित्र और शुक्र का प्रतीक है। सूखे हवन वाले नारियल का प्रयोग अंत में करते हैं। इस पर घी का लेपन करके अग्नि को समर्पित करते हैं। हवन नवरात्रि पूजा की परिपूर्णता है। माना जाता है कि इससे माता प्रसन्न होती हैं और ग्रहों को भोजन मिलता है। एक विशेष बात, तांत्रिक पूजा के हवन की विधि और द्रव्य वैदिक पूजा से अलग होते हैं। दुर्गासप्तशती में सप्तश्लोकी दुर्गा में वर्णित मंत्रों से हवन अवश्य करें।
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