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जब राजनारायण को अरेस्‍ट करने आई पुलिस तब क्‍या हुआ?

Newstrack
Published on: 25 Jun 2016 8:12 AM GMT
जब राजनारायण को अरेस्‍ट करने आई पुलिस तब क्‍या हुआ?
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25 जून को देश में लगे इमरजेंसी को 41 साल पूरे हो गए हैं। 1975 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में इसकी घोषणा की गई थी। हम आपको इमरजेंसी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और घटनाक्रम के बारे में बताने जा रहे हैं।

आपातकाल लगते ही विपक्षी दलों के सभी बड़े नेताओं को जेल में डाला जाने लगा था, लेकिन राज नारायण अरेस्ट होने से बचते रहे। इसी बीच वे अपने समाजवादी दोस्त भोला प्रसाद सिंह से मिलने बिहार पहुंच गए। वो भोला सिंह के निवास पर अपने चेले-चाटी के साथ पहुंचे और बेफ़िक्र हो गप्प करने लगे । इसी बीच पुलिस को उनके बिहार में होने का पता चला और वो भोला प्रसाद सिंह के घर पहुंच गई ।

रात के एक बज़ रहे थे और पुलिस के अधिकारी भोला बाबू के ड्राइंग रूम मे बैठ उनका इंतज़ार करते रहे। राज नारायण के बिहार में आने पर राज्य सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। थोड़ी देर बाद वे कमरे से निकले और पूछा -कहांं है आदेश ? आदेश देखने के बाद उन्होने कहा कि अब इस आदेश का कोई मूल्य नहीं है ' क्योंं -क्योंं सर -पुलिस आफिसर ने कहा । 'अरे इतनी सी बात आप लोग नहीं समझते हैंं ?

आर्डर मेंं लिखा है कि मुझे बिहार मेंं प्रवेश नहीं करने दिया जाए लेकिन मैं तो घंटो पहले बिहार मे प्रवेश कर पटना आ गया और अपने मित्र के यहांं हूंं । अब तुम बोलो ,मुझे बिहार मेंं प्रवेश करने से रोक सके ? आफिसर को इतना कह वे खाना खाने अंदर चले गए। खाकर जब लौटे तब बोले -लाओ ,आदेश । आदेश को पढ़ कर बोले -यह मेरे लिए नहीं है। इसमेंं लिखा है राजनारायण ,वाराणसी। लेकिन मैं तो एम पी हूंं। फिर वाराणसी मे सैैकड़ों राजनारायण हो सकते हैं। कोई जरूरी है कि यह आदेश मेरे लिए ही हो। तुम साबित करो कि यह राजनारायण,एमपी के लिए है। पुलिस आफिसर परेशान और राजनारायण अपने चेलोंं की ओर देख मुसकुराते रहे। फिर बोले -लगाओ फोन चीफ मिनिस्टर गफूर को। पूछता हूंं -क्या मामला है ।

गफूरजी से बात होने लगी तब राजनारायण बोले -सुनिए,मुख्यमंत्री जी । 1967 मेंं के बी सहाय मुख्य मंत्री थे । इसी तरह का आर्डर मेरे लिए निकाले। जानते हैं ,क्या हुआ ?वे चले गए ,अब आप भी जाओगे। गफूर ने भी पहले पर दहला मारा -जाना तो सब को है ,लेकिन पहले आप तो इस राज्य से बाहर जाइए । राजनारायणजी सुबह का इंतज़ार कर रहे थे । अखबारवालों को खबर हो जाये ,कुछ फोटो गिरफ्री की ले लें तब वे पुलिस हत्थे चढ़े। सुबह हो गई , उन्हे भरोसा हो गया कि उनकी गिरफ्तारी के समाचार अब छप जाएंंगे। कुछ प्रेसवालों ने आकर फोटो ले लिया तब राजनारायणजी ने पुलिस के हवाले अपने को कर दिया । उन्हे अगली ट्रेन मे बैठाकर बिहार से बाहर कर दिया गया ।

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