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ये है CM और PM बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले PK का अब तक का सफर

zafar
Published on: 17 Oct 2016 9:38 AM GMT
ये है CM और PM बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले PK का अब तक का सफर
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aman kumar aman kumar

लखनऊ: साल 2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाने में उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) का अहम योगदान था। उसके बाद सियासी गलियारों में प्रशांत किशोर को लेकर होड़ मच गई। नरेंद्र मोदी के प्रचार की कमान संभालने के बाद प्रशांत किशोर ने नीतीश के चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी संभाली और जीत भी दिलाई। इसके बाद प्रशांत किशोर यूपी और पंजाब चुनाव के लिए राहुल गांधी के सबसे बड़े रणनीतिकार बन गए। लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि पीके ने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया।

बताया जा रहा है कि प्रशांत किशोर कांग्रेस की अन्तर्कलह से तो परेशान थे ही उस पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर शहीदों की 'खून की दलाली' का आरोप लगाया था। बताया जाता है प्रशांत किशोर राहुल के इस बयान से खासे नाराज थे। पीके के कांग्रेस का साथ छोड़ने के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है। हालांकि पाइक के जाने के बाद अब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2017 की तैयारियों को झटका जरूर लगेगा।

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कौन हैं प्रशांत किशोर?

39 वर्षीय प्रशांत किशोर बिहार के बक्सर जिले के रहने वाले हैं। वो दक्षिण अफ्रीका में यूनाइटेड नेशंस के हेल्थ वर्कर रह चुके हैं। साल 2011 में पीके भारत लौटे। तब गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार ने उन्हें सामाजिक क्षेत्र का नीति सलाहकार बनाया था। इसी दौरान उन्होंने राजनीतिक पार्टियों के चुनाव प्रचार और रणनीति बनाने को लेकर काम शुरू किया। उन्होंने एक कंपनी बनाई। इसका नाम रखा 'सीएजी'। प्रशांत कुमार की टीम में 400 लोग काम करते हैं। इनमें आईआईएम और आईआईटी से पास छात्र शामिल हैं।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ें प्रशांत किशोर के बारे में पूरी खबर ...

मोदी के लिए ऐसे किया था प्रचार

सबसे पहले प्रशांत किशोर ने बीजेपी और नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर गुजरात में चुनावी कैंपेन शुरू किया। साल 2012 में उन्होंने गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कैंपेन की कमान अपने हाथों में ली थी। इसके बाद 2014 में मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी भी प्रशांत किशोर को सौंपी। उस दौरान प्रशांत किशोर गुजरात के सीएम हाऊस में रहकर रणनीति तैयार करते रहे और मोदी के दूसरे करीबी अमित शाह उसे देशभर में फैलाते रहे।

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'बिहार में बहार हो..नीतीशे कुमार हो..'

2014 के लोकसभा चुनाव में बंपर जीत के बाद बीजेपी ने प्रशांत को ज्यादा अहमियत नहीं दी। कुछ ही महीने बाद बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने प्रशांत कुमार को चुनाव प्रचार का जिम्मा सौंपा। पीके ने नीतीश की विकास छवि को घर-घर से जोड़ा। 'बिहार में बहार हो..नीतीशे कुमार हो..'। इस नारे और गाने को हिट कराया। नीतीश की खोई जमीन पीके ने वापस दिला दी। इसके बाद राहुल गांधी और कांग्रेस ने प्रशांत किशोर पर भरोसा जताया, जो संबंध अब टूट गया है।

ऐसा होता है पीके का चुनावी वॉर रूम

इस सबके बाद आम लोगों के जेहन में ये बात उठाना लाजिमी है कि आखिरकार प्रशांत किशोर की टीम काम कैसे करती है। पीके के साथ काम करने वाले बताते हैं कि वॉर रूम में सब कुछ तय होता है। जैसे- चुनाव प्रचार में कौन नेता किससे मिलेगा? कौन नेता कब क्या बोलेगा? नीतीश जब बिहार में बोलेंगे तो क्या बोलेंगे? पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह किस रंग की पगड़ी पहनेंगे? ये सब प्रशांत किशोर की टीम वॉर रूम में तय होता है। गुजरात दंगे के बाद नरेंद्र मोदी की छवि प्रभावित हुई थी उससे उबारते हुए उन्हें किस तरह लोकसभा चुनाव में प्रभावशाली छवि में बदला जाए ये सब पीके की वॉर रूम में तय होता है।प्रशांत का वॉर रूम दिल्ली के 15, गुरुद्वारा रकाबगंज रोड पर स्थित है।

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'चाय पर चर्चा' और 'खाट सभा'

गौरतलब है कि बीते लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की 'चाय पर चर्चा' खासी लोकप्रिय रही थी। इसी तरह यूपी में राहुल गांधी के लिए उन्होंने 'खाट सभा' का आयोजन किया। पीके के बारे में कहा जाता है कि वो चुनावी रणनीति बनाने में ऐसी चीजों का जरूर और खास ध्यान रखते हैं जससे नेता को आमजन से सीधे जोड़ा जा सके। इसी के तहत प्रशांत किशोर पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे को सामने रखते हुए नारा दिया- 'पंजाब दा कैप्टन और कैप्टन दा पंजाब'।

पीके मतलब जीत की गारंटी

चुनावी रणनीतिकार के रूप में पीके कुछ इस कदर लोकप्रिय हुए कि उन्हें चुनाव में जीत की गारंटी माना जाने लगा। पार्टियां ये कहने लगीं कि 'चुनाव जीतना है तो पीके को पकड़ो।' बिहार चुनाव के नतीजे आते ही प्रशांत किशोर की सेवाएं लेने की नेताओं और राजनीतिक दलों में होड मच गई। पांच राज्यों में होने वाले चुनावों को लेकर ज्यादातर नेताओं ने पीके का नंबर घुमाया। मुलाकात तो ममता बनर्जी से भी हुई लेकिन बात नहीं बनी थी। काफी सोच-विचार के बाद पीके ने कैप्टन अमरिंदर को हां किया। फिर यूपी के लिए भी कांग्रेस के साथ अनुबंध साइन किया।

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कांग्रेस के साथ गहरी हुई खाई

प्रशांत किशोर अपने ही अंदाज में यूपी में कांग्रेस के लिए काम करने में जुट गए। लेकिन उन्हें झटका तब लगा जब गांधी परिवार के गढ़ में उन्हें 'नो एंट्री' का सामना करना पड़ा। एक रिपोर्ट के मुताबिक उन्हें अमेठी और रायबरेली के साथ-साथ सुल्तानपुर से भी दूर रखा जाने लगा। दरअसल, अमेठी और रायबरेली में कैंपेन की कमान अब तक प्रियंका गांधी ही संभालती रही हैं। अमेठी जहां राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र है वहीं रायबरेली सोनिया गांधी का। इन दोनों के पड़ोस में ही जिला सुल्तानपुर है। यहां से प्रियंका और राहुल के चचेरे भाई वरुण गांधी बीजेपी के सांसद हैं। पीके ने यूपी के सभी जिलों से 20-20 कार्यकर्ताओं के नाम मांगे थे। इनमें बाकी जिलों ने तो भेज दिये लेकिन अमेठी, रायबरेली और सुल्तानपुर ने नहीं भेजे।

वर्चस्व की लड़ाई या कुछ और ..

वैसे तो कहा ये गया है कि प्रियंका गांधी ने अमेठी रायबरेली और सुल्तानपुर के लिए ग्रास रूट लेवल के कार्यकर्ता तैयार कर दिए हैं। इसलिए वहां पीके की जरूरत ही नहीं है। इस बीच खबर ये भी आई कि कांग्रेस नेताओं को पीके की कार्यशैली रास नहीं आ रही। बाकी तो चुप हैं लेकिन तीन जिलों के कांग्रेस प्रमुखों ने पीके के खिलाफ बगावत कर दी है।

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पीके के हाथ बांधे गए

पीके साथ ऐसा पहली बार हुआ। प्रशांत किशोर के हाथ इतने बंधे हुए कभी ना थे। नरेंद्र मोदी और नीतीश के कैंपेन में उन्हें खुली छूट मिली हुई थी। प्रशांत किशोर ने अपनी टीम के लिए कांग्रेस के वॉर रूम में और अपने लिए कांग्रेस हेडक्वार्टर 24, अकबर रोड में जगह मांगी थी, लेकिन उसे नामंजूर कर दिया गया था।

खैर जो भी हो। आखिरकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस की चुनावी तैयारियों से तौबा कर लिया। अब ये भी देखना होगा कि कांग्रेस की यूपी में पहले से ही डूबती नैया को अब किस तारणहार का सहारा है।

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