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लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब हैं खैरातन देवी, सन 60 से रख रही हैं रोजा
लखनऊ: रमज़ान पर हमेशा से ही नवाबों के शहर लखनऊ में गंगा जमुनी तहज़ीब परवान चढ़ती रही है। ये सिलिसिला इस बार भी पाक महीने में पूरे अक़ीदे के साथ जारी है। हिन्दू मज़हब से ताल्लुक़ रखने वाली खैरातन देवी 90 बसंत देख चुकी हैं। बात सन 1960 की है, जब उन्होंने अपनी मुस्लिम सहेलियों के साथ खेल-खेल में उन्होंने रोज़ा रखा। अपना वो पहला रोज़ा, उन्हें आज भी याद है।
तब से वो हर साल माहे रमज़ान में रोज़ा रखती आई हैं। पहले वो पूरे महीने के तीस रोज़े रखती थीं, पर वक्त और उम्र कई बार उनके इस सिलसिले में अड़चन बना। सेहत ने जवाब दिया तो कुछ रोज़े छूट जाते हैं। खैरातन का कोई रमज़ान ऐसा नहीं गुज़रा जब कि उन्होंने कोई रोज़ा ना रखा हो। इस बार भी उन्होंने पूरी शिद्दत और अक़ीदत के साथ रोज़ा रखा है।
90 बरस की खैरातन को देखकर कोई एहसास नहीं कर सकता कि वो हिन्दू हैं या फिर मुसलमान। वो गंगा जमुनी तहज़ीब की विरासत को परवान चढ़ाते हुए एक मिसाल बन चुकी हैं। रमज़ान पर रोज़ा रखने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। वो जब भी रोज़ा रखती हैं। सुबह भोर में उठकर सहरी करती हैं और फिर दिनभर ना कुछ खाती हैं और ना पीती हैं। अपने तरीक़े से दिनभर इबादत करती हैं और फिर शाम को जब इफ्तार का वक्त आता है तो दूसरे रोज़ेदारों की तरह खजूर से इफ्तार कर रोज़ा मुकम्मल करती हैं।
खैरातन के चार बेटे गुलाब चंद्र, महेश चन्द्रा फूल चंद्र और हरिश्चंद्रा हैं। घर में चार बहुएं और दस पोते पोतियां भी हैं। खैरातन के पति फिक्का जब तक जीवित थे वो रोजा रखने में खैरातन का पूरा सहयोग करते थे। सन 1981 में उनकी मौत के बाद खैरातन के बेटे, बहुएं और पोते, पोतियां उनके लिये सहरी से लेकर अफ्तार तक का इंतजाम अपने हाथों से करते हैं।
बेटा हरिश्चंद्रा भी कभी कभी रोज़ा रखता है। इस दौर में पुराने ख्यालात की जिंदगी जीने वाली खैरातन को उम्मीद है कि उनके पोतियां और पोते भी इस रवायत को आगे बढ़ाएंगे। सिर्फ़ खैरातन ही नहीं बल्कि उनका पूरा कुनबा हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल है। पुराने शहर के तंग गलियों वाले मोहल्ले रोटी वाली गली में बाजी के नाम से मशहूर खैरातन के ना सिर्फ़ रिश्तेदारों बल्कि मोहल्ले के लोगों को भी उम्मीद है कि बाजी की इस विरासत को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता और यूं ही ये परिवार गंगा जमुनी तहज़ीब को परवान चढ़ाता रहेगा।