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खतरा देख गेंद बन जाता है ये जानवर,चलने पर होती है घुंघरू सी आवाज
बहराइच: किसी वन्यजीव के चलने पर पायलों जैसी रुनझुन और घुंघरुओं सी खनखनाहट की आवाज सुनाई पड़े तो अचंभा होगा। हैरत में न पड़िये, कतर्नियाघाट में पाया जाने वाला दुर्लभ पेंगोलिन जब शिकार पर निकलता है तो ऐसी ही आवाज सुनाई पड़ती है। यह दुर्लभ जीव कतर्नियाघाट सेंक्चुरी के शुष्क इलाकों में पाया जाता है।
पेंगोलिन की खास बातें :
- पेंगोलिन के चलने पर पायलों की रुनझुन और सिक्कों के खनखनाहट जैसी आवाज सुनाई पड़ती है।
- कतर्नियाघाट में पेंगोलिन की भारतीय और चायनीज, दो प्रजातियां पाई जाती हैं।
- भारतीय प्रजाति के पेंगोलिन का आकार 30 से 100 सेंटीमीटर का होता है।
- चायनीज 25 से 75 सेंटीमीटर का होता है।
- पेंगोलिन अपनी जुबान से शिकार करते हैं, इनके दांत नहीं होते।
- इनकी जुबान 40 सेंटीमीटर तक फैल सकती है।
- खतरा भांपकर पेंगोलिन गेंद के आकार का बन जाता है।
- पेंगोलिन जमीन में साढ़े तीन से चार मीटर अंदर बिल बनाकर रहता है।
मूवमेंट कैमरे में कैद
कतर्नियाघाट के ककहरा रेंज में स्थापित थर्मो सेंसर कैमरे में दो दिन पूर्व दुर्लभ पेंगोलिन (सल्लू सांप) की तस्वीरें कैद हुईं। इन तस्वीरों को देखकर वनाधिकारी भी हैरत में पड़ गए। फोटो के साथ ऑडियो में पेंगोलिन के चलने पर खनखनाहट की आवाज सुनाई पड़ रही थी।
छिपकली प्रजाति का जीव
कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग के डीएफओ आशीष तिवारी ने बताया कि पेंगोलिन को छिपकली प्रजाति का माना जाता है। हालांकि, बोलचाल की भाषा में इसे सल्लू सांप भी कहा जाता है। चींटी और दीमक इसके आहार हैं।पेंगोलिन की तलाश शिकारियों को भी रहती है।
बाघ और तेंदुए ही कर सकते हैं शिकार
तिवारी ने बताया कि पेंगोलिन की त्वचा पर काफी कठोर शल्क इसके कवच का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि पेंगोलिन काफी शर्मीला और डरपोक होता है। शिकार की आहट पर अपनी सुरक्षा के लिए यह गेंद का आकार ले लेता है। बाघ या तेंदुए के अलावा अन्य वन्यजीव इसका शिकार नहीं कर सकते।
कतर्नियाघाट में हैं करीब 250 पेंगोलिन
पेंगोलिन की संख्या देश में काफी कम है। कतर्नियाघाट में अनुमान के मुताबिक करीब 250-300 के आसपास ही पेंगोलिन हैं। इनका रंग भूरा और मटमैला तथा पीला भी होता है। शरीर का शल्कमुक्त भाग सफेद, भूरा और कालापन लिए होता है।
बनती है दवा और जैकेट
पैंगोलिन को शिकारियों से खतरा है। इनकी त्वचा और शल्क के साथ मांस की भी तस्करी होती है। खाड़ी और पश्चिमी देशों में शल्क से जैकेट व मांस से कामोत्तेजक दवाएं बनाई जाती हैं। शल्क की अंगूठी को तैयार कर उसे पाइल्स रोगियों को पहनाया जाता है।
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