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संकष्टी चतुर्थी व्रत में दादी-नानी कहती रही हैं ये कहानियां, क्या आपने सुनी हैं
पंडित रामकृष्ण वाजपेयी
संकष्टी चतुर्थी व्रत उत्तर भारत के लगभग हर घर में रखा जाता है। हमारी दादी, नानी, अम्मा या मम्मी सभी इस व्रत को रखती रही हैं। हम देखते रहे हैं कि वह किस तरह से तड़के भोर में उठकर नहा धोकर व्रत का संकल्प लेकर पूजा की तैयारियों में जुट जाए करती थीं।
संकष्टी चतुर्थी व्रत में पूड़ी, पुए, आसा और भांति भांति के पकवान बना करते हैं। शकरकंद उबाली जाती है। इसका भी गणेश जी को भोग लगाया जाता है। इसके अलावा काले तेल, सफेद तेल लइया, लावा रामदाना, चौलाई के लड्डू बनते हैं। संकष्टी चतुर्थी व्रत तो आज परंपरा के निर्वहन में रखा जाता है लेकिन बदलते परिवेश में नई माताएं या बहनें इस व्रत की कहानियों को भूल चुकी हैं।
हमारी दादी, नानी, अम्मा संकष्टी चतुर्थी व्रत के मौके पर तमाम कहानियां कहा करती थीं। पूरा घर बैठकर इन कहानियों को सुना करता था। इसके बाद गणेश जी की पूजा होती थी और तारों की छांव या चंद्रमा के उदय के साथ अर्घ दिया जाता था। कहीं-कहीं पर महिलाएं इस व्रत का पारण अर्घ देकर कर लेती हैं और कहीं-कहीं वह अगले दिन व्रत का पालन करती हैं
संकष्टी चतुर्थी व्रत व्रत मुख्यतः संतान के लिए होता है संतान की खुशहाली और समृद्धि के लिए मां यह व्रत रहती है यह मान्यता है कि इस व्रत को रखने से संतान कष्टों से दूर रहती हैं। यह व्रत गणेश जी से जुड़ा हुआ है, इसलिए गणेश जी की पूजा होती है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत की कहानियों में क्या खास था। यह कहानियां मुख्यतः बुराइयों को, कुप्रथाओं या जिन्हें हम पाप कहा करते हैं। उन सब बातों के खिलाफ एक संस्कार का निर्माण करती थीं।
पहली कहानी
एक राज्य था जहां पर आवा नहीं लगा करता था। आवा उसे कहते हैं जो मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए गाय के गोबर के सूखे उपलों का ढेर बनाकर आग जलाई जाती है, उसके ऊपर कुम्हार द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तनों को रख दिया जाता है इन उपलों की आंच में धीरे धीरे मिट्टी के बर्तन पकते हैं। उस दौर में धातु के बर्तन नहीं हुआ करते थे, इसलिए सारे काम मिट्टी के बर्तनों में ही हुआ करते थे।
कहानी यह है कि उस राज्य में आवा नहीं लगता था और आवा लगाने के लिए नरबलि हुआ करती थी। अब कोई अव्यवस्था ना फैले, इसलिए राजा ने यह व्यवस्था कर दी थी कि हर दिन एक घर से एक आदमी आवा में जाएगा। अब इसे नियति मानकर हर घर से एक आदमी जाता था।
एक बूढ़ी महिला थी एक दिन उसके बेटे का भी नंबर आया। वह संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया करती थी और संयोग से जिस दिन उसका व्रत था। उसी दिन उसके बेटे को आवा में प्रवेश करने के लिए राजा का आदमी बुलाने आया। बूढ़ी मां ने कहा ठीक है मेरा बेटा जाएगा लेकिन शाम तक का वक्त दे दो।
सकट भगवान ने बताया उपाय
इकलौते बेटे की अंतिम विदाई को लेकर उस बुढ़िया के मन में इतना कष्ट था वह रोती जा रही थी और गणेश जी की पूजा की तैयारियां करती जा रही थी। लोग कहते हैं कि उस समय भगवान आ जाया करते थे। शाम को पूजा के समय सकट भगवान आए। उन्होंने बुढ़िया से पूछा मां खाने में क्या है। बुढ़िया ने कहा कि जो कुछ भी है आप का दिया हुआ है उसने सकट भगवान को प्रेम से भोजन कराया। चलते समय सकट भगवान ने पूछा कि वह इतना दुखी क्यों है। उस बुढ़िया ने सारी बात बताते हुए कहा आज मेरे बेटे का नंबर है, यह इकलौता मेरा सहारा है। इस लिए दुखी हूं।
सकट भगवान ने कहा मां तू चिंता मत कर इसके दोनों हाथ में आसा रख दे और यह हर सकट हर सकट का जाप करता रहे। इसे कुछ नहीं होगा। लड़के ने जैसा सकट भगवान ने बताया था हर सकट हर सकट का जाप करता हुआ आवा में प्रवेश कर गया। आवा तीन दिन बाद खुलना था। सकट भगवान ने कहा कि आवा के बाहर जौं बो देना। अगर जौं उग आएं तो समझ लेना तेरा बेटा जिंदा है। जैसा सकट भगवान ने बताया था उसने वैसा किया।
जिंदा रहा बुढ़िया का लड़का
दो दिन पूरे होते होते जौं उग आए। बुढ़िया को उम्मीद बंधी। आवा के अंदर से खन खन की आवाज आ रही थी। दूसरे दिन की आधी रात में कुम्हार के यहां पहुंच गई बोली भैया आवा खोल दो। कुम्हार ने उसे भगा दिया। थोड़ी देर बाद वह फिर गई कुम्हार ने फिर भगा दिया। बुढ़िया तीसरी बार सुबह-सुबह पहुंची बोली भैया खोल दो। कुम्हार ने फिर कहा कि अभी जाओ लेकिन कुम्हार की पत्नी ने कहा कि तुम खोलोगे तो है ही। अभी खोल दो। मां के दिल को तसल्ली हो जाएगी। अरे जब किसी का बच्चा नहीं बचा है इसका कैसे बचेगा।
कुम्हार बेमन से उठा आवा खोलना शुरू किया तो आवाज तेज हो गई। उसने जल्दी जल्दी आवा खोला उसने देखा कि उसके सारे मिट्टी के बर्तन सोने के हो गए थे। बुढ़िया का लड़का जिंदा बाहर आ गया। अब यह बात चारों तरफ फैल गई। राजा ने बुढ़िया को पकड़ मंगवाया और कहा बताओ तुमने क्या जादू किया, तुम्हारा लड़का कैसे बचा। बुढ़िया ने कहा मैंने कोई जादू नहीं किया, जो सकट भगवान ने बताया वही मैंने किया। इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में मुनादी करवा दी सभी लोग सकट भगवान का यह व्रत करें। इसके बाद उस राज्य में आवा लगाने के लिए नरबलि बंद हो गई।
दूसरी कहानी
एक पंडित जी बहुत गरीब थे। घर में खाने का आए दिन संकट रहता था। एक बार संकष्टी चतुर्थी व्रत के एक दिन पहले जब घर में कुछ था नहीं। उनकी लड़की को विदा कराने के लिए उसकी ससुराल वाले आ गए और बहू को विदा कराने उसके मायके से लोग आ गए। पंडित पंडिताइन परेशान कैसे बेटी विदा करें कैसे बहू को उसके घर भेजें। पंडिताइन ने कहा पंडित जी कुछ करो। पंडित जी बोले क्या करें।
पंडिताइन ने कहा कुछ नहीं कर सकते तो जाओ चोरी ही करो। पंडितजी ने कहा चोरी करने जाएं तो चुरा कर लाएंगे किसमें। इस पर पंडिताइन ने कहा मेरी धोती लिए जाओ मै अनाज रखने के कुठले ड्रम जैसा बर्तन उसमें छिप जाती हूं। पंडित जी रात में चोरी करने गए। वह एक दुकान में चोरी करने घुसे, लेकिन पाप के भय से कुछ चुरा न सके। सारी रात एक ही जाप करते रहे गुड़ छुऊं तो पाप, तिल छुऊं तो पाप।
सुबह हो गई लोगों ने पकड़ लिया। राजा के पास ले गए। राजा ने पूछा जब चोरी करने दुकान में घुस गए थे तो चोरी क्यों नहीं की। उन्होंने कहा महाराज गरीबी के चलते दुकान में घुसने का पाप तो हो गया था लेकिन चुराने के पाप की हिम्मत नहीं हुई। राजा ने कहा जिस राज्य में इतने धर्मात्मा लोग हों उस राज्य में उनकी ऐसी दुर्गति नहीं होनी चाहिए कि चोरी करने जाना पड़े। उन्होंने मंत्री को आदेश दिया सब गरीबों की मदद की व्यवस्था करें। इसके बाद पंडितजी को ढेर सारा सामान देकर आदर सहित विदा किया।
तीसरी कहानी
एक राजा था उसके कोई संतान नहीं होती थी। एक दिन किसी ने ताना कसा कि पता नहीं दिन कैसा बीतेगा सुबह सुबह निरबंसी का मुंह दिख गया। उदास होकर वह घर छोड़कर चले गए। विदेश में जाकर व्यापार करने लगे खूब पैसा कमाया 13-14 साल बीत गए। एक बार उन्हें घर की याद आयी तो घर चले। लेकिन उनका माल असबाब से भरा रथ उनके घर के पास जंगल में आकर फंस गया। बहुत उपाय करने पर भी जब रथ नहीं निकला तो पंडितों को बुलाया पंडितों ने कहा एक रात पैदा हुए तो बालक अगर छू देंगे तो रथ निकल आएगा।
पता चला गांव के एक घर में दो बच्चे सकट के दिन पैदा हुए हैं। बच्चों को बुलाया गया तो बच्चों के चलते समय उनकी मां ने कहा आधा सामान ले लेना तभी हाथ लगाना। बच्चों ने शर्त रखी आधा सामान लेंगे। चोरों डकैतों के डर से राजा मान गए। रथ निकल गया। अब बच्चे पीछे के रास्ते से सामान ले जाने लगे। राजा सामने से । सामान घर में ऱखकर सिर पर हाथ रखकर बैठ गए। उनकी मां ने पूछा कि भैया उदास किये हों। तो कहने लगे सारी जिंदगी की कमाई दो बच्चे ले गए। इस पर मां हंसी और कहा तो दुखी क्यों होते हो आया तो सब घर में ही है। वह दोनो तुम्हारे ही बच्चे हैं। जब तुमने घर छोड़ा बहू मां बनने वाली थी।
चौथी कहानी
एक बार मां पार्वती स्नान के लिए गईं तो उन्होंने ढेर सारा उबटन बनाया और अपने उबटन से एक बालक बनाकर प्राण डालकर दरवाजे पर खड़ा कर दिया। और कहा कोई अंदर न आ पाए। लेकिन कुछ देर बाद भगवान शिव वहां पहुंच गए तो इस बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।
अपने पुत्र का यह हाल देखकर मां पार्वती बहुत दु,खी हुईं और शिव जी से अपने पुत्र को जीवित करने का हठ करने लगीं। जब मां पार्वती ने शिव से बहुत अनुरोध किया तो शिव जी ने बालक को हाथी का सिर लगाकर दूसरा जीवन दिया। तब से उनका नाम गजमुख , गजानन और गणेश हुआ। इसी दिन से भगवान गणपति को प्रथम पूज्य होने का गौरव भी हासिल हुआ और उन्हें वरदान मिला कि जो भी भक्त या देवता आपकी पूजा व व्रत करेगा उनके सारे संकटों का हरण होगा और मनोकामना पूरी होगी।