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वैज्ञानिक बनाना चाहता था बंदरमैन, अपने प्रयोगों की वजह से कहा गया पागल
इंटरनेशनल: जरा सोचिए! अगर आज हमारे आस-पास बंदरमैन होते। वे हमारी भाषा को समझते हमसे बात करते। हमारे साथ कदम से कदम मिलाकर चलते। शायद ये सब कभी न पूरा होने वाले एक सपने जैसा है, पर एक वैज्ञानिक ने इस सपने को साकार करने की कोशिश की थी, लेकिर वो असफल रहा और उसे पागल करार दे दिया गया।
जी हां, वैज्ञानिक आईवानोफ ने बंदर और आदमी के जीन को मिलाकर बंदरमैन बनाने की कोशिश की थी। दुनिया उसे पागल वैज्ञानिक के नाम से जानती है। आईवानोफ ने 1896 में खारकवो यूनिवर्सिटी में विभिन्न प्रजातियों के पशुओं के जीन मिलाकर प्रयोग शुरू किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। पहले उसने नर पशु से शुक्राणु लेकर आर्टिफिशियल जानवर बनाने की कोशिश की। आईवोनोफ ने नर जेब्रा और गधी के अंडाणु मिलाकर एक नया जानवर बनाने का प्रयास किया, जिसमें वह असफल हो गया।
स्टालिन ने की थी आईवोनोफ की मदद
बंदरमैन बनाने के अपने विचार को उसने 1910 में आस्ट्रिया में हुए विश्व वैज्ञानिक सम्मेलन में किया। हालांकि, उसके विचार को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया ,लेकिन स्टालिन सबसे अलग था। स्टालिन को आईवोनोफ की बातों ने खासा प्रभावित किया। उसे अपनी सेना में ऐसे सैनिको की जरूरत थी, जो बेहद फुर्तीले और ताकतवर हों। स्टालिन को यह समझ में आ गया कि बंदर और आदमी के जीन से बेहद खूंखार और फुर्तीले सैनिक बनाए जा सकते हैं। स्टालिन ने 1924 में आईवानोफ से संपर्क साधा और उसे अपने पास बुला लिया। स्टालिन ने कहा कि वह ऐसे सैनिक चाहता है जिन्हें तकलीफ का अहसास नहीं हो और जो बेहद खूंखार और फुर्तीला हो। उसका खानपान भी आदमियों से अलग हो तथा विरोध करने वाला नहीं हो।
वैज्ञानिक संस्थाओं ने दिया चंदा
स्टालिन से मिलने के बाद आईवोनोफ ने नए-नए प्रयोग करने शुरु कर दिए। इस काम के लिए उसे विभिन्न वैज्ञानिक संस्थाओं ने चंदा दिया। रुसी विज्ञान अकादमी उसे दस हजार अमरीकी डालर दिए, जिसे लेकर वह पश्चिमी अफ्रीका चला गया। उसने मनुष्य के शुक्राणु मादा चिंपाजी के गर्भाश्य में रखे, लेकिन उसका प्रयोग सफल नहीं हो सका। बाद में उसने बंदरों पर भी ऐसे ही प्रयोग किये लेकिन असफल हो गया। ऐसे ही प्रयोग से उसे पागल वैज्ञानिक कहा जाने लगा।