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एक खौफनाक काली रात की कहानी, आशिक और माशूका की जबानी
नींद में ही शबनम अपना बिस्तर समेट कर सीढ़ियों से नीचे उतरती है। टॉर्च जलाती है। उनींदी पलकों से अपने सोने के लिए जगह ढूंढना चाहती है। लेकिन कमरे का नजारा देख कर मुंह से घुटी घुटी चीख निकल जाती है। फिर, कमरे का खौफनाक मंजर देख कर शबनम पर चीखों के दौरे पड़ जाते हैं। गांव बेवक्त ही जाग जाता है। घबराए हुए लोग शौकत के घर की तरफ दौड़ पड़ते हैं।
अमरोहा: 14 अप्रैल 2008। काली रात। घुप्प अंधेरा। गहरा सन्नाटा। रह रह कर सन्नाटे को चीरती कुत्तों के भौंकने का आवाज। ऐसे में, एक काला साया आहिस्ता कदमों से घुमावदार गलियों में दबे पांव आगे बढ़ रहा था। हर मोड़ पर चौकन्ना। हल्की सी आहट पर भी उसके कदम ठिठक जाते थे। दम साधे वह जायजा लेता था। फिर अंधेरों को चीरता दबे पांव आगे बढ़ जाता था। उसके हाथ में कुछ था। शायद कुल्हाड़ी।
साया एक घर के बाहर रुकता है। अंधेरे में ही दरवाजे का एक पट खुलता है। दरवाजा खोलने वाले को शायद उसी का इंतजार था। साया भीतर दाखिल हो जाता है। रात धीरे धीरे खिसकती है। कुछ देर बाद थोड़ी दूर पर कुछ कुत्ते भौंकते हैं। इसके बाद फिर वही सन्नाटा। बाकी रह जाती है सिर्फ झींगुरों की आवाज
खौफनाक मंजर
न जाने क्यों देर रात आसमान रो पड़ता है। बूंदों की झड़ी लग जाती है। घर की छत पर सो रही शबनम की आंख खुल जाती है। आधी रात गुजर चुकी है। 2 बज रहे हैं। नींद में ही शबनम अपना बिस्तर समेट कर सीढ़ियों से नीचे उतरती है। टॉर्च जलाती है। उनींदी पलकों से अपने सोने के लिए जगह ढूंढना चाहती है। लेकिन कमरे का नजारा देख कर मुंह से घुटी घुटी चीख निकल जाती है। फिर, कमरे का खौफनाक मंजर देख कर शबनम पर चीखों के दौरे पड़ जाते हैं। गांव बेवक्त ही जाग जाता है।घबराए हुए लोग शौकत के घर की तरफ दौड़ पड़ते हैं।
शौकत के घर पहुंचे गांव वालों के होश उड़ जाते हैं। कमरे में पड़ी पलंगों से खून बहता मिलता है। लाल हो चुकी चादरों का वास्तविक रंग पहचानना मुश्किल होता है। तकियों पर खून के मोटे धब्बे जम चुके होते हैं। एक..दो..तीन...घर के सात सदस्य कत्ल कर दिेए गए हैं। बची है तो बस घर की बेटी शबनम। इसे कुदरत का खेल कहें या शबनम की किस्मत, गर्मियां शुरू होते ही वह छत पर सोने लगती थी। उसकी इस आदत ने ही उसकी जान बचा ली थी, या इसलिए बच गई कि खून ठंडा होने से पहले ही कत्ल की यह कहानी उजागर होनी थी, कहना मुश्किल है।
पुलिस को चुनौती
15 अप्रैल 2016 की सुबह होते होते अमरोहा के हसनुपर थाने में अधिकारियों का जमावड़ा लग चुका था और गांव बावनखेड़ी में मातम बरपा था। गांव के शौकत परिवार के सात लोगों के बेरहमी से कत्ल कर देने की खबर आग की तरह फैल गी थी। पूरे परिवार की धारदार हथियारों से गर्दनें काट दी गई थीं। शौकत, उनकी पत्नी, बेटे, बहू और यहां तक कि डेढ साल के पोते को मौत के घाट उतार दिया गया था। क्यों? आखिर क्यों खत्म कर दी गई एक पूरी नस्ल?
पुलिस के सामने बड़ी चुनौती थी। लेकिन सूत्र तो कहीं हाथ ही नहीं लग रहा था। न चोरी, न डकैती। न दुश्मनी, न जायदाद का विवाद। घूम फिर कर एक ही आसरा था। होश में आए तो मासूम शबनम कोई सूत्र दे।
शबनम थोड़ा संभली तो उसने इसे बदमाशों की करतूत बताया। लेकिन विरोध के तो कहीं निशान ही नहीं थे। चारपाइयों पर शव इस तरह पड़े थे, जैसे गहरी नींद में सो रहे हों। पुलिस ने शबनम पर इस दर्दनाक हादसे का असर कम होने का इंतजार किया।
लेकिन पुलिस के पास उम्मीद की एक और किरण थी। शबनम का प्रेमी। शायद उसे कुछ पता हो।
जुर्म के निशान
कहते हैं न, कि मुजरिम कितना ही शातिर क्यों न हो, वह अपने पीछे जुर्म के निशान जरूर छोड़ जाता है। ये निशान पुलिस ने पकड़ लिए थे। पुलिस ने शबनम के प्रेमी सलीम पर बस थोड़ी ही सख्ती की थी, कि वह कत्ल की रात की जीती जागती दास्तान सुनाने लगा। दिल दहलाने वाली इस दास्तान के सूत्रधार का नाम सुन कर सिर्फ बावनखेड़ी गांव ही नहीं, पूरा देश दहल गया था। क्योंकि कत्ल की इस दास्तान की कहानी खुद शबनम थी। घर की बेटी।
जो कहानी सलीम और शबनम ने सुनाई, वह अंधे इश्क की एक नाकाबिल ए माफी दास्तान के रूप में दर्ज हो गई।
उस मनहूस रात, इश्क और जुर्म की यह कहानी कुछ इस तरह परवान चढ़ी। खाने के बाद बेटी ने चाय बनाई। घर के सारे सदस्यों को प्यार और इसरार से चाय पिलाई। चाय में मिली नींद की दवा ने असर किया। सारा परिवार गहरी नींद में सो गया। यह जाने बगैर की यह उनकी आखिरी नींद है। हमेशा के लिये।
तय प्रोग्राम के तहत देर रात शबनम का प्रेमी सलीम उसके घर पहुंचा। शबनम इंतजार कर रही थी। बेटी ने टॉर्च दिखाई। प्रेमी कुल्हाड़ी से वार करता गया। बारी बारी। बाप, मां, भाई और भाभी सब उसकी दुनिया से दूर चले गए।
इश्क का जुर्म
सलीम ने अपनी माशूका से कहा था कि वह छत पर जाकर सो जाए। सुबह उठ कर शोर मचाए। लेकिन रात में बारिश हो गई। नीचे डेढ़ साल का भतीजा रो रहा था। शबनम ने खुद उसका गला घोंट कर मार दिया।
एमए पास और शिक्षामित्र शबनम को छठी पास सलीम से प्यार हो गया था। उसे लगता था, कहीं उसका प्यार भी हीर-रांझा का प्यार न बन जाए। इसलिए उसके पास अपने ही खून को बहा देने के सिवा कोई चारा नहीं था।
पुलिस को मौका ए वारदात देख कर यह शक हो गया था कि हत्या में किसी करीबी का हाथ है। फिर, पुलिस ने शबनम और सलीम के बीच फोन पर करीब एक साल में 900 बार हुई बात का रिकॉर्ड भी खंगाल लिया था। इसमें कत्ल की रात भी शामिल थी।