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रोजे के साथ गाय की सेवा करते हैं मो. फैज, मंदिर में सुनाते हैं गऊ कथा
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लखनऊ: गेरुआ वस्त्र, माथे पर रोली का टीका, सामने नारियल, चुनरी, गुरु को भगवान समझकर आरती और गोकशी के विरोध में शास्त्रीय परंपरा के अनुसार कथा करते ये शख्स पहली नजर में कोई हिन्दू महात्मा मालूम पड़ता है। पर ये हैं फैज़ खान, जो हिन्दू और मुस्लिम ग्रंथों के हिसाब से गाय की महत्ता और उसकी उपयोगिता पर 'गऊ कथा' कर रहे हैं।
वाराणसी के कैथी के निकट स्थित ढाखा ग्राम में गंगा तट पर श्री गौरीशंकर महादेव धाम परिसर में आयोजित गौ कथा चल रही है। क्षेत्र में पहली बार आयोजित हो रही अपने आप में एक अलग तरह की कथा के प्रति आकर्षित होकर आस-पास के कई गावों से बड़ी संख्या में श्रोता कथा स्थल पर जुटे।
रमजान के पाक महीने में एक युवा मुस्लिम गो कथाकार, जो नियमपूर्वक रोजा भी रखता है और गाय की महिमा का अद्भुत बखान भी करता है। फैज के इसी धार्मिक बंधुत्व को देखने-सुनने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। इस कौतूहल का विषय है उनका मुस्लिम होना। क्योंकि वो पूरे हिन्दू संतों की लिबास में रामनामी ओढ़कर 'गो कथा' करते हैं।
उनकी संस्कृत निष्ठ शुद्ध हिन्दी, भाषा और हिन्दू धार्मिक वैदिक ग्रंथों पर उनकी गहराई के साथ पकड़ लोगों को अचंभित करती है। कथाकार मो. फैज़ खान कहते हैं, 'इस्लाम में गाय के दूध को शिफ़ा कहा गया है। गऊ मांस को बीमारी। शूराय हज़ कुरआन शरीफ़ में आयत 37 में कहा गया है, 'नहीं पहुंचता अल्लाह के पास रक्त और मांस, खुदा के पास पहुंचता है तुम्हारा त्याग। इस्लाम ये भी बताता है कि जिस देश में रहो उस देश की तहजीब का सम्मान करो। गाय का सम्मान करना ही हिन्दुस्तान की तहज़ीब का सम्मान करना है।'
मो. फैज खान कथा शुरू करने से पहले गाय की पूजा करते हैं। फिर गंगा का पूजन कर कथा करने बैठ जाते हैं। अपनी वेष-भूषा से वो ये भी बताते हैं कि गेरुवा वस्त्र, माथे पर टीका और रामनामी हमें हिन्दू बना देता है और जैसे ही में इस पर टोपी पहन लेता हूं तो मुस्लिम नज़र आने लगता हूं। यानी पहनावे से हमारा नज़रिया बदल जाता है। इसीलिए खुदा ने हमें बिना कपड़े के भेजा।
कहने का मतलब यह, कि हम सब एक हैं। अपनी समझ के हिसाब से खुदा को अपने तरीके से याद करते हैं।समाज के ठेकेदार हमें अपने फायदे के लिये आपस में बांटते हैं। वह कहते हैं, कि राजनेता धर्म के आधार पर छुद्र राजनीति करते हैं। वे कभी नहीं चाहते कि 'गऊ आंदोलन' सभी धर्मों के बीच व्यापक तौर पर प्रचारित हो। क्योंकि वह भी उनकी वोट बैंक की राजनीति का एक हिस्सा है।
मो. फैज खान छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के रहने वाले हैं। पीएचडी करने के बाद वे शासकीय महाविद्यालय सूरजपुर, छत्तीसगढ़ में राजनीति विभाग में प्राध्यापक हो गए। वहीं उन्होंने लेखक गिरीश पंकज की एक उपन्यास 'एक गाय की आत्मकथा' पढ़ी। ढ़ाई साल पहले उन्होंने नौकरी छोड़कर देश में 'गऊ कथा' करने का विचार किया और निकल पड़े। वह अब तक सभी धर्मों के मानाने वालों के बीच कथा कर चुके हैं। कई जगह इन्हें विरोध भी झेलना पड़ा, पर ये रुके नहीं। अब इसका असर दिखाई दे रहा है।
उनका कहना है गाय धर्म या मज़हब देखकर दूध नहीं देती। तो हम और आप धर्म और मज़हब की निगाह से क्यों देखते हैं। इस विवाद में बेचारी गाय फंसती है। ऐसे विवादों रोकने के लिए कदम बढ़ाना चाहिए ना कि इन विवादों में उलझना चाहिए।
आगे की स्लाइड्स में देखिए मो. फैज की अन्य तस्वीरें ...
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