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शाहबेरी हादसा: बिल्डर्स की मनमानी, जान देकर भुगत रहें है लोग, पढ़े ये पांच केस

Aditya Mishra
Published on: 18 July 2018 1:08 PM IST
शाहबेरी हादसा: बिल्डर्स की मनमानी, जान देकर भुगत रहें है लोग, पढ़े ये पांच केस
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लखनऊ: बिल्डर्स द्वारा बिल्डिंग के कंस्ट्रक्शन में मानकों की अनदेखी करने का खामियाजा लोगों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ रहा है। ताजा मामला ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव का है। यहां पर एक 6 मंजिला निर्माणाधीन बिल्डिंग, दूसरी 4 मंजिला इमारत पर गिर गई। इस हादसे में 3 लोगों की मौत हो गई हैं। जबकि दर्जनों लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका है। हादसे के बाद एनडीआरएफ आईटीबीपी की टीम मौके राहत और बचाव कार्य में जुटी है।

newstrack.com आज आपको पांच ऐसे केस के बारे में बताने जा रहे है। जिसमें बिल्डर्स द्वारा नियमों की अनदेखी करने के कारण निर्माणाधीन बिल्डिंग के गिरने से कई लोगों की जान जा चुकी है।

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दिल्ली: 23 जून 2018 को ग्रेटर कैलाश-2 में निर्माणाधीन बेसमेंट की दीवार गिरने से एक मजदूर की मौत हो गई। वहीं, मलबे में दबे पांच अन्य मजदूर गंभीर रूप से घायल हो गए। मलबे में दबे छह लोगों को काफी मशक्कत के बाद बाहर निकाला गया। ट्रामा सेंटर ले जाने पर डॉक्टरों ने एक मजदूर को मृत घोषित कर दिया। हादसे के वक्त घटनास्थल पर कंस्ट्रक्शन कंपनी या ठेकेदार की ओर से कोई भी व्यक्ति मौजूद नहीं था।

जबलपुर: 17 अप्रैल 2018 को तिलवारा घाट पर एक निर्माणाधीन बहुमंजिला इमारत की दूसरी मंजिल के ढह जाने से मलबे में दबकर 2 मजदूरों की मौत हो गई, वहीं 19 मजदूर गंभीर रूप से घायल हो गए। स्थानीय लोगों ने बिल्डर महेश केमतानी पर घटिया सामग्री और सुरक्षा के मापदंडों को नजरअंदाज कर होटल का निर्माण कराने का आरोप लगाया था।

कानपुर: 1 फरवरी 2017 को कानपुर के जाजमऊ इलाके में एक बड़ा हादसा हो गया। यहां पर निर्माणाधीन 6 मंजिला बिल्डिंग गिरने से 7 मजदूरों की मौत हो गई। जबकि कई मजदूर घायल हो गये। घायलों को काशीराम हॉस्टपिल में भर्ती कराया गया था। मलबे में 100 से अधिक मजदूर दबे होने की आशंका जताई गई थी। स्थानीय लोगों ने बिल्डर पर बिल्डिंग के निर्माण में मानकों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था।

पुणे: 29 जुलाई 2016 को पुणे के पास एक दर्दनाक हादसा हो गया। एक निर्माणाधीन इमारत का हिस्सा गिरने से यहां पर 9 की लोगों की मौत हो गई। जबकि इस हादसे में 10 से ज्यादा लोग घायल हो गये थे।

हादसा उस वक्त हुआ जब कुछ मजदूर इस इमारत में काम कर रहे थे। इमारत कैसे गिरी इसका कुछ भी पता नहीं चल पाया। बचाव कार्य में जुटे लोगों ने बिल्डर पर बिल्डिंग के निर्माण में मानकों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था।

हैदराबाद: हैदराबाद के नानाकरमगुडा में 9 दिसम्बर 2016 को एक सात मंजिला निर्माणाधीन इमारत ढह गयी। इमारत के गिरने से हुए हादसे में 3 व्‍यक्ति की मौत हो गयी। जबकि कई अन्‍य घायल हो गये। लोगों ने बिल्डर पर नियमों की अनदेखी कर जल्दबाजी में बिल्डिंग का निर्माण करने का आरोप लगाया था।

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बिल्डर्स पर लगाम लगाने में फेल साबित हुआ रेरा

केंद्र सरकार ने बिल्डरों पर लगाम कसने के लिए 2016-17 में एक कानून बनाया था। RERA यानी रियल एस्टेट रेग्युलेटिंग ऐक्ट। लेकिन इस कानून के प्रभावी हो जाने के बाद भी बिल्डर्स पर कोई प्रभाव पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। रेरा कानून बनने के बाद से निर्माणाधीन बिल्डिंग्स गिरने की कई घटनाएं सामने आ चुकी है।

RERA (रेरा) की मुख्य बातें

प्रॉजेक्ट रजिस्ट्रेशन जरूरी: बिल्डर के लिए रेरा में रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है। खरीदार उसी प्रोजेक्ट में फ्लैट, प्लॉट या दुकान खरीदें, जो रेग्युलेटरी अथॉरिटी में रजिस्टर्ड हो। बिल्डर को अपना प्रोजेक्ट स्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी में रजिस्टर करना होगा। साथ में प्रॉजेक्ट से जुड़ी सभी जानकारी देनी होगी। को प्रॉजेक्ट और टावर के हिसाब से रजिस्ट्रेशन नंबर दिया जाएगा।

जेल की सजा: अगर बिल्डर किसी खरीदार से धोखाधड़ी या वादाखिलाफी करता है तो खरीददार इसकी शिकायत रेग्युलेटरी अथॉरिटी से कर सकेगा। ऐसे में अथॉरिटी के फैसले को बिल्डर को मानना होगा। अगर वह इसका उल्लंघन करता है तो उसे तीन साल की सजा हो सकती है।

रियल एस्टेट एजेंट भी दायरे में: सिर्फ रियल एस्टेट कंपनियों को ही नहीं, बल्कि बिचौलिए की भूमिका निभाने वाले रियल एस्टेट एजेंटों को भी अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इन्हें एक तय फीस भी रेग्युलेटर के पास जमा करनी होगी। अगर ये एजेंट खरीदार से झूठे वादे करने के दोषी पाए गए तो इन्हें एक साल तक की सजा हो सकती है।

सरकारी प्रोजेक्ट भी दायरे में: प्राइवेट बिल्डर या डिवेलपर ही नहीं, हाउसिंग और कमर्शल प्रॉजेक्ट बनाने वाले डीडीए, जीडीए जैसे संगठन भी इस कानून के दायरे में आएंगे यानी अगर डीडीए भी वक्त पर फ्लैट बनाकर नहीं देता तो उसे भी खरीदार को जमा राशि पर ब्याज देना होगा। यही नहीं, कमर्शल प्रॉजेक्ट्स पर भी रियल एस्टेट रेग्युलेटरी कानून लागू होगा।

पांच साल तक जिम्मेदारी बिल्डर की: अगर बिल्डर कोई प्रॉजेक्ट तैयार करता है तो उसके स्ट्रक्चर (ढांचे) की पांच साल की गारंटी होगी। अगर पांच साल में स्ट्रक्चर में खराबी पाई जाती है तो उसे दुरुस्त कराने का जिम्मा बिल्डर का होगा।

प्रॉजेक्ट में देरी पर लगेगी लगाम: खरीदार को सबसे ज्यादा दिक्कत प्रॉजेक्ट्स में देरी से होती है। अक्सर खरीदारों के पैसे को बिल्डर दूसरे प्रोजेक्ट में लगा देते हैं, जिससे पुराने प्रोजेक्ट लेट हो जाते हैं। रेरा के मुताबिक, बिल्डर्स को हर प्रॉजेक्ट के लिए अलग अकाउंट बनाना होगा। इसमें खरीदारों से मिले पैसे का 70 फीसदी हिस्सा जमा करना होगा, जिसका इस्तेमाल सिर्फ उसी प्रॉजेक्ट के लिए किया जा सकेगा।

ऑनलाइन मिलेगी जानकारी: बिल्डर को अथॉरिटी की वेबसाइट पर पेज बनाने के लिए लॉग-इन आईडी और पासवर्ड दिया जाएगा। इसके जरिए उन्हें प्रॉजेक्ट से जुड़ी सभी जानकारी वेबसाइट पर अपलोड करनी होगी। हर तीन महीने पर प्रॉजेक्ट की स्थिति का अपडेट देना होगा। रेरा से रजिस्ट्रेशन के बिना किसी प्रॉजेक्ट का विज्ञापन नहीं दिया जा सकेगा।

देनी होगी पूरी जानकारी: रेरा के तहत सिर्फ नए लॉन्च होने वाले प्रॉजेक्ट्स ही नहीं आएंगे, बल्कि पहले से जारी प्रॉजेक्ट्स भी इसमें आएंगे। बिना कंप्लीशन सर्टिफिकेट वाले डिवेलपर्स को सारी जानकारी सार्वजनिक करनी होगी। मसलन वास्तविक सैंक्शन प्लान, बाद में किए गए बदलाव, कुल जमा धन, पैसे का कितना इस्तेमाल हुआ, प्रॉजेक्ट पूरा होने की वास्तविक तारीख क्या थी और कब तक पूरा कर लिया जाएगा। सभी राज्यों में रेग्युलेटरी अथॉरिटी को रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट्स और रजिस्टर्ड रियल स्टेट एजेंट्स को नियंत्रित करना होगा। अथॉरिटी को एक वेबसाइट भी मेंटेन करनी होगी, जिसमें सभी प्रॉजेक्ट्स की जानकारी अपडेट होगी। केंद्रीय आवास एवं कार्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि रेरा ने लोगों की दिक्कतों को काफी कम किया है। राज्य सरकारें इसे उत्साह के साथ लागू कर रही हैं।

बुकिंग राशि: बिल्डर अडवांस या आवेदन शुल्क के रूप में 10 पर्सेंट से ज्यादा रकम नहीं ले सकेंगे, जब तक कि बिक्री के लिए रजिस्टर्ड अग्रीमेंट न हो जाए।

कंस्ट्रक्शन की क्वॉलिटी: पजेशन के 5 साल के भीतर अगर कोई टूट-फूट होती है बिल्डर को बिना कोई पैसा लिए 30 दिन के भीतर मरम्मत करानी होगी।

देरी से डिलिवरी पर मुआवजा: अगर खरीदार को वक्त पर पजेशन नहीं मिलता है तो खरीदार अपना पूरा पैसा ब्याज समेत वापस ले सकता है या फिर पजेशन मिलने तक हर महीने ब्याज ले सकता है।

शिकायतें होंगी दूर: सभी राज्यों में रियल एस्टेट अपीलीय ट्रिब्यूनल का गठन किया जाएगा। अगर किसी शख्स को अथॉरिटी के किसी फैसले या आदेश पर ऐतराज हो तो वह ट्रिब्यूनल के सामने अपील दाखिल कर सकता है।

खरीदार कैसे करें शिकायत

अगर आप भी अपने बिल्डर से नाखुश हैं तो रेरा में ऑनलाइन शिकायत कर सकते हैं। सभी राज्यों ने रेरा के लिए अलग-अलग वेबसाइट्स बनाई हैं। सबसे पहले तो यह देखना होगा कि क्या वह प्रॉजेक्ट रेरा में रजिस्टर्ड है? यह जानकारी रेरा की वेबसाइट से मिल जाएगी।

स्टेप 1

पहले राज्य की वेबसाइट पर जाएं और अपना यूजर आईडी व पासवर्ड क्रिएट करें। कुछ वेबसाइट्स पर बिना आईडी बनाए भी शिकायत कर सकते हैं।

स्टेप 2

इसके बाद वेबसाइट के होम पेज पर ही complaint को क्लिक करें। उसके बाद register complaint में जाकर पूरी डिटेल्स भरें। आप किसी बिल्डर के खिलाफ शिकायत कर रहे हैं उसकी डिटेल्स भरें, फिर अपनी।

स्टेप 3

प्रॉपर्टी से संबंधित सभी डॉक्युमेंट्स मसलन पेमंट रसीद, अग्रीमेंट की कॉपी, लेआउट प्लान आदि को स्कैन कर डाउनलोड करना होगा।

Aditya Mishra

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