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एक महीने की तैयारी के बाद दीपावली में यहां होगा युद्ध, फेंकेंगे एक-दूसरे पर आग के गोले
मध्य प्रदेश: युद्ध का नाम लेते ही आंखों के सामने एक अजीब सा डर छा जाता है। शरीर ऊपर से नीचे तक सिहर जाता है। वहीं हमारे इंडिया में एक जगह ऐसी भी है, जहां पिछले एक महीने से युद्ध की तैयारियां चल रही हैं और अब तो ये तैयारियां काफी हद तक पूरी भी हो चुकी हैं। यह युद्ध ऐसा वैसा नहीं है, इसमें लोग एक-दूसरे के ऊपर आग के गोले फेंकते हैं। भले ही इस युद्ध में किसी की हार या जीत नहीं होती है, लेकिन जख्मी तो बहुत लोग होते हैं।
यह युद्ध दीपावली के एक दिन बाद शुरू होता है। जी हां, मध्य प्रदेश के इंदौर शहर से करीब 45 किलोमीटर दूर गौतमपुरा कस्बे में दीपावली के दूसरे दिन गोधूलि बेला में युद्ध का बिगुल बज जाएगा। असल में मध्य प्रदेश के गौतमपुरा में सालों से हिंगोट युद्ध की परंपरा चली आ रही है। जिसमें दो गांवों के लोग एक-दूसरे के ऊपर जलते हुए आग के गोले फेंकते हैं। इन गोलों को हिंगोट (बारूदी गोले) कहा जाता है। एक दल को 'तुर्रा' तो दूसरे को 'कलंगी' कहते हैं।
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'हिंगोट' एक खास तरह का नारियल की तरह दिखने वाला फल होता है। जो ऊपर से काफी कड़ा होता है और अंदर से सॉफ्ट। सबसे ज्यादा खास बात तो यह है कि यह फल सिर्फ गौतमपुरा के पास के इलाके देपालपुर में ही मिलता है। इस फल को हथियार बनाने के लिए फल को अंदर से खोखला कर दिया जाता है और फिर इसे कई दिनों तक सुखाया जाता है। जब फल अंदर से पूरी तरह सूख जाता है, तो इसके अंदर बारूद भर दिया जाता है। प्रयोग के समय इसमें एक ओर लकड़ी लगा दी जाती है युद्ध के टाइम जब इसे यूज किया जाता है, तो इसके एक ओर आग लगा दी जाती हैए जिससे यह ठीक रॉकेट की तरह उड़ता हुआ विपक्ष के लोगों पर गिरता है।
बता दें कि इस युद्ध में कई लोग घायल होते हैं। इन लोगों के हाथों में खुद की सुरक्षा के लिए ढाल होती है और उनके सिर पर मोटी सी कपड़े की पगड़ी बंधी होती है। अपनी सुरक्षा के लिए ये लोग भले ही इतने उपाय करते हैं, लेकिन फिर भी इसमें लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं।
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गौतम ऋषि की तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध गौतमपुरा का उल्लेख पौराणिक ग्रंथो में भी पाया जाता है। हिंगोट युद्ध के लिए यहां के लोग बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं और अब यह युद्ध वहां की पहचान बन चुका है। इस खास युद्ध को देखने के लिए यहां देश-विदेश से लोग आते हैं। यह युद्ध देवनारायण मंदिर के सामने वाले मैदान में होता है। यह फल हिंगोरिया नामक वृक्ष से प्राप्त होता है। यह खेल परंपरा की वजह से खला जाता है और खेलने के लिए लोग उत्साहित भी रहते हैं।