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अर्जन की अंत्येष्टि सोमवार को, मार्शल के किस्से जो भर देंगे लहू में गर्मी

Rishi
Published on: 17 Sept 2017 6:55 PM IST
अर्जन की अंत्येष्टि सोमवार को, मार्शल के किस्से जो भर देंगे लहू में गर्मी
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नई दिल्ली : भारतीय वायुसेना मार्शल अर्जन सिंह की अंत्येष्टि सोमवार को राजकीय सम्मान के साथ की जाएगी, तब तक राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा। अर्जन सिंह वायुसेना के पहले फाइव स्टार रैंक के अधिकारी थे और लंबी अवधि तक जीवित रहने वाले एक मात्र फाइव स्टार रैंक के अधिकारी रहे।

गृह मंत्रालय से जारी एक बयान में कहा गया है कि अर्जन सिंह की अंत्येष्टि दिल्ली छावनी के बरार स्क्वेयर पर सोमवार को सुबह 10 बजे किया जाएगा।

बयान के मुताबिक, दिवंगत मार्शल की अंत्यष्टि पूरे राजकीय सम्मान के साथ की जाएगी। दिल्ली के सभी शासकीय भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा।

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अर्जन सिंह के पार्थिक शरीर के साथ उनकी अंतिम यात्रा उनके अावास 7, कौटिल्य मार्ग से सुबह 8.30 बजे शुरू होगी।

उन्हें बंदूकों की सलामी दी जाएगी। रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि यदि मौसम सही रहा तो विमानों के परेड के जरिए राष्ट्रीय नायक को अंतिम श्रद्धांजलि दी जाएगी। उनकी अंत्येष्टि सुबह 9.30 बजे शुरू होगी।

अर्जन सिंह (98) ने पाकिस्तान के खिलाफ 1965 में हुए युद्ध में हवाई अभियान का नेतृत्व किया था।

उन्हें दिल का दौरा पड़ने के बाद आर्मी रिसर्च व रेफरल अस्पताल के इंटेन्सिव केयर यूनिट में भर्ती कराया गया था, शनिवार को उन्होंने अंतिम सांस ली।

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शुरु- शरु मे मुझे भी ड़र लगता डर लगा था लेकिन धीरे- धीरे वह निकलता गया। 1440 में नार्थ वेस्ट फंटियर प्रोविंस में मेरे विमान को पठानों ने मार गिराया । हमारा विमान दो पहाड़ियों के बीच एक सूखी नदी में जा गिरा, जिसकी चौड़ाई घग्गर नदी जितनी थी। ऐसी धनी सोच के हम सबके एयर मार्शल अर्जन सिंह हम सबके बीच नहीं रहे।

उनकी वीरता की कई कहानियां, विभिन्न समाचार पत्रों,पत्रिकाओं में उनके साक्षात्कार साहस और शौर्य की मिशाल बनें। 16 सितबंर को उन्होने अंतिम सांस ली। 15 अप्रैल 1919 में जन्म लेने वाले अर्जन सिंह मात्र 19 की आयु में 1938 में राॅयल काॅलेज आफ एयर फोर्स के लिए चुन लिए गए थे। एक अखबार मे दिए गए अपने साक्षात्कार में उनहोने कहा आरएफ में प्रशिक्षण दो वर्ष तक चला। उसी दौरान सितंबर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरु हो गया और उसी साल हमें ‘आरएएफ ‘ मे कमीशन मिल गया।

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उन दिनो ब्रिटेन के राॅयल एयर फोर्स से लेकर भारतीय वायु सेना के पास पायलटों की भारी कमी थी। भारतीय वायु सेना के पास उन दिनों केवल अंबाला में सिर्फ एक स्क्वाड्रन हुआ करता था। जनवरी , 1940 में मैने और पटियाला राजघराने के पृथ्वीपाल सिंह ने एक साथ राॅयल इंडियन एयर फोर्स ज्वाइन की। अंबाला में ज्वाइनिंग के बाद मै कराची गया। उसके बाद नार्थ वेस्ट फंटियर प्रोविंस पहुंच गया। वह मैदानी इलाका नहीं बल्कि गुफाओं और घाटियों से भरा क्षेत्र था।

मुझे 1943 में जापानियों के खिलाफ मोर्चा संभालने के लिए इंफाल भेजा गया। तब तक मै चार रैंक के प्रमोशन के बाद स्क्वाड्रन लीडर बन चुका था। जापानियों ने इंफाल घाटी को चारो ओर से घेर लिया था, और एक मात्र सड़क को अवरुद्ध कर दिया था। ऐसी सूरत में अमेरिकी एयरफोर्स ने हमारी मदद की और सप्लाई जारी रखी । इस जंग ने यह सावित कर दिया कि भारतीय वायु सेना स्थापित वायुसेना से भी लड़ने में सक्षम है।

इस जंग के लिए मुझे विशिष्ट फ्लाइंग क्रास से नवाजा गया। मेरे स्क्वाड्रन को कुल आठ डीएफसी मिले।

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अर्जन सिंह भारतीय वायुसेना के ऐसे एकमात्र अफसर थे, जिन्हें फील्ड मार्शल के समकक्ष पांच सितारा रैंक पर प्रोन्नत किया गया था। अर्जन सिंह ने 15 अगस्त 1947 के ऐतिहासिक दिन को वायु सेना के 100 से भी अधिक विमानों के लाल किले के ऊपर से फ्लाइ-पास्ट का भी नेतृत्व किया था।

पाकिस्तान के साथ 1965 की जंग में भारतीय वायुसेना का नेतृत्व कर चुके अर्जन सिंह का कहना था कि अगर संयुक्त राष्ट्र बीच में न आ गया होता और अगर जंग कुछ दिन और खिंच जाती तो फिर भारत जीत निर्णायक हुई होती।

हमारे पठानकोट और कलईकुंडा के अड्डों पर पाकिस्तान के हमलों में हमें शुरुआती नुकसान हुआ था। तत्कालीन रक्षामंत्री यशवंतराव चव्हाण ने भारतीय वायुसेना को हवाई हमले की हरी झंडी दे दी। हमने जल्द ही सैन्य कार्रवाई में संतुलन हासिल कर लिया और तीन दिन के अंदर उन पर (पाकिस्तान पर) पूरी तरह से अपनी हवाई श्रेष्ठता साबित कर दी।

पठानकोट, अंबाला और आदमपुर के लड़ाकू विमान पाकिस्तान के प्रमुख हवाई ठिकानों जैसे सरगोधा, पेशावर, कोहाट आदि पर धावा बोलने में सफल रहे। इन हमलों को ऐसे अंजाम दिया गया था कि हमारे विमान कश्मीर घाटी में उड़ते थे और ये पाकिस्तानी रडार से बचने के लिए कवर का काम करते थे।

हम पाकिस्तान के लगभग सभी शहरों में आपूर्ति व्यवस्था को ध्वस्त करने और महत्वपूर्ण ठिकानों को तबाह करने में कामयाब रहे। पाकिस्तान ने अपने विमानों को अफगानिस्तान के जाहिदान नामक सुरक्षित ठिकाने पर भेज दिया था।

पाकिस्तान राजनैतिक वजहों से 1965 की जंग जीतने का दावा करता है। मेरा मानना है कि जंग एक तरह के गतिरोध में समाप्त हुई थी। हम मजबूत स्थिति में थे।

जंग अगर कुछ दिन और जारी रही होती तो हमें निर्णायक रूप से जीत मिल जाती। मैंने तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को युद्धविराम पर राजी नहीं होने की सलाह दी थी। लेकिन, मुझे लगता है कि वह संयुक्त राष्ट्र और कुछ अन्य देशों के दबाव में थे। शास्त्री किसी भी रूप में कमजोर इंसान नहीं थे। वह एक मजबूत इंसान थे और स्पष्ट फैसले लेते थे। दरअसल वह शांति में विश्वास रखते थे और नहीं चाहते थे कि किसी भी देश की अवाम को जंग की वजह से तकलीफ हो। उन्होंने एक ही निर्देश दिया था-कोशिश करना कि नागरिकों को चोट न पहुंचे।

पाकिस्तान के पास गुणात्मक और तकनीकी रूप से अधिक उन्नत सैबर और स्टारफाइटर जैसे विमान थे। हमारे पास नैट, हंटर, वैंपायर जैसे विमान थे। पाकिस्तान को अमेरिका का जबर्दस्त समर्थन हासिल था। उनके पास अत्याधुनिक राडार थे। मुझे लगता है कि वे अति-आत्मविश्वास का शिकार हो गए, क्योंकि उन्हें लगा कि भारतीय वायुसेना ने जैसे 1962 के चीन युद्ध में हिस्सा नहीं लिया था, उसी तरह इस बार भी नहीं लेगी। लेकिन, जिस समय से जंग में भारतीय वायुसेना उतरी, पलड़ा हमारा भारी होने लगा। इससे साफ है कि वायुसेना दुश्मन के किसी भी दुस्साहस का समाना करने के लिए तैयार थी।

पाकिस्तान अखनूर सेक्टर में हमला कर जम्मू एवं कश्मीर को देश से काट देना चाहता था। जरनल जे.एन.चौधरी मेरे दफ्तर वायुसेना भवन आए और मुझसे कहा कि अगर भारतीय वायुसेना जंग में नहीं उतरेगी तो पाकिस्तान को चंबा-जौरियन सेक्टर में रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा। मैंने उनसे कहा कि भारतीय वायुसेना के शामिल होने के साथ ही यह लड़ाई पूरी तरह से युद्ध में बदल जाएगी। इसके बाद हम तत्कालीन रक्षामंत्री चव्हाण से मिलने गए। उन्होंने हमसे पूछा कि क्या भारतीय वायुसेना तैयार है। मैंने तुरंत कहा-हां। अगले ही मिनट उन्होंने फैसला लिया कि हवाई हमले किए जाएं। 1965 में इस निर्णायक नेतृत्व ने पाकिस्तान पर बढ़त लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।



मरते मरते पीएम को देना चाहते थे सलामी

– उनसे मिलने पीएम मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण हॉस्पिटल गए थे।

– पीएम के वहां पहुंचने के कुछ देर बाद ही सिंह ने दम तोड़ दिया। प्रधानमंत्री ने उनके निधन का दुख जताया है।

– पीएम ने ट्विटर के जरिये बताया कि -कुछ समय पहले मैं उनसे मिला था। उनकी सेहत ठीक नहीं थी। फिर भी मेरे रोकने के बावजूद उन्होंने खड़े होकर सैल्यूट करने की कोशिश की। सेना का ऐसा अनुशासन उनके अंदर भर था।’



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Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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