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अजब-गजब: यूपी में यहां लगती है लड़की बोली, फिर उठती है उसकी डोली
जौनपुर: जिले के दो विकास खंड के करीब आधा दर्जन गांवों में मंगता जाति के सैकड़ों ऐसे परिवार हैं, जहां आज भी हाथ पीले होने की उम्र होने पर दुल्हन की सार्वजनिक बोली लगती है। बोली में हिस्सा सिर्फ उसी समाज के लोग ले पाते हैं। जो सबसे ज्यादा बोली लगाते है, दुल्हन उसकी हो जाती है। फिर पूरी रीति-रिवाज से उसकी शादी कर दी जाती है। यहां जौनपुर जिले में कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां शादी की उम्र होने पर दुल्हन की सार्वजनिक बोली लगती है जो जितनी बढ़कर बोली लगती है दुल्हन उसी की हो जाती है। भारत देश की गिनती विकासशील देशों में की जाती हैं। लेकिन आज भी भारत के गावों में ऐसे कई रीती-रिवाज चले आ रहे हैं जो भारत को आगे बढ़ने से रोकते हैं। आज भी देश के अधिकतर कोनों में कई तरह की कुप्रथाएं हैं। उसी में एक शादी के लिए लड़कियों की नीलामी की जाती हैं। सुनने में अचरज लगता है लेकिन ऐसी चीजें अभी भी होती है ।
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यूपी के जौनपुर जिले की ये सच्ची कहानी है जहां के लगभग आधा दर्जन गांव में सैकड़ों परिवार रहते हैं जो कि मंगता जाति के हैं। इनके परिवार में जैसे हीं किसी भी लड़की की उम्र शादी के लायक हो जाती है तो सार्वजनिक तौर पर शादी के लिए लड़कियों की नीलामी की जाती है। जब कभी भी शादी के लिए लड़कियों की नीलामी की जाती है तो उसमें सिर्फ उसी समाज के लोगों को हिस्सा लेने का अधिकार होता है जो अधिक से अधिक बोली लगाता हो। जो सबसे अधिक बोली लगाता है उस लड़की को वही दुल्हन बना सकता है। मंगता जनजाति के लोग लड़कियों को समृद्धि का पर्याय मानते हैं। लड़कियों की शादी की उन्हें कोई चिंता नहीं होती।
विकास खंड बख्शा के रसिकापुर, सराय विभार और महराजगंज विकास खंड के चांदपुर, लाल बाग, घरवासपुर एवं आराजी सवंसा में इस जाति के लोग निवास करते हैं। यह परिवार होली, दीपावली, विजया दशमी आदि पर्व पूरी आस्था के साथ मनाते हुए खुद को हिंदू धर्म से जोड़े हुए हैं। शिक्षा से दूर रहने के कारण आज भी यह समाज बहुत पिछड़ा और अभावग्रस्त है। इनकी पचासी फीसदी आबादी इक्कीसवीं सदी में भी झोपड़ों और कच्चे घरों में जिंदगी बसर करती है। स्कूल चलो अभियान शुरु होने पर 60 फीसदी बच्चों का प्राथमिक स्कूलों में नामांकन तो होता है लेकिन बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं। दिन भर गांव में इधर-उधर घूमते हैं या फिर घर पर रहते हैं।
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मंगता बिरादरी में कन्या को समृद्धि का पर्याय माना जाता है। कन्या की उम्र जब शादी के योग्य हो जाती है तो उनके माता-पिता को बहुत चिंता नहीं करनी पड़ती। इसकी वजह यह है कि समाज में दहेज जैसी कुरीति से कोसों दूर है। शादी की बात चलते ही इसी समाज के युवकों का जमावड़ा लगता है। वे कन्या को देख कर बोली लगाते हैं। जो सबसे ज्यादा बोली लगाता है उसी युवक के साथ उसकी शादी तय कर दी जाती है। बोली लगाने के दौरान कभी-कभी विवाद भी हो जाता है लेकिन दूसरी बिरादरी के लोगों की पंचायत बुलाने या पुलिस का सहयोग लेने की बजाय खुद ही पंचायत बैठा कर आपसी सहमति से उसका समाधान कर लेते हैं। वर पक्ष से कन्या पक्ष शादी का पूरा खर्च लेता है। यह रकम 25 हजार से लेकर डेढ़ लाख तक होती है।