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कारगिल विजय दिवस: जरा याद उन्हें भी कर लो, जो कभी लौट के घर न आए

shalini
Published on: 26 July 2016 7:47 AM GMT
कारगिल विजय दिवस: जरा याद उन्हें भी कर लो, जो कभी लौट के घर न आए
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sandhya yadav SANDHYA YADAV

लखनऊ: जिंदगी तुझको कसम है, मुझसे दगा न करना, अभी कुछ औरों का काम बाकी है, फिर मुझसे वफा न करना। मैं तो भेजा गया हूं जिस काम से, वही करना है, तुझे भी तेरा काम लोगों की, जिंदगी तमाम करना है।...

ये वो चंद अल्फाज हैं, जो शायद कारगिल में शहीद हुए हर सैनिक के दिल में बसे होंगे।

भले ही कारगिल को हुए कई बरस बीत गए हों, पर उन जख्मों का दर्द शायद ही कभी ख़त्म हो सके। जब एक पिता ने अपने बेटे को भारत मां की रक्षा के लिए बन्दूक थमाई थी, तो उसे जरा भी एहसास नहीं था कि उसके बुढ़ापे की लाठी खुद ही थामनी होगी। जब एक भाई देश की सीमा पर जा रहा था, तो उसकी बहन को नहीं पता था कि उसके बाद वह किसी भी रक्षा बंधन पर उसे राखी नहीं बांध पाएगी। उस पत्नी को नहीं पता था कि जिस पति को वह आज तिलक लगाकर देश रक्षा में भेज रही है, उस युद्ध के बाद वह खुद कभी अपने माथे पर लाल रंग का तिलक नहीं लगा पाएगी।

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हम बात कर रहे हैं कारगिल पर देश के लिए मिट जाने वाले उन सैनिकों के बारे में, जिन्होंने 26 जुलाई 1999 के दिन बिना किसी और की परवाह किए अपने भारत देश के लिए हंसते-हंसते अपनी जान न्योछावर कर दी। आज वह दिन है, जब देश के करीब 527 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे। जब पूरे देश के लोग अपने-अपने घरों में चादर तान कर सो रहे थे, तो ना जाने कितने सैनिक आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो रहे थे।

सभी जानते हैं कि इंडिया का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान समय-समय पर अपनी नापाक हरकतों से दोनों देशों के बीच दूरियां बढ़ने की कोशिश करता रहता है। ऐसा ही कुछ हुआ था 1999 में मई और जून के महीने में जब पाकिस्तानी घुसपैठिए हिन्दुस्तान में घुसने की कोशिश करने लगे, तो उन्हें रोकने के लिए भारतीय सेना को मोर्चा संभालना पड़ा। 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर हमारे देश को घुसपैठियों के चंगुल से आजाद कराया था। इसी की याद में ‘26 जुलाई’ अब हर वर्ष कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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पर क्या आप जानते हैं कि उस युद्ध में तमाम सैनिक तो ऐसे भी थे, जिन्होंने अपनी जिंदगी के तीस बसंत भी नहीं देखे थे। कारगिल के उस युद्ध में शहीद हुए सैनिकों में 5 जांबाज लखनऊ से थे जिनमें राइफलमैन सुनील जंग महत, मेजर विवेक गुप्ता, लांसनायक केवलानंद द्विवेदी, कैप्टन आदित्य मिश्रा और कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय जैसे शूरवीर शामिल हैं।

ये वो लोग हैं, जिन्होंने मिटटी के तेल को भी जमा देने वाली कड़कड़ाती ठंड में दुश्मनों के दांत खट्टे किए। सिर्फ ये ही नहीं, हम आज उन सभी सैनिकों को सलाम करते हैं, जिन्होंने घर लौटने का वादा तो किया था पर वह लौट न सके। उन जांबाज सैनिकों में कुछ तो ऐसे थे, जिनकी पत्नियां मां बनने वाली थी। वे देखना चाहते थे अपनी औलादों का चेहरा सबसे पहले, पर किस्मत को ये मंजूर न था।

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कभी सिर्फ मां की गोद में सोने वाले मासूम से बच्चे कारगिल में सैनिक बनकर धरती मां की गोद में हमेशा के लिए सो गए। लखनऊ में रहने वाले कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय मिश्रा के पिताजी को बेटे पर फक्र तो है, पर कारगिल दिवस आते ही उनकी आंखों के सामने वो दर्द भरी यादें ताजा हो जाती हैं, जिन्हें वह चाहकर भी नहीं भुला पाते हैं। वहीं मनोज की बहनप्रभा मिश्रा आज भी भाई के उस ख़त को देखकर रो पड़ती हैं, जिसमें मनोज ने लिखा था ‘बहन, मुझे तेरी राखी और मिठाई दोनों मिल गई है’।

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राइफलमैन सुनील जंग महत के परिवार वाले उनकी कही आखिरी बात को याद करते हैं। तो उनकी आंखें छलक आती हैं। उन्होंने कारगिल पर जाने से पहले कहा था “अगर मैं वापस ना आऊं, तो गम मत करना”। ये वो लोग हैं, जिन्होंने मां-बाप की लाचारी तो देखी, पर कुछ कर न सके, बच्चों को बड़ा होता न देख सके और मरते वक्त भी इन्होंने मुस्कुराकर भारत माता को सलाम किया। जब इनका शरीर तिरंगे में लपेटकर इनके घर भेजा गया। तो परिवार वालों ने फक्र से सलामी भी दी।

लेकिन उस मां-बाप के दर्द को नहीं देखा पाया कोई, जिन्होंने उस पौधे को खोया, जिसे खून से सींचकर बड़ा किया था। देश के लिए इन सैनिकों का बलिदान न कभी भूलने वाला नहीं है और युवाओं के लिए प्रेरणा बना रहेगा। वहीं कुछ लोग आज भी सेना में अपने बच्चों को भेजने से कराते हैं जबकि सच्चाई तो यह है कि “ भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमे रसधार नहीं, हदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।”

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