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B'day: 2 करोड़ लोगों के साथ धर्म बदलने वाले थे कांशीराम,जानें और FACTS
दलितों के उत्थान के लिए जीवन समर्पित करने वाले नेता कांशीराम का आज यानि, 15 मार्च को जन्मदिवस है। इस मौके पर newztrack.com आपको बता रहा है बीएसपी संस्थापक कांशीराम के जीवन से जुड़े किस्से...
लखनऊ: कांशीराम मूलरूप से पंजाब के रैदार सिख परिवार में जन्मे। अपने काम की बदौलत महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में उनके करोड़ों समर्थक हैं। सरकारी नौकरियों में दलितों के उत्पीड़न के खिलाफ कांशीराम ने ही ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्यूनिटी एम्पलॉईज फेडरेशन (बामसेफ) की स्थापना की थी।
कभी डीआरडीओ में करते थे नौकरी
-कांशीराम ने रोपर के सरकारी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया।
-इसके बाद डीआरडीओ में बतौर वैज्ञानिक सहायक नौकरी ज्वाइन कर ली।
-1965 डॉ. भीम राव अंबेडकर के जन्मदिन पर सरकारी अवकाश दिलाने को लेकर शुरू हुए एक आंदोलन में वह शामिल हो गए।
सरकारी नौकरी में भेदभाव के खिलाफ मोर्चा
-1971 में नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने दलितों के लिए के उत्थान की मुहिम शुरू की।
-सकरारी नौकरी में भेदभाव को लेकर उन्होंने बामसेफ संस्था बनाई।
-बामसेफ के मेंबर्स पर कई जगह हमले भी हुए।
-हमलों का जवाब देने के लिए 1981 में उन्होंने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएस-4) का गठन किया।
-इस संगठन के सदस्य बामसेफ के साथियों की सुरक्षा करते थे। साथ ही हमलों का मुहतोड़ जवाब भी देते थे।
बीएसपी की स्थापना
-1984 में उन्होंने एक और संगठन का गठन किया और नाम रखा बहुजन समाज पार्टी (बसपा)।
-यह उनका राजनीतिक फ्रंट था जिसके जरिये सरकारी कर्मचारियों के साथ ही आम लोगों को भी जोड़ने की मुहिम शुरू हुई।
-कांशीराम ने दलितों को एकजुट किया और पार्टी को सत्ता की दहलीज पर ला दिया।
धर्म बदलने की अधूरी ख्वाहिश
-2002 में कांशीराम ने घोषणा की कि वह 14 अक्टूबर 2006 को जब अंबेडकर के बौध धर्म अपनाने के 50 साल पूरे होंगे, तो वह अपने दो करोड़ समर्थकों के साथ बौध धर्म अपना लेंगे।
-हालांकि, 14 अक्टूबर से पहले ही 9 अक्टूबर 2006 को वह लंबी बीमारी के बाद मौत हो गई।
-बौध धर्म अपनाने को लेकर तो उनकी घोषणा भले ही पूरी नहीं हुई, लेकिन बीएसपी प्रमुख मायावती के निर्देश पर बौध धर्म की मान्याताओं के अनुसार उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
मायावती सबसे करीब
-कांशीराम ही मायवती को राजनीति में आगे लेकर आए। मायावती की मेहनत और जुझारूपन को देखते हुए कांशीराम ने उन्हें पार्टी की बागडोर सौंपी।
-मायावती कांशीराम के सबसे करीब और भरोसेमंद रहीं।