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यहां पितृपक्ष में लगता है भूतों का मेला, आत्माओं को बांधने के लिए पेड़ में ठोके जाते है कील

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Published on: 17 Sept 2016 2:54 PM IST
यहां पितृपक्ष में लगता है भूतों का मेला, आत्माओं को बांधने के लिए पेड़ में ठोके जाते है कील
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वाराणसीः काशी को मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है कहते यहां जो इंसान अंतिम सांस लेता है उसे मोक्ष की प्राप्ती होती है। जिन लोगों की मृत्यु यहां नहीं होती उनका अंतिम संस्कार यहां पर कर देने मात्र से ही मोक्ष मिलता है। इसके साथ ही काशी में एक ऐसा कुंड भी है जहां पर मृत आत्माओं की शांति के लिए देश भर से लोग पिंड दान के लिए आते है। पितृपक्ष शुरु हो चुका है और कहते है कि इन दिनों इस कुंड पर भूतों का मेला लगता है।

इस कुंड का नाम है पिशाचमोचन कुंड। जहां पितृपक्ष में अकाल मौत मरने वालों को श्राद्ध करने से मुक्ति मिलती है। तामसी आत्माओं से छुटकारे के लिए कुंड के पेड़ में कील ठोक कर बांधा जाता है। कुछ लोग नारायन बलि पूजा भी कराते है जिससे मरने वाले की आत्मा को शांति मिलती है।

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pichash-mochan1मंदिर के पुजारी मुन्ना लाल पांडेय बताते है कि काशी से पहले इस शहर को आनंदवन के नाम से जाना जाता था। आज से पितृ पक्ष शुरु हो गया है और भारत के कोने कोने से लोगों का यहां के पिशाचमोचन कुंड में पिंड दान के लिए आना शुरु हो चुका है।

पिशाचमोचन मंदिर के पुजारी बताते है कि यहां एक मान्यता ऐसी भी है कि अकाल मौत मरने वालों की आत्माएं तीन तरह की होती है जिसमें तामसी राजसी और सात्विक होती है तामसी प्रवित्ति की आत्माओ को यहां के विशाल काय वृक्ष में कील ठोककर बांध दिया जाता है, जिससे वो यहीं पर इस वृक्ष पर बैठ जाए और किसी भी परिवार के सदस्य को परेशान न करें। इस पेड़ में अब तक लाखों कील ठोकी जा चुकी है ये परंपरा बेहद पुरानी है जो आज भी चली आ रही है।

आगे की स्लाइड में पढ़ें क्या कहती हैं बंगलौर से श्राद्ध करने आई मधुर?

pichas-mochan2बंगलौर से एक ऐसा ही परिवार यहां के कुंड में अपने बारह साल के मृत बच्चे का पिंडदान करने आया है। बच्चे की मां मधुर ने बताया कि उनका बेटा दिसंबर 2015 में पांचवी मंजिल से गिर गया था। उसकी आकस्मिक मौत हो गई थी इसलिए उसकी आत्मा की शांति के लिए नारायन बलि पूजा कराने के लिए वे लोग काशी आएं है। मां कहती है कि वे इस पूजा को इसलिए करा रही है ताकि उनका बेटा जहां भी रहे वह खुश रहे और उसको कोई तकलीफ न हो।

पितृ पक्ष श्राद्ध

हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वह भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है।

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ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिंदू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर साल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।

क्या है श्राद्ध?

ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।

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मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

क्या दिया जाता है श्राद्ध में?

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।

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कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।

किस तारीख में करना चाहिए श्राद्ध?

सरल शब्दों में समझा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है। इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी है।

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-पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है।

-जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई जो यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।

-जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है।

-इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है।

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तारीख दिन श्राद्ध/तिथियाँ

17 सितंबर शनिवार प्रतिपदा

18 सितंबर रविवार द्वितीया

19 सितंबर सोमवार तृतीया - चतुर्थी (एक साथ)

20 सितंबर मंगलवार पंचमी

21 सितंबर बुधवार षष्ठी

22 सितंबर गुरुवार सप्तमी

23 सितंबर शुक्रवार अष्टमी

24 सितंबर शनिवार नवमी

25 सितंबर रविवार दशमी

26 सितंबर सोमवार एकादशी

27 सितंबर मंगलवार द्वादशी

28 सितंबर बुधवार त्रयोदशी

29 सितंबर गुरुवार अमावस्या व सर्वपितृ श्राद्ध



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