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राजीव गांधी को नहीं थी षड्यंत्र की भनक, पहन ली थी मौत की माला
लखनऊ: 21 मई 1991 को, आज तक देश भुला नहीं पाया हैं। आखिर क्या हुआ था? इस दिन जिसने देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया? ये वो मनहूस दिन था जब देश ने अपने कम उम्र के प्रधानमंत्री को कम उम्र में वक्त से पहले खो दिया था।
जी हां, हम बात कर रहे हैं राजीव गांधी की। ये बात हम सभी जानते हैं की श्रीपेंरबदूर में एक धमाके में राजीव गांधी की मौत हो गई थी, लेकिन हम बताएंगे कि राजीव गांधी की हत्या की साजिश को कब, कैसे, कहां और किसने अंजाम दिया था। जिस सच से शायद हम सब अब तक अनजान रहे हैं।
राजीव से मिलने के बाद प्रभाकरन बना दुश्मन
श्रीलंका से शांति सेना भेजने से पहले दिल्ली में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन राजीव गांधी से मिलने आया था और इस मुलाकात का अंजाम हुआ था कि लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन ने उनकी हत्या की कहानी पहले ही लिख दी थी और वो बस मौके के इंतजार में था। प्रभाकरन राजीव गांधी के प्रधानमंत्री से मिलने जब दिल्ली आया था। राजीव ने तमिल हित की खातिर उसकी बात मानने से इनकार कर दिया। कहा जाता है कि इस घटना के बाद वो राजीव गांधी का दुश्मन बन बैठा था।
राजीव गांधी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति जे आर जयवर्धने के साथ एक शांति समझौता किया। 3 साल के अंदर श्रीलंकाई गृहयुद्ध खत्म करने की बात पर सहमति बनी। राजीव को इंडियन पीस कीपिंग फोर्स, लिट्टे और दूसरे तमिल आतंकियों के हथियार डलवा कर शांति बहाल करना था, पर ये दांव उन पर उल्टा पड़ गया।
तमिलों भरी थी राजीव के प्रति नफरत
जिस दिन समझौता हुआ, उसी शाम को श्रीलंकाई नौ सैनिक विजीथा रोहाना ने राजीव गांधी पर हमला कर दिया। विजीथा ने बंदूक की बट राजीव पर दे मारी। इस हमले में वे बाल-बाल बच गए थे। इसके बाद राजीव गांधी के प्रति तमिलों में नफरत भर चुकीं थी। इसी वक्त 1988 में राजीव गांधी ने मालदीव में तमिल संगठन पीएलओटीई की तख्तापलट कोशिशों को सेना भेज नाकाम करवा दिया था।
तमिल आतंकियों में इसको लेकर भी नाराजगी थी। नतीजा श्रीलंका से इंडियन पीस कीपिंग फोर्स की 1990 में पूरी वापसी हुई और उसके तुरंत बाद प्रभाकरन ने राजीव गांधी की हत्या करवा दी थी। हांलाकि लिट्टे अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार करता आया है।
4 लोगों को सौंपा हत्या की जिम्मेदारी
राजीव गांधी हत्या की साजिश रचने की जिम्मेदारी 4 लोगों को सौंपी गई। इनमें बेबी सुब्रह्मण्यम, मुथुराजा, मुरुगन और शिवरासन के नाम शामिल है। इन्होंने लिट्टे आइडियोलॉग, हमलावरों के लिए ठिकाने का जुगाड़, प्रभाकरण का खास, हमलावरों के लिए संचार और पैसे की जिम्मेदारी, विस्फोटक विशेषज्ञ, आतंक गुरू, हमले के लिए जरूरी चीजें, लिट्टे का जासूस, विस्फोटक विशेषज्ञ, राजीव गांधी की हत्या की पूरी जिम्मेदारी निभाई।
चेन्नई में रची गई साजिश
दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी प्रभाकरन से राजीव की हत्या का फरमान लेने के बाद बेबी सुब्रह्मण्यम और मुथुराजा 1991 की शुरूआत में चेन्नई पहुंचे। इनके जिम्मे था बेहद अहम और शुरूआती काम। इन्होंने चेन्नई में ऐसे लोग तैयार करने थे जो मकसद से अंजान हो, खासतौर पर राजीव गांधी के हत्यारों के लिए हत्या से पहले और हत्या के बाद छिपने का ठिकाना दे सकें।
राजीव गांधी के प्रति भड़काया
बेबी ने सबसे पहले शु न्यूज फोटो एजेंसी में काम करने वाले भाग्यनाथन और इसकी बहन नलिनी पैसे और मदद के झांसे में लिया। वहीं दूसरी तरफ मुथुराजा ने दो फोटोग्राफर रविशंकरन और हरिबाबू चुने। मुथुराजा ने हरिबाबू को राजीव गांधी के खिलाफ भड़काना शुरू किया कि अगर वो 1991 के लोकसभा चुनाव में जीत कर सत्ता में आए तो तमिलों की और दुर्गति होगी।
नफरत बनीं मौत का कारण
राजीव की हत्या के लिए साजिश ऐसी की गई कि जुड़ने वाले हर शख्स के दिल-दिमाग में राजीव गांधी के खिलाफ सिर्फ नफरत थी। नफरत की भावना भरने के बाद नलिनी राजीव गांधी के खिलाफ पूरी तरह तैयार हो गयी थी। लोकसभा चुनाव का दौर था राजीव गांधी की मीटिंग 21 मई को श्रीपेरंबदूर में तय हो गई। श्रीपेरंबदूर में रैली की गहमागहमी थी। राजीव गांधी के आने में देरी हो रही थी। बार-बार ऐलान हो रहा था कि राजीव किसी भी वक्त रैली के लिए पहुंच सकते हैं।
हत्या में मानवबम का इस्तेमाल
प्रभाकरन ने इस साजिश में पहली बार मानवबम का इस्तेमाल करवाया था ताकि टारगेट बच ना पाएं। शिवरासन के कहने पर अरिवू ने एक ऐसी बेल्ट डिजाइन की जिसमें 6आरडीएक्स भरे ग्रेनेड जमाए जा सके। हर ग्रेनेड में अस्सी ग्राम सीफोर आडीएक्स भरा गया। सारे ग्रेनेड को सिल्वर तार की मदद से जोड़ा गया।
बम को चार्ज देने के लिए 9 एमएम की बैटरी लगाई गई। ग्रेनेड में जमा किए गए स्प्रिंटर कम से कम विस्फोटक में 5000 मीटर प्रतिसेकेंड की रफ्तार से बाहर निकलते यानी हर स्प्रिंटर एक गोली बन गया था। बम इस तरह से डिजाइन किया गया था कि आरडीएक्स चाहे जितना कम हो अगर धमाका हो तो टारगेट बच न सके और वही हुआ भी।
राजीव ने खुद दी मौत को दावत
जब गांधी रैली में और लोगों से मिलने पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें भीड़ से दूर रहने को कहा, लेकिन राजीव गांधी ने बात काटते हुए कहा कि सबको पास आने का मौका दिया जाए। फिर क्या था उनके दुश्मनों को तो एक मौका चाहिए था, जिसे अनजाने में ही राजीव ने मौत का दावत दे दिया। उन्हें नहीं पता था कि वो जनता को नहीं मौत को पास बुला रहे हैं। नलिनी ने माला पहनाई, पैर छूने के लिए झुकी और उसके बाद जो हुआ वो सारी दुनिया के सामने था।
कई बार सुरक्षा के लिए आईबी ने किया था अलर्ट
राजीव गांधी को मौत का खतरा था। आईबी और गृह मंत्रालय भी बार-बार राजीव की सुरक्षा को लेकर अलर्ट जारी कर रहा था, लेकिन राजीव की जान को दिल्ली पुलिस के दो सब इंस्पेक्टरों के भरोसे छोड़ दिया गया था।
डिजिटल मीडिया के जनक
डिजिटल मीडिया के जनक आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके सपनों पर देश आज भी चल रहा है। पहली बार उन्होंने ने ही इंडिया को डिजिटल और स्मार्ट बनाने का सपना देखा था। राजीव गांधी आज हमारे बीच भले नहीं है, लेकिन उनके आदर्श हमेशा जिंदा रहेंगे और पूरा देश उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देता रहेगा।