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हर धर्म को जोड़ती है ये भाषा, संस्कृत ने बदली दो गांवों की संस्कृति

Newstrack
Published on: 4 Jun 2016 9:13 AM GMT
हर धर्म को जोड़ती है ये भाषा, संस्कृत ने बदली दो गांवों की संस्कृति
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लखनऊ: वैसे तो आज-कल हर तरफ इंग्लिश और इंग्लिश में बात करने वाले लोगों की पूछ हैं। सब फर्राटेदार इंग्लिश बोलना अपनी शान समझते हैं, ऐसे में हिन्दी की स्थिति क्या है ये सबको पता है और अगर संस्कृत की बात करें तो बेचारी संस्कृत अब धीरे-धीरे खत्म होने के कगार पर है। पहले कम से कम संस्कृत किताबों में तो मिल जाती थी, लेकिन अब तो स्कूल और किताबों से भी ये खत्म हो गई है।

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लेकिन इसके बावजूद आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आज भी देश में 2 गांव ऐसे हैं जहां सिर्फ संस्कृत बोली जाती है। गांव का हर दुकानदार, किसान, महिलाएं यहां तक कि स्कूलों में पढ़ने वाले छोटे बच्चे भी फर्राटेदार संस्कृत में बात करते हैं। यहां दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा को लोगों ने अपने रूटीन में शामिल कर लिया है।

जी हां कर्नाटक और मध्यप्रदेश में ऐसी जगहे है जहां लोगों ने अपनी लोकल लैंग्वेज को छोड़कर संस्कृत को अपना लिया है। स्कूलों में भी प्राइमरी लैंग्वेज के तौर पर संस्कृत पढ़ाई जाती है।

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मध्यप्रदेश का झिरी गांव

मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में झिरी गांव के सभी लोग भी संस्कृत बोलते हैं। इस गांव के लोगों के लिए भी संस्कृत प्राइमरी लैंग्वेज है। स्कूलों में बच्चों को संस्कृत मीडियम में पढ़ाया जाता है। 976 आबादी वाले झिरी गांव में महिलाएं, किसान और मजदूर भी एक-दूसरे से संस्कृत में बात करते हैं। यहां संस्कृत सिखाने की शुरुआत 2002 में विमला तिवारी नाम की समाज सेविका ने की। धीरे-धीरे गांव के लोगों में दुनिया की प्राचीन भाषा के प्रति रुझान बढ़ने लगा और आज पूरा गांव फर्राटेदार संस्कृत बोलता है।

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कर्नाटक शिवमोग्गा के मत्तूरु में

कर्नाटक शिवमोग्गा के पास मत्तूरु ऐसा ही एक गांव है। चाहे हिंदू हो या मुसलमान, इस गांव में रहने वाले सभी लोग संस्कृत में ही बातें करते हैं। यूं तो आसपास के गांवों में लोग कन्नड़ भाषा बोलते हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं है।

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तुंग नदी के किनारे बसा ये गांव बंगलुरु से 300 किलोमीटर की दूरी पर है। इस गांव में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है। हालांकि यहां कुछ समय तक लोग कन्नड़ भाषा में बातें करने लगे थे, 1981-82 तक यहां कन्नड़ ही बोली जाती थी, लेकिन 33 साल पहले पेजावर मठ के स्वामी ने इसे संस्कृत-भाषी गांव बनाने का आह्वान किया था। और मात्र 10 दिन के नियमित 2 घंटे के अभ्यास से पूरा गांव संस्कृत में बात करने लगा था। इसके बाद से अब सारे लोग आपस में संस्कृत में ही बातें करने लगे है।

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मत्तूरु गांव में 500 से ज्यादा परिवार रहते हैं, जिनकी संख्या तकरीबन 3500 के आसपास है। वर्तमान में यहां के सभी लोग संस्कृत समझते हैं और अधिकांश निवासी संस्कृत में ही बात करते है। इस गांव में संस्कृत भाषा के क्रेज का अनुमान आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वर्तमान में स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में से लगभग आधे फर्स्ट लैंग्वेज के रूप में संस्कृत पढ़ रहे हैं।

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इन गांव वालों को पिछड़ा हुआ समझने की भूल न करना, इस गांव के संस्कृतभाषी युवा बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं। कुछ सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं तो कुछ बड़े शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ा रहे हैं। इतना ही नहीं, विदेशों से भी कई लोग संस्कृत सीखने के लिए इस गांव में आते हैं। इस गांव से जुड़ी एक रोचक बात ये भी है कि इस गांव में आज तक कोई भूमि विवाद नहीं हुआ है।

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