TRENDING TAGS :
VIDEO: जिनके हाथ नहीं वो भी चला पाएंगे बाइक, नौवीं फेल शख्स का कमाल
मेरठः उत्तर प्रदेश के छोटे से जनपद मुज़फ्फरनगर के नौवीं फेल रईस वैल्डर ने विकलांग युवाओं के लिए बाइक का निर्माण किया है। अपने दिमाग की उपज और हाथों के हुनर से अपनी पहचान बनाने वाले रईस सबसे पहले चाइल्ड जीप का निर्माण कर सबको हैरत में डाल दिया था। अब इस देसी इंजिनियर ने जिनके हाथ नहीं हैं, उनके लिए बाइक का निर्माण किया है।
बैटरी से चलेगी ये अनोखी बाइक
इस बाइक की खासियत है कि ये पेट्रोल या डीजल से नहीं बल्कि बैटरी से चलने वाली अनोखी बाइक है। इसका स्टेरिंग हाथों से नहीं पैरो से संचालित किया जायेगा साथ ही एक्सीलेटर और ब्रेक भी पैरों से ही काम करेंगे। यह बाइक एक घंटे में 40 किलोमीटर तक का सफर तय करेगी। 6 घंटे तक लगातार इसे चार्ज करने के बाद 70 किलोमीटर तक चलाया जा सकता है।
क्या कहते हैं रईस?
इस बाइक को बनाने में उन्हें तीन महीने और 20 हजार का खर्च आया है। वैसे तो इस बाइक को कोई भी आदमी आसानी से चला सकता है, लेकिन ये बाइक हाथों से अपंग लोगों को ध्यान में रख कर बनाई गयी है। जब यह बाइक नगर की सड़को पर चलती है तो देखने वालो की भीड़ जमा हो जाती है। रईस की ये पहली बाइक है, अगर कोई कंपनी फिजिकल चैलेंज लोगों के लिए इस तरह के वाहन बनाना चाहे तो वो उसके लिए डिजाइन तैयार करंगे।
हम वेल्डिंग का काम करते हैं। कक्षा 9 में फेल होने के बाद मैं अपने पिता के साथ दुकान पर काम करने लगा था। मेरा पढ़ाई में कम और दुकान में ज्यादा मन लगता था। मैंने कभी कोई डिप्लोमा या ITI नहीं किया। मैं अब तक 24 वाहन बना चूका हूं, जिसमें चाइल्ड जीप, बेबी कार, मिनी बाइक और कई वाहन हैं। मुझे बच्चों से बहुत प्यार है, इसलिए ज्यादातर बच्चों के लिए गाड़ियां बनाई हैं।
विकलांग युवाओं के लिए बनाई बाइक
मैं विकलांगो के स्कूटर में साइड सपोट के लिए पहिये लगाता था। मुझे ख्याल आया की इनके लिए कुछ अलग बनाया जाये। हमने बिना हाथ वालों के लिए तीन पहियों वाली एक पैडल वाली गाड़ी बनाई। जिसे पैरों से ही चलाया जा सकता है और पैरो से कंट्रोल किया जा सकता है। ब्रेक, स्पीड और हैंडिल सभी पैरो से कंट्रोल होता है। गाड़ी की चौड़ाई मात्र दो फुट है जो घर के किसी भी कोने में बड़ी आसानी से जा सकती है। अगर कोई कंपनी या सरकार मेरा सहयोग करे तो मैं इससे भी बढ़िया अविष्कार कर सकता हूं। मुझे गर्व है कि मैं एक इंडियन हूं और इंडिया के लिए नए नए अविष्कार करता रहूंगा। अगर सरकार सहयोग करे तो मैं प्रतिदिन 40 वाहन बना सकता हूं। अभी तक मैंने किसी भी गाड़ी का पैटन नहीं कराया है। लेकिन चाहता हूं कि मेरी गाड़ियों का पैटन मिल जाये।
क्या कहते हैं रईस के पिता?
वहीं उनके पिता जो खुद भी किसी बड़े इंजिनियर से कम नहीं है और बेटे की तरह इन्होंने भी कई छोटी गाड़ियां बनाकर जनपद का गौरव बढ़ाया है। उनका कहना है कि मैं वेल्डिंग का काम बचपन से करता हूं। 14 साल अपने उस्ताद के पास काम सीखा और अब अपना खुद का काम करता हूं। मैंने कोई कोर्स नहीं किया और ना ही कभी स्कूल गया अनपढ़ आदमी हूं, दिमाग रखता हूं। मैंने कई फैक्ट्रियों में काम किया है। मेरा एक पोता है वो बोलता था की दादा जी मुझे छोटी बाइक बनाकर दो। मुझे वहीं से छोटी गाड़ियां बनाने की प्रेरणा मिली। मैंने छोटी बाइक, चाइल्ड जीप और कई मिनी गाड़ियां बनाई है। छोटी गाड़ी की खासियत ये है की इन्हे कोई भी खरीद सकता है ।