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कुशीनगर में पुलिस नहीं मनाती कृष्ण जन्माष्टमी, जानिए आखिर क्यों ?
कुशीनगर: कृष्ण जन्माष्टमी यानी भगवान कृष्ण के जन्मदिन के अवसर पर जहां पूरे देश में और यूपी के हर थानों में कृष्ण जन्माष्टमी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। वहीं कुशीनगर जनपद के किसी भी थाने का कोई भी पुलिसकर्मी कृष्ण जन्माष्टमी नहीं मनाता है।
दरअसल 21 साल पहले जन्माष्टमी के दिन ही कुबेरस्थान थाने के पचरूखिया घाट पर जंगल पार्टी के डकैतों से मुठभेड़ में दो इंस्पेक्टर सहित पांच पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। तभी से जन्माष्टमी को कुशीनगर की पुलिस मनहूस मानती है और किसी थाने और पुलिस लाईन में जन्माष्टमी नहीं मनाई जाती है। एक साथ सात पुलिस जवानों के शहीद होने का दर्द आज भी कुशीनगर जिले की पुलिस के जेहन में बना हुआ है।
यूपी के देवरिया जिले से अलग होकर कुशीनगर जिले के अस्तित्व में आने के बाद सरकारी महकमों में जश्न का माहौल था। साल 1994 में पुलिस महकमा पहली बार पडरौना कोतवाली में जन्माष्टमी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाने में लगा था। पुलिस के बड़े अधिकारियों के साथ ही सभी थानों के थानेदार और पुलिसकर्मी मौजूद थे लेकिन एक ही घटना ने पूरे जश्न पर पानी तो फेरा ही साथ ही कुशीनगर पुलिस के लिए जन्माष्टमी के पर्व को हमेशा के लिये खत्म कर दिया।
क्या हुआ था उस रात ?
दरअसल पुलिस को कुबेरस्थान थाने के पचरूखिया घाट के पास उस समय के आतंक का पर्याय बन चुके जंगल पार्टी के आधा दर्जन डकैतों के ठहरने और किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए योजना बनाने की सूचना मिली थी। इस सूचना पर आलाधिकारियों के निर्देश पर कुबेरस्थान थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष राजेंद्र यादव और उस समय के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट तरयासुजान थाने के एसओ अनिल पांडेय समेत आठ पुलिसकर्मी पचरूखिया घाट के लिए रवाना हुए। उस समय नदी को पार करने के लिए कोई पुल नहीं था। नाव ही एक मात्र साधन था। पुलिस ने एक प्राईवेट नाव की सहायता से बांसी नदी को पार किया।
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इसके बाद पुलिस डकैतों के छिपने की जगह पर पहुंची तो डकैत वहां से फरार होकर नदी के किनारे छिप गए थे। सघन तलाशी के बाद पुलिस टीम फिर से नाव के सहारे नदी पार कर ही रही थी तभी नाव जैसे ही नदी की बीच धारा में पहुंची डकैतों ने पुलिस पर अंधाधुध फायरिंग शरू कर दी। पुलिस ने भी जवाबी फायरिंग की लेकिन इस बीच नाविक को गोली लगने से नाव बेकाबू हो गई और नदीं में पलट गई। नाव पर सवार सभी 11 लोग नदी में डूबने लगे। डूब रहे लोगों में से तीन पुलिसकर्मी तो तैर कर बाहर आ गए लेकिन दो इंस्पेक्टर सहित पांच पुलिसकर्मी और नाविक भी शहीद हो गए। इस दर्दनाक घटना की कसक कुशीनगर के पुलिसकर्मियों के जेहन में है जिसके कारण कुशीनगर जिले के किसी भी थाने और पुलिस लाईन में जन्माष्टमी नही मनाई जाती है।
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क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश्वर पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश्वर पांडेय भी उस घटना को याद करके सिहर जाते हैं। उनका कहना है कि चूंकि जिला सृजन होने के बाद पहली जन्माष्टमी थी इसलिये पडरौना कोतवाली में बहुत भव्य आयोजन था और जिले के सभी प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी मौजूद थे लेकिन एकाएक सात पुलिसकर्मियों की मुठभेड़ में मौत की सूचना हम सभी का हृदय द्रवित हो गया था। उस दिन से लेकर आज तक जन्माष्टमी की वो खौफनाक घटना अपने आप याद आ जाती है।
क्या कहते हैं पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार भट्ट
पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार भट्ट का कहना है कि जन्माष्टमी की वो काली रात आज भी पुलिसकर्मियों के जेहन में है इसलिए यहां जन्माष्टमी नहीं मनाई जाती है। हमारे पांच साथियों की मौत हमें आज भी विचलित करती है।