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अर्जन की अंत्येष्टि सोमवार को, मार्शल के किस्से जो भर देंगे लहू में गर्मी
नई दिल्ली : भारतीय वायुसेना मार्शल अर्जन सिंह की अंत्येष्टि सोमवार को राजकीय सम्मान के साथ की जाएगी, तब तक राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा। अर्जन सिंह वायुसेना के पहले फाइव स्टार रैंक के अधिकारी थे और लंबी अवधि तक जीवित रहने वाले एक मात्र फाइव स्टार रैंक के अधिकारी रहे।
गृह मंत्रालय से जारी एक बयान में कहा गया है कि अर्जन सिंह की अंत्येष्टि दिल्ली छावनी के बरार स्क्वेयर पर सोमवार को सुबह 10 बजे किया जाएगा।
बयान के मुताबिक, दिवंगत मार्शल की अंत्यष्टि पूरे राजकीय सम्मान के साथ की जाएगी। दिल्ली के सभी शासकीय भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा।
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अर्जन सिंह के पार्थिक शरीर के साथ उनकी अंतिम यात्रा उनके अावास 7, कौटिल्य मार्ग से सुबह 8.30 बजे शुरू होगी।
उन्हें बंदूकों की सलामी दी जाएगी। रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि यदि मौसम सही रहा तो विमानों के परेड के जरिए राष्ट्रीय नायक को अंतिम श्रद्धांजलि दी जाएगी। उनकी अंत्येष्टि सुबह 9.30 बजे शुरू होगी।
अर्जन सिंह (98) ने पाकिस्तान के खिलाफ 1965 में हुए युद्ध में हवाई अभियान का नेतृत्व किया था।
उन्हें दिल का दौरा पड़ने के बाद आर्मी रिसर्च व रेफरल अस्पताल के इंटेन्सिव केयर यूनिट में भर्ती कराया गया था, शनिवार को उन्होंने अंतिम सांस ली।
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किस्से जिन्हें देश कभी भूल नहीं सकता, अर्जन की जुबानी
जब तक कोई बुुलेट पास से न हो कर गुजरे, लगता ही नहीं कि आप जंग में है- अर्जन
शुरु- शरु मे मुझे भी ड़र लगता डर लगा था लेकिन धीरे- धीरे वह निकलता गया। 1440 में नार्थ वेस्ट फंटियर प्रोविंस में मेरे विमान को पठानों ने मार गिराया । हमारा विमान दो पहाड़ियों के बीच एक सूखी नदी में जा गिरा, जिसकी चौड़ाई घग्गर नदी जितनी थी। ऐसी धनी सोच के हम सबके एयर मार्शल अर्जन सिंह हम सबके बीच नहीं रहे।
उनकी वीरता की कई कहानियां, विभिन्न समाचार पत्रों,पत्रिकाओं में उनके साक्षात्कार साहस और शौर्य की मिशाल बनें। 16 सितबंर को उन्होने अंतिम सांस ली। 15 अप्रैल 1919 में जन्म लेने वाले अर्जन सिंह मात्र 19 की आयु में 1938 में राॅयल काॅलेज आफ एयर फोर्स के लिए चुन लिए गए थे। एक अखबार मे दिए गए अपने साक्षात्कार में उनहोने कहा आरएफ में प्रशिक्षण दो वर्ष तक चला। उसी दौरान सितंबर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरु हो गया और उसी साल हमें ‘आरएएफ ‘ मे कमीशन मिल गया।
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उन दिनो ब्रिटेन के राॅयल एयर फोर्स से लेकर भारतीय वायु सेना के पास पायलटों की भारी कमी थी। भारतीय वायु सेना के पास उन दिनों केवल अंबाला में सिर्फ एक स्क्वाड्रन हुआ करता था। जनवरी , 1940 में मैने और पटियाला राजघराने के पृथ्वीपाल सिंह ने एक साथ राॅयल इंडियन एयर फोर्स ज्वाइन की। अंबाला में ज्वाइनिंग के बाद मै कराची गया। उसके बाद नार्थ वेस्ट फंटियर प्रोविंस पहुंच गया। वह मैदानी इलाका नहीं बल्कि गुफाओं और घाटियों से भरा क्षेत्र था।
मुझे 1943 में जापानियों के खिलाफ मोर्चा संभालने के लिए इंफाल भेजा गया। तब तक मै चार रैंक के प्रमोशन के बाद स्क्वाड्रन लीडर बन चुका था। जापानियों ने इंफाल घाटी को चारो ओर से घेर लिया था, और एक मात्र सड़क को अवरुद्ध कर दिया था। ऐसी सूरत में अमेरिकी एयरफोर्स ने हमारी मदद की और सप्लाई जारी रखी । इस जंग ने यह सावित कर दिया कि भारतीय वायु सेना स्थापित वायुसेना से भी लड़ने में सक्षम है।
इस जंग के लिए मुझे विशिष्ट फ्लाइंग क्रास से नवाजा गया। मेरे स्क्वाड्रन को कुल आठ डीएफसी मिले।
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– उनसे मिलने पीएम मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण हॉस्पिटल गए थे।
– पीएम के वहां पहुंचने के कुछ देर बाद ही सिंह ने दम तोड़ दिया। प्रधानमंत्री ने उनके निधन का दुख जताया है।
– पीएम ने ट्विटर के जरिये बताया कि -कुछ समय पहले मैं उनसे मिला था। उनकी सेहत ठीक नहीं थी। फिर भी मेरे रोकने के बावजूद उन्होंने खड़े होकर सैल्यूट करने की कोशिश की। सेना का ऐसा अनुशासन उनके अंदर भर था।’
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