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लखनऊ महोत्सव: रंगबिरंगी पतंगों से आसमान हुआ गुलजार, बस एक ही आवाज 'और वो काटा..'
चली चली रे पतंग मेरी चली रे .... बदलो के पार हो के डोर पे सवार, सारी दुनिया ये देख देख जली रे। शायद मंझे हुए पतंगबाजों को विरोधियों की पतंग काट कर कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा हो। हाथ में बरेली के तेज मांझे की चरखी और लखनऊ की मशहूर कनकव्वा पतंग का साथ ,सबकी नजरें आसमान पर और वो काटा... की आवाज के साथ इठलाती पतंगें खुले आसमान में छा गई।
लखनऊ : लखनऊ महोत्सव में वैसे तो सभी चीजे खास है पर जब बात पतंगबाजी की हो तो लखनऊवासी कैसे पीछे रह सकते है। महोत्सव की पतंगबाजी की इस प्रतियोगिता में सारे प्रतिभागियों में अपनी पतंग को ऊंचा उड़ा कर दूसरों की पतंग काटने की होड़ लगी हुई थी।
पतंगबाजी में सिर्फ पतंबाज ही नहीं बल्कि उनके सपोर्टर्स भी उन्हें चीयर करते नजर आए। पतंगों की इस जंग में सरकार के मंत्री अभिषेक मिश्रा ने भी पतंगबाजी में हाथ आजमाए और पेच लड़ाते हुए पतंग महोत्सव का उद्घाटन किया ।
आधुनिकता के दौर में फीका पड़ता पतंगों का रंग
चली चली रे पतंग मेरी चली रे .... बदलो के पार हो के डोर पे सवार, सारी दुनिया ये देख देख जली रे। शायद मंझे हुए पतंगबाजों को विरोधियों की पतंग काट कर कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा हो। हाथ में बरेली के तेज मांझे की चरखी और लखनऊ की मशहूर कनकव्वा पतंग का साथ ,सबकी नजरें आसमान पर और वो काटा... की आवाज के साथ इठलाती पतंगें खुले आसमान में छा गई।
दरअसल, यह नजारा है झूलेलाल पार्क का जहां लखनऊ महोत्सव के तहत हुई सोमवार से पतंगबाजी प्रतियोगिता की शुरुआत हुई। जहां हर पतंगबाज अपनी रंग बिरंगी पतंगों के साथ खेलता नजर आया। सभी पतंगबाज पतंगों के इस आसमानी दाव पेंच में अपनी पतंग से दूसरे की पतंग को काटने की पुरजोर कोशिश कर रहे थे। जहां एक तरफ पतंगबाज अपनी पतंगों को हवा में गोते लगवा रहे थे। वहीं रंग-बिरंगे आसमान को निहारने वालों की भी कमी नही थी। लेकिन पतंगबाजों के दिल में इस बात का मलाल है कि आधुनिकता के दौर में उनका यह शौक सिर्फ इस प्रतियोगिता तक ही सीमित रह जाता है।
पुराने लखनऊ में अब भी है पतंगबाजी के कद्रदान
अगर बात नवाबों के शहर लखनऊ की हो और पतंगबाजी का जिक्र न आए ये कैसे हो सकता है। भले ही आज जिंदगी की भाग-दौड़ की जिंदगी और मोबाइल गेम्स ने लोगों को पतंगबाजी से दूर कर दिया हो पर आज भी पुराने लखनऊ के लोगो का पतंगबाज़ी ही पसंदीदा खेल है। अपने रोज़मर्रा के कामो में जुटे लोग पतंग प्रतियोगिता का साल भर इंतजार करते है। इस प्रतियोगिता के आते ही अपने सारे काम छोड़ कर मैदान में दो-दो पेंच लड़ाने पतंगबाज आ जाते है।खास बात यह है कि पतंग महोत्सव के तहत 3 दिसंबर तक कई प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी। जिसमें स्कूली बच्चे भी शिरकत कर सकेंगे।
जिंदा रखने की जद्दोजहद में जुटे पतंगबाज
यूं तो काफी बदलाव हो चुके है और इसी बदलाव ने नवाबो के पुराने खेल पतंगबाज़ी को भी लोगों से दूर कर दिया है। लेकिन हर साल महोत्सव में लोगों का पतंगबाजी में बढ़ता क्रेज देख कर यह कहा जा सकता है कि कोई भी पतंगबाज, पतंगबाजी की कला को खोने नहीं देना चाहता इसीलिए हर साल पतंगबाज जमघट और महोत्सव के दौरान अपने मांझे की धार तेज कर आसमान में पतंगों की जंग के साथ आधुनिकता के दौर में खोती हुई पतंगबाजी को जिंदा रखने की जद्दोजहद में जुटा रहता है।