×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

कहीं आप भी तो नहीं है इस बीमारी के शिकार, हो जाइए सावधान!

Newstrack
Published on: 4 Jun 2016 3:50 PM IST
कहीं आप भी तो नहीं है इस बीमारी के शिकार, हो जाइए सावधान!
X

लखनऊ: सुनने में अटपटा लगे, लेकिन सच है कि मोबाइल फोन आपको झूठ बोलना सिखा रहा है। बिजी लाइफ और वर्किंग स्टाइल के बीच काम के बोझ तले पेशेवर लोग जाने -अनजाने में झूठ बोलने की आदत का शिकार हो रहे हैं और ये उन्हें सिखा रहा है हरदम जेब में साथ रहनेवाला छोटा-सा मोबाइल फोन।

यह भी पढ़ें...जी भर के लीजिए अब सेल्फी पर सेल्फी, ये ऐप करेगी आपके फोन की सेफ्टी

साइकोलॉजिस्ट भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि मोबाइल क्रांति ने आम आदमी की लाइफ स्टाइल को पूरी तरह से बदल दिया है। किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज यूनिवर्सिटी में साइकेट्री डिपार्टमेंट के एचओडी प्रभात सिठोले कहते हैं कि झूठ बोलने की आदत वास्तव में एक बीमारी है, जिसे डॉक्टरों की भाषा में पैथॉलॉजिकल लाइंग डिसऑर्डर कहते हैं और इसे एंटी सोशल पर्सनॉलिटी की एक शाखा के रूप में जाना जाता है।

काम के बोझ तले झूठ बोलने वाले लोग इस बात से अनजान रहते हैं कि उनकी बातों को उनका बच्चा भी सुन रहा है। बच्चे जिज्ञासु होते हैं और वे घर और आस-पास के बुजुर्गों से ही संस्कार लेते हैं। ऐसे में वे बड़ों की देखा-देखी झूठ बोलने की आदत भी सीख सकते हैं।

उन्होंने कहा कि अमेरिका से प्रकाशित पत्रिका कम्प्रेहेंसिव टेक्सट बुक ऑफ साइकोथेरैप के अनुसार इंडिया समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में आमतौर पर 30 प्रतिशत लोग झूठ बोलने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते। मेडिकल साइंस में झूठ बोलने की आदत से निजात पाने का उपाय है, लेकिन ये 25 साल से कम उम्र के लोगों पर ही अधिक प्रभावी रहता है, जबकि इससे अधिक उम्र के लोगों की मानसिक क्षमता के स्थायित्व के कारण ये इलाज ज्यादातर निष्प्रभावी ही साबित होता है।

यह भी पढ़ें...स्टेटस भी होते हैं दिल की जुबान, करते हैं वाट्सऐप पर ये बयां

ऐसे लोग यदि स्वयं चाहें तो ही उन्हें इस रोग से मुक्ति मिल सकती है। इस बारे में कानपुर के गणेश शकंर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज में मनोरोग विभाग के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर आर. आर. अग्निहोत्री ने कहा कि पैथॉलॉजिकल लाइंग डिसऑर्डर का एक पहलू ये भी है कि बच्चों में पनपती ऐसी आदतों पर यदि अभिभावक जल्द ध्यान नहीं देते हैं तो ये किशोरावस्था से ही अपराध के दलदल में फंस सकते हैं।

अमेरिका समेत कई विकसित देशों में ऐसे मरीजों के लिए करेक्शन होम होते हैं, जहां बिहेवियर थेरैपी के जरिए उन्हें इस समस्या से छुटकारा दिलाया जाता है, जबकि देश में इस नाम को बाल सुधारगृह के नाम से जाना जाता है। अभिभावक को ये भी चाहिए कि वे बच्चों के सामने आपस में कभी न झगड़ें और न ही झूठ का सहारा लें।



\
Newstrack

Newstrack

Next Story