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काकोरीः 91 साल पहले यहीं मिली थी अंग्रेजों को चुनौती, लुटा था खजाना

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Published on: 8 Aug 2016 9:47 PM GMT
काकोरीः 91 साल पहले यहीं मिली थी अंग्रेजों को चुनौती, लुटा था खजाना
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लखनऊः साल 1925 की 9 अगस्त की वो रात थी। चारों ओर अंधेरा था। शाहजहांपुर से चली एक पैसेंजर ट्रेन अपने भाप के इंजन के साथ तेज आवाज करती हुई लखनऊ की ओर चली आ रही थी, लेकिन लखनऊ पहुंचने से ठीक पहले काकोरी स्टेशन पर इस ट्रेन के पहिए थम गए। अचानक किसी ने चेन खींच दी थी और ट्रेन को यहां रुकना पड़ा था। ट्रेन का गार्ड ये देखने नीचे उतरा कि किस कोच से चेन खींची गई। उसी वक्त वो हैरतअंगेज घटना हुई, जिसने अंग्रेजों की सत्ता को करारा झटका दिया।

क्या हुआ था उस रात?

ट्रेन का गार्ड हर कोच को देखता हुआ चला आ रहा था। उसी दौरान सेकेंड क्लास कोच से अशफाक उल्लाह खान, शचिंद्र बख्शी और राजेंद्र लाहिड़ी उतर आए। उन्होंने गार्ड को दबोच लिया और उसे जमीन पर पटक दिया। दो अन्य क्रांतिकारी इंजन तक पहुंचे और ड्राइवर की भी गार्ड जैसी ही दशा कर दी गई। सारे क्रांतिकारियों के हाथों में पिस्टलें आ गई थीं। ट्रेन अब उनके कब्जे में थी। क्रांतिकारियों ने हुंकार भरी, 'हम क्रांतिकारी हैं। आप सभी की जिंदगी और इज्जत सुरक्षित है। ट्रेन से बाहर मत निकलिए और खिड़की से मत झांकिएगा।'

काकोरी कांड में शामिल क्रांतिकारी काकोरी कांड में शामिल क्रांतिकारी

...और लूट लिया गया खजाना

चार क्रांतिकारी इसके बाद गार्ड के कोच में चढ़े। लोहे के बक्से में खजाना ले जाया जा रहा था। उस पर ताला लगा था। एक हथौड़ा भी उन्हें मिल गया। ताले पर चोटें पड़ने लगीं और वह खुल गया। इसी बीच, क्रांतिकारियों के साथी रामप्रसाद बिस्मिल को लखनऊ की ओर से एक ट्रेन आती दिखी। उन्होंने तुरंत साथियों को शांत रहने को कहा। ट्रेन जब दूसरी पटरी से गुजर गई, तो खजाने वाले बक्से के ताले पर फिर हथौड़े चलने लगे। ताला टूट गया और उसमें रखा सारा सामान लेकर क्रांतिकारी रात के अंधेरे में गुम हो गए।

फाइलः काकोरी कांड के अमर शहीद अशफाक उल्लाह खान का शव फाइलः काकोरी कांड के अमर शहीद अशफाक उल्लाह खान का शव

कौन-कौन से क्रांतिकारी थे शामिल?

काकोरी में हुई खजाने की इस लूट में रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, शचींद्र बख्शी, चंद्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुंदी लाल, मन्मथ नाथ गुप्त और अशफाक उल्लाह खान समेत 18 क्रांतिकारी शामिल थे। इस मामले में चंद्रशेखर आजाद को छोड़कर बाकी सभी पकड़े गए। इनमें से बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को मौत की सजा दी गई। बाकी को आजीवन कारावास की सजा दी गई। बिस्मिल, अशफाक, राजेंद्र और रोशन ने हंसते हुए फांसी के फंदे को चूमा और वतन की आजादी के लिए अपनी जान दे दी। मौत से पहले उनकी जुबां पर बस यही था, 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है।'

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