Women Day Special: प्यार अल्फाजों का मोहताज नहीं होता, मूक बधिर लोगों की आवाज व कान हैं ललिता

मोहब्बत की नगरी में जहां बेगम मुमताज और शाहजहां का प्यार ताजमहल के रूप में आज भी ज़िंदा है, वहीं ललिता और अंशु की कहानी भी कम नहीं है।

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Published on: 8 March 2017 6:00 AM GMT
Women Day Special: प्यार अल्फाजों का मोहताज नहीं होता, मूक बधिर लोगों की आवाज व कान हैं ललिता
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आगरा: कहते हैं कि जब कोई लड़का-लड़की एक-दूसरे के साथ 7 फेरे लेते हैं, तो उनमें एक वचन उनका एक-दूसरे के सुख-दुःख में शामिल होने का होता है कुछ इसी वादे को सच कर दिखाया है आगरा की ललिता गुप्ता ने मोहब्बत की नगरी में जहां बेगम मुमताज और शाहजहां का प्यार ताजमहल के रूप में आज भी ज़िंदा है, वहीं ललिता और अंशु की कहानी भी कम नहीं है

मोहब्बत की नगरी आगरा के थाना न्यू आगरा के बल्केश्वर निवासी ललिता गुप्ता एक ऐसी जीवनसंगिनी हैं, जो अपने पति अंशु गुप्ता की आवाज बनी हुई हैं। अपने जीवन को ललिता ने ध्येय भी यही दिया हुआ है। मूक बधिरों की अनुवादक ललिता अपनी इसी संवेदना के कारण राज्यपाल राम नाइक से पुरस्कृत भी हो चुकी हैं।अपने क़रीब की सामाजिक उपेक्षा से टूटे एक शख्स ने समाज के उस वर्ग की मदद करने की ठान ली, जो अब तक लगभग उपेक्षित ही पड़ा हुआ था।

ज़िंदगी में कई बार ऐसा होता है कि आदमी जब सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा होता है, तो सबसे ज्यादा परेशान महसूस करता है, पर कभी-कभी उसे वहीं से उसे जीने का मक़सद मिल जाता है। मक़सद ऐसा जिसमें कई लोगों की ज़िंदगी संवारने की इच्छा दृढ़ हो, दूसरे परेशानहाल लोगों के चेहरों पर खुशी ला सकें। ऐसे लोगों से ही देश और समाज एक दिशा पाता है, ऐसे लोगों की वजह से ही हम कह पाते हैं कि इस बुरे दौर में भी इंसानियत बाकी है।

आगे की स्लाइड में जानिए आखिर क्यों थामा लीलता ने एक मूक-बधिर इंसान का हाथ

ये कहानी है आगरा की ललिता गुप्ता की, जिन्होंने अपने मूक-बधिर माता पिता के हालातों को देखते हुए परेशान रहने के बजाय दूसरे मूक-बधिरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए अपने आप को झोंक दिया। सन्नाटे की दुनिया के प्रति अपनी इस संवेदना के बारे में ललिता ने बताया कि जब उन्होंने होश संभाला, तो खुद के आप- पास भी ऐसी ही शांत दुनिया को पाया। उनके माता-पिता मूक बधिर थे। दोनों एक-दूसरे की दिल की बोली को समझते थे, लेकिन दुनिया से अलग-थलग थे। साथी बच्चों के बोलने- सुनने की क्षमता रखने वाले माता- पिता लड़ते-झगड़ते थे और मेरे अभिभावक सिर्फ आंखों से ही हर बात को समझते और इशारों से कहते थे। दुनिया फिर भी उनका मजाक बनाती। इसी रंज ने मुझे प्रेरित किया सन्नाटे की इस दुनिया को आवाज देने का।

दिल की बोली को समझने की आदत बचपन से ही हो चुकी थी। तो अपने पति के दिल की आवाज को भी उन्होंने सुना। लोगों ने विरोध किया कि मूक बधिर युवक से शादी न करें, लेकिन दिल की बात दिल से सुनी और अंशु का हाथ थाम लिया। ललिता कहती हैं कि समाज बहुत दफा ऐसे लोगों को मंदबुद्धि समझता है, लेकिन वास्तविकता में ये लोग बुद्धिमानों से अधिक बुद्धिमान होते हैं।

आगे की स्लाइड में जानिए इस अनोखी जोड़ी से जुड़ी दिल को छू जाने वाली बातें

नोएडा में जॉब के दौरान ललिता ने मूक- बधिर लोगों के लिए कार्यरत एक संस्था को ज्वाइन किया। इसके बाद आगरा आकर अपने पति के साथ मूक बधिर महिलाओं के लिए चल रही संस्था आगरा फाउंडेशन ऑफ दी डेफ वूमेन और आगरा एसोसिएशन ऑफ दी डेफ को गति प्रदान की। बतौर अनुवादक इन संस्थाओं से जुड़ीं और सामाजिक अवसरों पर इन संस्थाओं को आगे लाने का कार्य कर रही हैं।

ललिता का मिशन समाज की मुख्यधारा से कटे ऐसे लोगों को रोजगार मुहैया कराना भी है। वीडियो कॉलिंग के साथ प्रतिदिन ऐसे ही बच्चों से बात करना और प्रतिदिन उनकी किसी न किसी समस्या का समाधान करना भी ललिता की दैनिक जीवनचर्या बन चुकी है। उनके द्वारा प्रशक्षिति युवक- युवतियों को कई नामचीन होटल्स में जॉब मिल चुकी है। ललिता का कहना है कि सरकार को मूक-बधिरों के भविष्य के लिए गंभीर रूप से सोचना चाहिए। नेत्रहीनों के लिए ब्रेललिपी की तर्ज पर मूक बधिरों के लिए भी शक्षिा में कोई विशेष सुविधा होनी चाहिए।

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