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उस कार्टूनिस्ट की 13 बातें, जो ठाकरे और इंदिरा की बोलती बंद कर देता था, आज बड्डे है
लखनऊ : कॉमन मैन या आम आदमी के बारे में सुना तो सबने होगा। लेकिन जिसने इस नाम को अमर कर दिया उन्हीं आर के लक्ष्मण का आज हैप्पी बड्डे है। ऐसे में हम बता रहे हैं उनके बारे में वो सब जो बेहद खास है।
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- 24 अक्टूबर, 1921 को रासीपुरम कृष्णा स्वामी लक्ष्मण बोले तो आर के लक्ष्मण का जन्म हुआ।
- लक्ष्मण ने बंबई (मुंबई) के जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट में एडमिशन के लिए आवेदन किया। लेकिन डीन ने कहा कि स्किल की कमी है। हम एडमिशन नहीं दे सकते।
- युवा लक्ष्मण के पॉलिटिकल कार्टून अखबारों छपने और चर्चा में आने लगे थे। लेकिन नौकरी नहीं थी। ऐसे में मद्रास के जेमिनी रोहन स्टूडियोज की फिल्म ‘नारद’ के लिए कुछ कार्टून बनाए। लेकिन परमानेंट नौकरी नहीं मिली।
- ये उस दौर की बात है जब देश गुलाम था। एक दिन पोस्ट-ऑफिस हड़ताल पर चले गए। लक्ष्मण डाक से कार्टून अखबारों को भेजते थे लेकिन अब वो जा नहीं सकते थे। कुछ दिन इंतजार किया लेकिन हड़ताल समाप्त नहीं हुई।
- इसके बाद उन्होंने एक कार्टून बनाया और ‘स्वराज’ के ऑफिस पहुंच गए। यहां उनकी नौकरी लगी 50 रुपए मासिक पर। लेकिन उनके कार्टून इतने तीखे होते थे कि अखबार की बिक्री पर इसका असर होने लगा। दफ्तर का माहौल दबाव वाला होने लगा। तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
- नौकरी की तलाश मुबई आकर समाप्त हुई। यहां कार्टूनिस्ट के तौर पर फुल टाइम जॉब मिली फ्री प्रेस जर्नल में।
- लेकिन संपादक अपनी विचारधारा के मुताबिक कार्टून बनवाने का दबाव डालने लगा तो यहां से भी नाता तोड़ लिया।
- फ्री प्रेस जर्नल में उनके साथ काम करते थे बाल ठाकरे। ठाकरे उनके अच्छे दोस्त थे। लेकिन जब बाल ठाकरे ने शिवसेना का गठन किया तो लक्ष्मण ने उनपर चुटीले कार्टून बनाए।
- फ्री प्रेस जर्नल से विदा होने के बाद लक्ष्मण ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया का दामन थामा और 50 साल से भी ज्यादा समय तक वहां नौकरी की।
- इसके बाद ऐसा भी दौर आया जब उनके कार्टून सरकार हिला देते थे। महाराष्ट्र और केंद्र सरकार उनके कार्टून पर विशेष नजर रखने लगी थीं लक्ष्मण कोई भी मुद्दा उठाते सरकार उसका संज्ञान लेती।
- इमरजेंसी के दौरान उनके निशाने पर थीं पीएम इंदिरा। एक बार लक्ष्मण जब पीएम इंदिरा से मिले थे तो बेहिचक उनसे कहा कि ‘गलत कर रही हैं आप’।
- 26 जनवरी 2015 को लक्ष्मण ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
- लक्ष्मण जब भी ऑफिस में होते उनका फोन बजता ही रहता था। रोज सैकड़ों चिठ्ठी उन्हें मिलती थीं। इनमें स्ट्रीट लाइट, सीवर, नाली, सीवर और पीने के पानी के साथ सड़क की समस्याओं का विवरण होता था। लोगों को लगता था कि लक्ष्मण जी ने अगर उनकी समस्याओं को अपने कार्टून में स्थान दे दिया तो वो चुटकी में दूर हो जाएगी।ये भी देखें : ‘कॉपी न किताब-हम होंगे कामयाब’, का सपना दिखा रहे इंग्लिश मीडियम के सरकारी स्कूल
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