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जानिए क्या है बेहमई कांड, जिस पर 39 साल बाद कल आयेगा कोर्ट का फैसला

देशभर में चर्चित रहे बेहमई कांड की सुनवाई 39 साल बाद पूरी हो गई है। कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया है। कल इस मामले में कोर्ट अपना फैसला सुना सकती है। मुकदमे की सुनवाई के दौरान फूलन समेत 15 आरोपियों की मौत हो चुकी है।

Aditya Mishra
Published on: 5 Jan 2020 11:09 AM GMT
जानिए क्या है बेहमई कांड, जिस पर 39 साल बाद कल आयेगा कोर्ट का फैसला
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नई दिल्ली: देशभर में चर्चित रहे बेहमई कांड की सुनवाई 39 साल बाद पूरी हो गई है। कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया है। कल इस मामले में कोर्ट अपना फैसला सुना सकती है। मुकदमे की सुनवाई के दौरान फूलन समेत 15 आरोपियों की मौत हो चुकी है।

जिला शासकीय अधिवक्ता राजू पोरवाल ने बताया कि 14 फरवरी 1981 को दस्यु सुंदरी फूलन देवी के गिरोह ने बेहमई गांव में 20 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

राजाराम सिंह ने दस्यु सुंदरी फूलन देवी समेत 35-36 डकैतों के खिलाफ थाना सिकंदरा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसके बाद यह कांड देशभर की सुर्खियों में रहा था।

वर्ष 2012 में डकैत फूलन, भीखा, पोसा, विश्वनाथ, श्यामबाबू और राम सिंह पर आरोप तय किए गए थे। मामले की सुनवाई विशेष न्यायाधीश दस्यु प्रभावित की अदालत में चल रही है।

हत्याकांड के बाद से लगातार तारीख पर तारीख पड़ती रही। इसी तरह 39 साल बीत गए। राज्य की ओर से अभियोजन पक्ष ने वर्ष 2014 में गवाही पूरी कर ली थी।

इसके बाद से अभियुक्तों की ओर से बचाव पक्ष ने बहस शुरू की। डीजीसी ने बताया कि गुरुवार को बचाव पक्ष की बहस पूरी हो गई है। फैसला सुनाने के लिए विशेष अदालत ने छह जनवरी की तारीख मुकर्रर की है।

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क्या है बेहमई कांड

14 फरवरी 1981 को महिला दस्यु फूलन देवी के गैंग ने 20 ग्रामीणों को एक लाइन में खड़ा करके गोली मार दी थी। इनमें से 17 मरने वाले ठाकुर जाति के थे। बताया जाता है कि फूलन देवी ने अपने साथ हुए गैंग रेप के बदले के रूप में इस घटना को अंजाम दिया था।

1983 में फूलन ने सरेंडर कर दिया बाद में वह मिर्जापुर से सांसद बनीं। 2001 में दिल्ली स्थित उनके घर के सामने गोली मार कर उनकी हत्यार कर दी गई।

मारे गए लोगों की विधवाएं न्याय की बाट देखती रहीं। इनमें से आज महज 8 ही जीवित रह गई हैं। ये भी किसी तरह जानवरों को पाल कर अपना जीवनयापन कर रही हैं।

फूलन ने किया था सरेंडर से इनकार

फूलन ने 13 फरवरी 1983 को भिंड में सरेंडर किया था। लेकिन इस सरेंडर के लिए फूलन 1982 के अक्टूबर महीने में ही तैयार हो चुकी थी।

उस समय भिंड के एसपी राजेन्द्र चतुर्वेदी थे। फूलन अक्टूबर 1982 को भिंड के ऊमरी गांव के पास आ गई। ऊमरी में भिंड पुलिस ने एक शांति कैंप तैयार किया था। इस कैंप में उन डकैतों को रखा जाता था, जो सरेंडर करते थे।

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इस घटना से फूलन का मन बदला

फूलन के साथ उसका विश्वासपात्र साथी मुस्तकीम का भाई मुस्लिम था। डकैत मुस्लिम पर उस समय 10 हजार रुपए का इनाम था।

फूलन के सरेंडर के समय चंबल रेंज के डीआईजी एमडी शर्मा थे।

एमडी शर्मा डकैतों के सरेंडर के खिलाफ थे। उन्होंने अपना एक मुखबिर ऊमरी थाने में भेजकर डकैतों की जानकारी ली। उन्होंने डकैत मुस्लिम का एनकाउंटर करा दिया। मुस्लिम मरा नहीं, लेकिन उसे गोली लग गई। यह घटना सामने आते ही फूलन देवी भड़क गई और उसने सरेंडर करने से इनकार कर दिया। फूलन को लगा कि वह भी एनकाउंटर में मार दी जाएगी। फूलन के इनकार से भिंड एसपी राजेन्द्र चतुर्वेदी परेशान हो गए।

दोबारा ऐसे सरेंडर के लिए तैयार किया

सबसे पहले तो भिंड एसपी चतुर्वेदी ने सीएम अर्जुन सिंह से कहकर भिंड रेंज के डीआईजी शर्मा को चंबल रेंज से हटवा दिया और फूलन को मनाने में जुट गए।

फूलन नहीं मानी और वापस चंबल के बीहड़ में लौटने की बात करने लगी। एसपी चतुर्वेदी ने बहुत मिन्नतें की, लेकिन वह तैयार नहीं हुई, क्योंकि उसे अपने एनकाउंटर का डर लगने लगा। एसपी चतुर्वेदी ने अपना बेटा बतौर जमानत के तौर पर फूलन को दिया। इससे भी फूलन के तेवर ठंडे नहीं हुए।

पांच महीने लेट किया सरेंडर

बैंडिट क्वीन फूलन ने अक्टूबर 1982 की बजाय पांच महीने बाद 13 फरवरी 1983 को भिंड के एमजेएस कॉलेज में अपने साथियों के साथ समर्पण किया।

सरेंडर के लिए उसके सामने स्वयं मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह आए और सरेंडर के बाद वह एमपी की ही जेल में रही।

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