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राजनाथ सिंह को भी जाना पड़ा था जेल, कभी चपरासी से कम मिली थी पेंशन

suman
Published on: 10 July 2016 3:43 AM GMT
राजनाथ सिंह को भी जाना पड़ा था जेल, कभी चपरासी से कम मिली थी पेंशन
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लखनऊ: गृहमंत्री राजनाथ सिंह आज अपना 65वां जन्‍मदिन मना रहे हैं। देर रात से ही दिग्गज नेता और पार्टी कार्यकर्ता उन्हें बधाई दे रहे हैं। बीजेपी में राजनाथ सिंह एक ऐसा चेहरा हैं, जिन्हें राजनीति की हर चाल का पता है। यही वजह है कि उन्हें कद्दावर नेताओं में से एक माना जाता है। देश की हर बदलती हुई तस्वीर उन्होंने बड़े करीब से देखी है और यूपी से तो उनका रिश्ता ही खास रहा है। पीएम मोदी ने भी तंजानिया से राजनाथ सिंह को टि्वटर पर जन्मदिन की बधाई दी है।

यह बहुत कम लोग जानते हैं कि राजनाथ सिंह राजनीति में आने से पहले टीचर थे और उन्हें एक चपरासी से कम पेंशन मिली थी। मिर्जापुर के कन्‍हैयालाल बसंतलाल ग्रेजुएट कॉलेज में राजनाथ सिंह छात्रों को फिजिक्स पढ़ाते थे। इस पोस्ट से रिटायर होने के बाद उन्हें सिर्फ 1,350 रुपए पेंशन के तौर पर मिलते थे। उन्होंने साल 2000 में वहां से रिटायरमेंट लिया था।

क्यों नहीं ली थी पूरी पेंशन ?

प्रो. आरके. सिंह के मुताबिक, रिटायरमेंट के बाद राजनाथ सिंह की पेंशन के कुल 9,500 रुपए बने, लेकिन उन्‍होंने यह पैसे लेने से साफ इनकार कर दिया। उस वक्त राजनाथ सिंह यूपी के मुख्‍यमंत्री थे। उनसे जब कॉलेज के प्रशासन ने वजह पूछी तो उन्‍होंने कहा कि साल 1992 के बाद से उन्होंने स्टूडेंट्स को नहीं पढ़ाया, इसलिए पेंशन भी उतने ही साल के ही हिसाब से मिलनी चाहिए। इसके बाद जब उनकी पेंशन बनाई गई तो वह कॉलेज के चपरासी से भी कम थी। 1992 में शिक्षा मंत्री बनने पर उन्‍होंने कॉलेज से वेतन भी लेना बंद कर दिया था।

ऐेसे आए राजनीति में

प्रो. आरके. सिंह ने बताया कि राजनाथ सिंह ने स्टूडेंट लाइफ में ही राजनीति का ककहरा सीखना शुरू कर दिया था। उस वक्त भी वो माथे पर तिलक, पैरों में सैंडिल और धोती-कुर्ता पहना करते थे। अपने दोस्तों के बीच वो काफी पॉपुलर थे। लोग उन्हें बड़े ध्यान से सुनते थे और उनकी बताई गई बातों पर अमल भी करते थे। जब भी उन्हें कॉलेज में क्लास नहीं अटेंड करनी होती थी तो वह भागकर संघ के शिविरों में चले जाया करते थे।

जब राजनाथ सिंह को जाना पड़ा जेल

इंदिरा गांधी के समय जब देश में इमरजेंसी लगी तो कई नेताओं की तरह राजनाथ ने भी जेल गए। जेल में रहने के दौरान उनके परिवार में एक व्यक्ति की मौत हो गई, लेकिन उन्होंने सरेंडर नहीं किया। यही वो वक्त था जब राजनाथ ने राजनीति को अपनी जिंदगी बना लिया था।

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