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चौरी-चौरा के क्रांतिवीरों को यहीं मिला था जीवन,जानें कुछ और बड़े फैसले

Admin
Published on: 12 March 2016 5:29 PM GMT
चौरी-चौरा के क्रांतिवीरों को यहीं मिला था जीवन,जानें कुछ और बड़े फैसले
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इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट को 150 साल पूरे हो गए हैं।रविवार को हाईकोर्ट में 150वां स्थापना दिवस मनाया जाएगा।आजादी से पहले और बाद में इस हाईकोर्ट ने कई ऐसे फैसले सुनाए हैं जो मील का पत्थर साबित हो गए हैं।आइए कुछ ऐसे ही फैसले पर नजर डालते हैं।

जब इंदिरा गांधी का निर्वाचन अवैध घोषित किया

1971 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने इलाहाबाद की फूलपुर सीट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण थे। चुनाव में इंदिरा 18,3,309 वोट पाकर जीत गईं, जबकि राजनारायण को सिर्फ 71,499 वोट मिले। राजनारायण ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर रिजल्ट को चुनौती दी। मामले की सुनवाई जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा कर रहे थे।

12 जून 1975 को जस्टिस सिन्हा की ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी का चुनाव परिणाम निरस्त कर दिया।केवल इतना नहीं, कोर्ट ने अपने फैसले में इंदिरा गांधी को अगले छह वर्ष के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दे दिया था।

उस समय इंदिरा गांधी ने अपना निर्वाचन निरस्त किए जाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, लेकिन उन्हें वहां भी राहत नहीं मिली। इसके बाद 27 जून, 1975 को देश में इमरजेंसी लगा दी गई।

एक ही वक्त में थे दो सीएम

23 फरवरी 1998 को उत्तर प्रदेश के तात्कालिक राज्यपाल रोमेश भंडारी ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर किया था, और कांग्रेस नेता जगदम्बिका पाल को सीएम पद की शपथ दिलाई।राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ भाजपा नेता डॉ.नरेंद्र सिंह गौड़ ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी।

जस्टिस वीरेंदर सिंह और डीके सेठ की खंडपीठ ने रात में सुनवाई करते हुए कल्याण सिंह की बर्खास्ती पर रोक लगा दी।खंडपीठ का कहना था कि राज्यपाल कल्याण सिंह से बहुमत साबित करने के लिए भी कह सकते हैं।

राममंदिर-बाबरी कांड विवाद

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सितंबर, 2010 को अपना फैसला सुनाया था।अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या के विवादास्पद स्थल पर आज जहां रामलला विराजमान हैं, वही उनका जन्मस्थान है। अदालत ने इस मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से दायर की गई याचिका खारिज कर दी है।

सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे नेता-ब्यूरोक्रेट-जज के बच्चे

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 18 अगस्त 2015 को एक बड़ा एतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि यूपी के सभी जनप्रतिनिधियों, सरकारी ऑफिसरों, कर्मचारियों और जजों को अपने बच्चों को सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाना होगा। यदि सरकारी कर्मचारियों ने अपने बच्‍चों को कॉन्‍वेंट स्कूलों में पढ़ाया तो उन्‍हें फीस के बराबर की रकम हर महीने सरकारी खजाने में जमा करानी होगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे लोगों का इंक्रीमेंट और प्रमोशन कुछ वक्त के लिए रोकने की व्यवस्था की जाए।

यूपी के जूनियर और सीनियर स्कूलों में पढ़ाई की बुरी हालत के मद्देनजर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह सख्त कदम उठाया था। कोर्ट ने कहा था कि जब तक जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों, टॉप लेवल पर बैठे अधिकारियों और जजों के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे, तब तक इन स्कूलों की हालत नहीं सुधरेगी।

विवाहित बेटियों के हित में बड़ा फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले वर्ष बेटियों के हित में भी एक बड़ा फैसला सुनाया था।हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मृतक आश्रित सेवा नियमावली के नियम 2 (सी) (111) को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि मृतक आश्रित कोटे के तहत बेटी को शादीशुदा होने के आधार पर नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि विवाहित बेटा नौकरी पा सकता है तो विवाहित बेटी को नौकरी देने से इनकार करने का क्‍या मतलब है? कोर्ट ने आजमगढ़ के डीएम की ओर से राजस्व विभाग में कार्यरत पिता की सेवा काल में मौत के बाद विवाहित बेटी की नियुक्ति देने से इनकार करने के आदेश को रद्द करते हुए यह फैसला सुनाया था।यह फैसला चीफ जस्टिस डॉ।डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस यशवंत वर्मा की बेंच ने विमला श्रीवास्तव की पिटिशन पर दिया था।

आजादी के पहले के कुछ मामले

काकोरी कांड - काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी व अशफाक उल्ला खां, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी। इन पर ट्रेन में ले जाया जा रहा खजाना लूटने का आरोप था। इनके अलावा तीन दर्जन अन्य अभियुक्त थे। तब हाईकोर्ट चीफ कोर्ट के रूप में थी। यहां अपील हुई तो कई क्रांतिकारियों की सजा घटने के बजाय बढ़ा दी गई थी।

चौरी चौरा कांड- चौरी चौरा कांड में क्रांतिकारियों ने गोरखपुर में एक पुलिस चौकी फूंक दी थी जिसमें कई पुलिसकर्मी जिंदा जल मरे थे। इसमें 172 व्यक्तियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी । अदालत के इस निर्णय के विरुद्ध पंडित मदनमोहन मालवीय और पंडित मोती लाल नेहरू ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की। इनकी जोरदार पैरवी के चलते के चलते 38 व्यक्ति बरी हुए, 14 को फांसी की जगह आजीवन कारावास हुआ, जबकि 19 व्यक्तियों की फांसी बरकरार रही।

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